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" मम्मा , मै अपनी आगे की पढाई पूरी कर पाउन्गी ना ?" माधुरी ने निराशा और अविश्वास भरे स्वर मे माँ से कहा जो उसका सर अपनी गोद मे रख अपनी आंखो से बहती नदी को रोकने का प्रयास कर रही थी l
" हाँ ...मेरी बेटी तो बहुत बहादुर है वो सब कर पायेगी , भगवान का लाख लाख शुक्र है तुम अब पहले से बहुत ठीक हो नही तो...."कहते कहते माँ का गला रुन्ध गया और कुछ दिन पहले हुआ वो भयानक एक्सिडेंट याद आ गया l
भय के कारण उनके रोन्ग्टे खडे हो गये और उन्होने माधुरी के हाथ को कस कर पकड़ लिया l
माँ के इस तरह के व्यवहार से वो भी समझ गई कि माँ बहुत डर गई है l उसने खुद को सम्भाला और माँ के चेहरे को अपने हाथो से टटोलते हुए बोली"अरे मम्मा , आप रो रही हो , मुझे हिम्मत देते देते खुद टूटने लगी ?"
" नही मेरी बच्ची, मै रो नही रही वो तो बस ऐसे ही...., चल तू बता क्या खायेगी ?"माँ ने बात बदलने की कोशिश की l
" मम्मा, उस एक्सिडेंट में मैने अपनी एक आंख गँवाई है और दूसरी कमजोर हुई है पर दिमाग बिल्कुल ठीक है , इतनी जल्दी हार नही मान
मानूँगी मै, आप मुझे पढ कर सुनाना और मै याद कर लूँगी इस तरह मै अपनी पढाई पूरी कर लूँगी " माधुरी के चेहरे और आवाज मे अब आत्मविश्वास की चमक थी l
उसके कमरे में रखी किताब भी अपने पन्ने फड़फ़डा कर उसका साथ देने की हामी भर रही थी l

@रेनुका
मौलिक एवं अप्रकशित

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Comment by Renuka chitkara on May 9, 2017 at 7:22am
बहुत शुक्रिया
Comment by Nita Kasar on May 1, 2017 at 7:24pm
आत्मविश्वासी व्यक्ति अपनी मंज़िल पा सकता है ।संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आद० रेणुका जी।
Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 1:39pm
आदरणीया रेणुका जी आदाब, बेहतरीन, सशक, अच्छा कथानक, संवाद भी विषयानुकूल-पात्रानुकूल और एक सदेश प्रधान लघुकथा । आपको ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ स्वीकार करें ।

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