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तो करें एक प्रयत्न हम ??

विलुप्त होते हैं जीव,

विलुप्त होता है जल...

विलुप्तप्रायः असंख्य प्राणी आजकल..
विलुप्त नहीं होते  क्यों अब भी .
द्वेष, स्वार्थ, अनैतिकता, विद्रूपता और छल ?
क्यों जीवन की बुराइयों में अधिकता ही आती जा रही ?
क्यों अब नहीं जाती ये अनचाही निष्ठुरता जल..?


 
जातिवाद का सूर्य क्यों रहा नहीं ढल ?
क्यों सीमाएं भी बढती ही जा रही हैं देशों, राज्यों की?
क्यों नहीं मिटती दूरियां, दिलों में बहता नहीं क्यों अपनत्व प्रेम निर्मल ?
हवाओं में नहीं अब सुगंध शान्ति की ..
ज़हर नफरतों का, अविश्वास का विष रहा है घुल?
अब भी चेत जाएँ..रुक जाएँ और खो दें जो ये नकारात्मकता  तो..
मन से ये सारा मैल,और भेदभाव जाएगा धुल..
है न ?
तो करें एक प्रयत्न हम ??
 

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Comment

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Comment by Lata R.Ojha on April 13, 2011 at 9:42pm

Aabhaar Ganesh ji :)

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2011 at 9:06am
लता जी, पारिस्थितिकी को बचाने की दिशा में आपकी सोच काबिले तारीफ़ है, सुंदर अभिव्यक्ति हेतु बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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