2122—1122—1122—22 |
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दिल तो है पास, तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी |
और ये बात जमाने से छुपाना बाक़ी |
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ज़िंदगी इतनी-सी मुहलत की गुज़ारिश सुन लो |
आखिरी क़िस्त है साँसों की चुकाना बाक़ी |
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फिर सियासत ने सभी दांव बराबर खेले |
अब तो मज़हब की वही आग लगाना बाक़ी |
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फिर नई पौध को मारा है इसी जुमले ने- |
“अब न वो लोग, न वैसा है ज़माना बाक़ी” |
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बस सियासत से है लबरेज अदब की दुनिया |
अब न शायर का कोई ठौर ठिकाना बाक़ी |
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शहर पूरा ही सजाया है, ज़रा देर मगर |
सिर्फ़ फुटपाथ से बिस्तर का हटाना बाक़ी |
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आज ख़्वाबों के सभी पंख कुतर देता पर |
इस परिंदे को जरा सा है उड़ाना बाक़ी |
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दास्ताँ दर्द की हमने तो सुना दी लेकिन |
अपनी आँखों से वही दर्द बताना बाक़ी |
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दे चुका हूँ मैं नसीहत का पिटारा लेकिन |
सिर्फ़ बेटे को जरा आँख दिखाना बाक़ी |
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Comment
आदरणीय सुरेन्द्र जी, सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आभार. सादर
आदरणीया अमिता जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय बृजेश जी, सराहना हेतु आभार. सादर
आदरणीय राम आसरे जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र सिंह जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय सतविन्द्र जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई जानकार खुश हूँ. इस सराहना हेतु आभार व्यक्त करता हूँ. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय विजय शंकर सर, आपको यह प्रयास पसंद आया. जानकार आश्वस्त हूँ. सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय अमित जी, हार्दिक आभार सादर
आदरणीय रवि जी, आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ. सराहना हेतु हार्दिक आभार. धन्यवाद. सादर
आदरणीया कांता जी, विस्तृत प्रतिक्रिया हेतु आभार. सादर
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