मैले-कुचले कपड़ो में सड़के के किनारे प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी,उसे तो समझ में भी नहीं आ रहा था कि उसके शरीर में परिर्वतन क्यों आया, क्यों हो रही है ये पीड़ा उसे,क्यों बढ़ा है उसके उदर आकार, मगर प्रकृति ने जो मानव जीवन के नियम बना दिये जो क्रिया बना दिया वह होगा जाने या अंजाने, अमीर या गरीब, मानसिक परिपक्त या अर्ध विक्षिप्त , तभी एक जीव उसके शरीर से बाहर आया एक उसी के तरह के उस छोटे जीव को देख कर आश्चर्य चकित रह गयी। उसे क्या पता था कि समाज में कुछ ऐसे भी भेड़िये है जो मरे हुए को भी मार देते है, दिन के उजाले में दूर भगाते है और रात के अँधेरे में पाते ही नोच कर छोड़ देते है मरने के लिए वह पगली उस अजीबो गरीब हालत में माँस के लोथड़ो से सना देख पास के नल से नहला कर साफ किया। पैदाइसी चिन्ह को नोच कर मिटाया। तब तक शायद प्रकृति को उस पर थोड़ी थी दया आयी और उसने उसे थोड़ा विवेक प्रदान किया , वह रोते बिलखते उस जीव को लेकर भटकती हुई एक अस्पताल तक जा पहुँची, जहाँ उसे इस कदर गोद में बालक और बालक की दशा देखकर डाक्टर भागे आये '' देखो वह पगली गोद में कैसा और किसका बच्चा लिये लगता है कही से चुरा कर भागी है। सभी उसकी तरफ दौडे और उसे देखकर नहीं सर ''ये बच्चा लगाता है इसी का है इसकी हालत तो देखो '' सभी ने उस पागल को उपर से नीचे तक देखा सभी को सच्चाई को समझ गये तभी धीरे से जाँच करने वाले कम्पाउन्डर ने कहा कि सर '' यह बच्चा तो मर गया है'' सभी परेशान की कैसे उस पगली से बच्चे को अलग किया जाये। वह पगली शायद उन की बात को समझ चुकी थी कि उसका, वह रोता हुआ बालक शांत क्यो हो चुका था , वह बच्चा संसार में जैसे चुपके से आया वैसे संसार से चुपके से विदा हो चुका था वह पगली गोद में बच्चे को छुपाये चल पड़ी एक अंजान रास्ते की तरफ।
मौलिक एवं अप्रकाशित, अखंड गहमरी
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सामाजिक विभत्सता की चरम सीमा है ये , मानवीय मूल्यों की कीमत सिर्फ उजालों में तय की जाती है ,रात के अँधेरे में समस्त मानव यकाएक भेड़िये की शक्ल अख्तियार कर लेते है . कहाँ है बालिका संरक्षण गृह ? कहाँ है बाल -सुधार केंद्र ? कहाँ है वो सभी सेवा इकाइयां जिन्हें एन जी ओ नाम से संबोधन करती है सरकार ,जिनको करोडो मिलते है इन्हीं अनाथ ,बेआसरा ,मजबूरों के लिए ? अगर इनका कोई आस्त्तित्व है तो फिर हमें ये लोग आते -जाते सडकों पर युहीं कही क्यों मिल जाते है ? क्या वो सभी अनुदान -प्रतिदान की गाथाएँ कागजी जहाज है जिन्हें हम कागजों में रोज खजानो से लदते देखते है .
मन को आंदोलित करने वाली बहुत ही सार्थक लघुकथा लिखी है आपने आदरणीय अखंड जी ,बधाई स्वीकार कीजिएगा
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