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आँख का पानी


होने लगा है कम अब आँख का पानी,
छलकता नहीं है अब आँख का पानी|


कम हो गया लिहाज,बुजुर्गों का जब से,
मरने लगा है अब आँख का पानी|


सिमटने लगे हैं जब से नदी,ताल,सरोवर
सूख गया है तब से आँख का पानी|


पर पीड़ा मे बहता था दरिया तूफानी
आता नहीं नजर कतरा ,आँख का पानी|


स्वार्थों कि चर्बी जब आँखों पर छाई
भूल गया बहना,आँख का पानी|


उड़ गई नींद माँ-बाप कि आजकल
उतरा है जब से बच्चों कि आँख का पानी|


फैशन के दौर कि सबसे बुरी खबर
मर गया है औरत कि आँख का पानी|


देख कर नंगे जिस्म और लरजते होंठ
पलकों मे सिमट गया आँख का पानी|


लूटा है जिन्होंने मुल्क का अमन ओ चैन
उतरा हुआ है जिस्म से आँख का पानी|


नेता जो बनते आजकल,भ्रष्ट,बे ईमान हैं
बनने से पहले उतारते आँख का पानी|


डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 11, 2012 at 12:52pm

’आँख का पानी’ की ज़मीन पर बेहतर भाव लिये यह रचना पसंद आयी. कीर्तिवर्द्धनजी को सादर बधाइयाँ.

Comment by dr a kirtivardhan on January 11, 2012 at 10:24am

aap sab mitron dwara hausala afzai ke liye shukriya.

Comment by Rash Bihari Ravi on May 10, 2011 at 1:46pm
bahut khubsurat lajabab

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 10, 2011 at 1:41pm
आदरणीय किर्तिवर्धन जी, बहुत ही सुंदर ख्याल है, भाव पक्ष बहुत ही मजबूत है, बधाई आपको |
Comment by Abhinav Arun on May 8, 2011 at 7:31pm

वाह बहुत खूब सामयिक और सशक्त रचना बधाई स्वीकारें -

फैशन के दौर कि सबसे बुरी खबर
मर गया है औरत कि आँख का पानी|


देख कर नंगे जिस्म और लरजते होंठ
पलकों मे सिमट गया आँख का पानी|

प्रभावीव सटीक प्रहार कीर्तिवर्धन जी को  साधुवाद !!

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