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हुआ है प्‍यार में पागल सुनो अंन्‍जाम इस दिल का
न तेरी बात माना मैं लगा इल्‍जाम इस दिल का

.

अँधेरा दूर हो करना जला, लो दिल सनम मेरा
न है जब जिन्‍दगी में तू न है क्‍या काम इस दिल का

.

रही जब पास तुम मेरे बडा अनमोल था ये दिल
न अब कोई मुझे पूछे न है कुछ दाम इस दिल का

.

तुम्‍हारा प्‍यार था जब तो बुलाते थे सभी दिलवर
सुना मैने पड़ा अब दिलजला हैै नाम इस दिल का

.

खता कोई न है इसकी, मगर बदनाम तो है ये
न करता है वफा चर्चा हुआ अब आम इस दिल का

मौैलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 5, 2015 at 8:59pm

सुन्दर रचना .

Comment by kanta roy on October 5, 2015 at 3:30pm

वाह !!! बहुत खूब ग़ज़ल हुई है।  बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 8:04pm

आदरणीय अखंड भाई , बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

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