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सब समझ पातेहों ऐसे इल्म क्यों होते नहीं
सबको रक्खें साथ ऐसे बज्म क्यों होते नहीं

सिर्फ़ खँजरही नहीं कुछ लब्जभी घायल करें
दर्दसे महरूम कोइ ज़ख़्म क्यों होते नहीं

हर अंधेरी रातका रोशन सवेरा तो सुना
बदनसीबीके ये दिन फिर ख़त्म क्यों होते नहीं

आमलोगों केलिये बनते हैं सब क़ानून क्यों
ख़ासलोगों केलिये कोई हुक्म क्यों होते नहीं

सब सवालोंके तुम्हारे पास हैं गर हल तो फिर
पूछनेके सिलसिले ये ख़त्म क्यों होते नहीं ।।

Canada 19-04-18p

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Kishorekant on August 1, 2018 at 6:43pm

विजय निकाले जी , आपका बहुत बहुत आभार 

Comment by Kishorekant on August 1, 2018 at 6:39pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर साहेब ।मेरी समस्त रचनाओं पर आपकी अमूल्य टिप्पणियों केलिये आपका धन्यवाद।

आपकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन मेरेलिये बहुत ही लाभदायक साबित होगी !

पुन:श्च आभार !

आगे भी आपका सहयोग मिलता रहे ऐसी गुज़ारिश ......

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