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घर की खुशबू कुरान जैसी है

ख्वाब उनमें नहीं अब पलते हैं
उसकी आंखें चिराग़ जैसी हैं

उसकी आंखों में है जहां का ग़म
उसकी किस्मत खुदा के जैसी है

कहने को तो दुनिया भी एक महफिल है
इसकी सूरत बाजार जैसी है

हरेक घर को इबादत की नजर से देखो
घर की खुशबू कुरान जैसी है

जबसे आया हूं होम करता रहा हूं
जिन्दगी हवन कुंड के जैसी है



- आकर्षण कुमार गिरि

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on May 7, 2011 at 8:13am
waah खूबसूरत खयालो की सुन्दर रचना बधाई !!
Comment by AjAy Kumar Bohat on May 7, 2011 at 6:43am
bahut sunder upmayein di hain, congrats for nice poetry....

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