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          उठा था चमकता-दमकता....

जोश से... ... ...

ये भूल... कि है पल भर का खेल...


इतना नाज़ुक...

जहाँ स्पर्श तो दूर...

हवाओं संग आये चंद खिर्चे तक...

लूट लेंगे... उसका 'अस्तित्व'...

ना छोड़ेंगे कोई निशाँ... उसका...

 

मगर वो...

वो तो सब कुछ जान के भी...

उड़ रहा था ऊंचा... और ऊंचा...

इस बात से अनजान...

कि ज्यादा ऊंचाई...

अक्सर गिरने का भी मौका नहीं देती...

वो ख़त्म कर देती है... 'सब कुछ'... वहीँ...

पर फिर भी... वो खुश था...

अपनीं 'पल' की ज़िन्दगी से भी...

 

साफ़ था वो बिलकुल...

निश्छल...

हल्का-सा सतरंगी... ... ...

 

किसी आईने की तरह... ... ...

जो देखता, हलकी-सी उसकी झलक दिखलाता...

देख उसकी मुस्कान...

उसके करीब जाता...

मगर, वही नजदीकी...

उसकी मुस्कान छीन लेती...

 

एक प्यार भरा स्पर्श भी,

कहाँ नसीब होता है... किसी-किसी को...

मासूम-सी मोहब्बत की तरह...

होता है 'अंजाम'... ... ...

हर नाज़ुक चीज़ का...

हर नाज़ुक 'एहसास' का...

हर नाज़ुक... "बुलबुले" का... ... ...!!

 

:::::::: जूली मुलानी ::::::::

:::::::: Julie Mulani ::::::::

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Comment

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Comment by Julie on April 13, 2011 at 7:45pm
Nemichand jee... Bahut Bahut Shukariya aapka, Rachna pasand karne ka liye... :)
Comment by Julie on April 13, 2011 at 7:44pm
गणेश जी... बहुत बहुत आभार आपको कविता पसंद आई... :-)
Comment by Nemichand Puniya on April 13, 2011 at 9:52am

Julie ji, Hawaon ke sang aaye chand khirche tak,nazuk.sundar abhivykti.aabhaar.

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2011 at 8:56am
जुली ! बहुत बढ़िया, एक बुलबुला और इतनी खुबसूरत कविता,

एक प्यार भरा स्पर्श भी,

कहाँ नसीब होता है... किसी-किसी को...


बुलबुले की तरह ही नाजुक अभिव्यक्ति, बधाई इस ससक्त कृति हेतु |

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