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ग़ज़ल - सबके चेहरों को देखते आये

आज बस में खड़े खड़े आये
सबके चेहरों को देखते आये ।

पिछली यादें तलाश करते हुए
हम तेरे शहर में चले आये ।

और कुछ काम भी नहीं मुझको,
आज मिलने ही आपसे आये ।

जैसे कुछ खो गया था मेरा यहाँ
हर गली मोड़ देखते आये ।

मेरी औक़ात क्या महब्बत में
इस जहाँ में बड़े बड़े आये ।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by सूबे सिंह सुजान on April 1, 2016 at 10:13pm
Dr Ashutosh mishra , जी आभार व्यक्त करता हूँ ।
शुक्रिया
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2016 at 9:50am

हार्दिक बधाई  सूबे सिंह जी 

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 30, 2016 at 5:33am
सभी बुद्धिजीवियों का हार्दिक आभार ।
Comment by सूबे सिंह सुजान on March 29, 2016 at 12:54pm
श्रीवास्तव अमोद जी शुक्रिया शुक्रिया साहब
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 29, 2016 at 12:20pm
वाह्ह्ह् बहुत बहुत बधाई

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