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1-
जब से जीवन में आया है, साथी तेरा प्यार।
तब से शीतल और सुगंधित,चलने लगी बयार।।
उठने लगा ज्वार नस-नस में, आभासित मधुमास।
प्रिय मैं तो धनवान हो गया, तुम हो मेरे पास।।
2-
आँखों ही आँखों में अलिखित, जब हो गया करार।
ख्वाब हकीकत होते देखा, मैंने पहली बार।।
पंख लगे मेरी खुशियों को, रहा न पारावार।
आसमान में उड़ा ले गया, साथी तेरा प्यार।।
3-
जीवन की अनजान डगर पर, कदम बढ़ाए साथ।
हम दोंनों ने थाम लिथा था, इक दूजे का हाथ।।
कभी-कभी संघर्षों में जब, सफर लगा दुष्वार।
तब-तब मेरा बना हौसला, साथी तेरा प्यार।।
4-
पथरीली राहों पर आए, झंझावात हजार।
साथ तुम्हारा पाकर साथी, जीत लिया संसार।।
जब-जब इस धरती पर जन्मूँ, साथ मिले हर बार।
सात जन्म का साथ रहे यह, साथी तेरा प्यार।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by Hariom Shrivastava on September 27, 2017 at 5:59pm
हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2017 at 8:57pm

सादर धन्यवाद् आदरणीय मेरे प्रश्न का  समाधान देने हेतु | बेहद प्रभावशाली सरसी छंद लिखे हैं आपने जिसके लिए पुनः बधाई |

Comment by Hariom Shrivastava on September 24, 2017 at 8:28pm
हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना जी। पारावार यानी असीमित। खुशियों का पारावार न रहा।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 23, 2017 at 1:57pm

आदरणीय पारावार के माने ? बहुत ही सुंदर सरसी छंद रचे हैं आपने | हार्दिक बधाई आपको |

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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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