किसी तरह जान बचाकर गांव लौटे छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर जिले के मजदूर आज भी उस भयावह हादसे को नहीं भूल पाए हैं, जिसने किसी का बेटा तो किसी की पत्नी और भाई छीन लिया। लेह हादसे का जिक्र होते ही उनकी आंखों में पानी भर आता है। लेह हादसे में प्रभावित मजदूर जांजगीर जिले के नवागढ़ विकासखंड अंतर्गत ग्राम बनारी, महंत, खैरा तथा पामगढ़ विकासखंड के ग्राम सलखन के हैं। गौरतलब है कि जम्मू-काश्मीर के लेह में 5 अगस्त 2010 को बादल फटने से तबाही आ गई थी। इस हादसे में कई मजदूरों की मौत हो गई, वहीं कई घायल हो गए थे। हादसे के बाद जिन मजदूरों के शव मिल गए उनकी शिनाख्त हो चुकी है। मगर 40 से अधिक लोग ऐसे हैं, जिनका आज तक कुछ पता नहीं चल सका है। लापता मजदूरों को ढूंढने प्रशासन द्वारा अब तक कोई खास रूचि नहीं ली गई है। घटना के बाद जम्मू काश्मीर सरकार ने महज 16 मजदूरों की मौत की शिनाख्ती करते हुए उनके परिजनों को 1-1 लाख रूपए मुआवजा दिया है, लेकिन हादसे के बाद से लापता 40 से अधिक मजदूरों को अब तक न तो मृत माना गया है और न ही उनकी खोज की जा रही है। लेह हादसे मेें प्रभावित ग्राम सलखन के संतराम साहू ने बताया कि उनका 3 वर्ष का बेटा राहुल कुमार साहू दुर्घटना के बाद से अब तक नहीं मिला है। मजदूर परमानंद साहू की 1 वर्षीय पुत्री प्रीति हादसे के बाद से गुम हो चुकी है। दोनों मजदूरों ने बताया कि प्रशासन की ओर से उन्हें अब तक किसी तरह की सहायता नहीं मिली है। घटना के बाद घायल हुए मजदूर अब भी शारीरिक तकलीफें झेल रहे हैं, वहीं प्रशासन की ओर से उनका ठीक ढंग से इलाज भी नहीं कराया गया है। कुछ मजदूर अपनी थोड़ी बहुत संपत्ति बेचकर जख्मों का इलाज करा रहे हैं। कई लोगों को शारीरिक विकलांगता हो गई है, जिसकी वजह से वे मेहनत मजदूरी भी नहीं कर पा रहे हैं। ग्राम मंहत के फेकूराम धीवर, चैतराम धीवर, मकदन केंवट, श्रवण केंवट ने बताया कि वे कमाने खाने के लिए अपने परिवार के साथ लेह गए थे, जहां आए जलजले में उनके आंखों के सामने ही परिजनों समेत कई लोग मौत के मुंह में समा गए, जिन्हें वे चाहकर भी नहीं बचा सके। इस हादसे में उसके गांव के किशोरी लाल पिता दाउराम धीवर, रूप कुंवर पति फेकूराम धीवर, अन्नू पिता ब्रजेश कुमार, बैजमति पति महेशराम, कु. बिरस पिता गुहाराम, कु. अर्चना पिता बनवाली तथा प्रेमकुमार पिता दिलीप कुमार की मौत हो गई। हादसे से प्रभावित बरन कश्यप, महेशराम केंवट, रामप्रकाश कश्यप, सिरधारी केंवट ने बताया कि उन्हे अपनों की मौत का गम जितना है उससे कहीं ज्यादा घर में बिस्तर पर पड़े परिजनों को देखकर होता है। उपर से अधिकारियों की उदासीनता ने उनके जख्मों को कुरेदने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दुर्घटना में पीड़ित मजदूर चंदराम केंवट, ननकीनोनी निर्मला व चमारिन बाई ने बताया कि पिछले 8 माह से वे आर्थिक सहायता के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगा-लगाकर थक चुके हैं। अब तो उन्होंने राहत राशि की उम्मीद ही छोड़ दी है। इसके अलावा मजदूर किशोरी लाल की मौत को लेकर भी दोनों राज्यों की सरकार गंभीर नहीं है। लेह से गंभीर हालत में जांजगीर लाए जाने के बाद जिला अस्पताल में किशोरीलाल की मौत हो गई थी, जिसे जम्मू काश्मीर सरकार नकार रही है वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने भी उसके परिजनों को मुआवजा देने से इंकार कर दिया है। यहां बताना लाजिमी होगा कि यह पहली घटना नहीं है जब किसी हादसे में प्रभावित मजदूरों को प्रशासन द्वारा आर्थिक सहायता देने में आनाकानी की जा रही है। 8 वर्ष पहले अनंतनाग में हुए आतंकवादी हमले में जांजगीर जिले के दर्जनों मजदूर मारे गए थे, जिनमें से कुछ मजदूरों को ही आर्थिक सहायता दी गई थी, जबकि कई लोगों का अब तक पता नहीं चला और न ही उनके परिजनों को किसी तरह की आर्थिक सहायता मिल पाई है। उस समय भी दोनों राज्यों की सरकार ने मुआवजे को लेकर अपना पल्ला झाड़ लिया था। ठीक उसी तरह लेह हादसे के पीड़ितों के साथ भी जम्मू काश्मीर तथा छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बर्ताव किया जा रहा है।
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