For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अन्ना, अनशन और सरकार

भ्रष्टाचार के भस्मासुर को भस्म करने के लिए समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद ऐसा लगता है, जैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में भूचाल आ गया है और करोड़ों लोग सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। अन्ना के आंदोलन के बाद केन्द्र की यूपीए सरकार भी बैकफुट पर है। इसके लिए सरकार की नीति-नियंता बने कुछ मंत्री जिम्मेदार माने जा सकते हैं, क्योंकि उनके गलत निर्णय के बाद ही अन्ना हजारे को देश भर में और ज्यादा समर्थन मिलने लगा। अहिंसक आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने जिन नीतियों पर काम किया और अनशन के लिए जाते समय अन्ना हजारे की घर से निकलते ही गिरफ्तारी की, उसके बाद देश भर में सरकार की कार्रवाई की थूं-थूं होने लगी। इसी का परिणाम रहा कि सात दिनों के लिए तिहाड़ जेल भेजे गए अन्ना को महज कुछ घंटे में रिहा करने के आदेश दे दिए गए, मगर अब तो बाजी अन्ना टीम के पाले में चली गई थी। लिहाजा अन्ना ने अपना पैतरा बदलते हुए जेल में ही रहकर अनशन करना शुरू कर दिया और करीब तीन दिन वे जेल में बिताए। जेल प्रशासन ने उन्हें रिहा कर दिया था, मगर सरकार की अनैतिक कार्रवाई के विरोध में वे जेल में भी अनशन करते रहे। अन्ना की जिस तरह की गांधीवादी व सरल छवि बरसों से देश में बनी हुई है, उसी के चलते हर वो नागरिक उनके जुड़ते चला जा रहा है, जो भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहता है।
वैसे अन्ना हजारे का जैसा नाम है, वैसे ही काम व समाज सुधार के लिए वे जाने जाते हैं। कई दशकों के अपने सामाजिक उत्थान के कार्यों के दौरान वे दर्जन भर से अधिक बार ‘अनशन’ कर चुके हैं और उन्हें हर बार सफलता मिली है। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव ‘सिद्ध’ से उनकी समाज सेवा की जो शुरूआत हुई, वह आज भी जारी है। महाराष्ट्र सरकार से इन कई दशकों में उनका कई बार ‘अनशन’ के माध्यम से दो-दो हाथ हो चुका है। सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की एक ही जगह पर तीन बरसों के भीतर दोबारा पदस्थापना नहीं करने की उनकी मांग पर महाराष्ट्र सरकार झुकी थी, वहीं मंत्रियों की खिलाफत में भी सरकार को मुंह की खानी पड़ी थी। सूचना के अधिकार कानून के लिए भी उन्होंने अनशन किया था।
अन्ना हजारे के अब तक आंदोलनों पर नजर डालें तो पाते हैं कि उनके सभी आंदोलन गांधीवादी व अहिंसक रहे और लाखों-करोड़ों लोगों का उन्हें समर्थन मिला। अब वे मजबूत लोकपाल बिल अर्थात जनलोकपाल बिल लाने के लिए अनशन का सहारा ले रहे हैं, वह भी अहिंसक है। वे बार-बार देश की अवाम को यही कहते रहते हैं कि कोई भी परिस्थिति में हिंसा नहीं करनी है और न ही, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना है। इस बात का समर्थन उन्हें मिल भी रहा है। अन्ना के अनशन को कई दिन हो गए हैं, लेकिन देश में किसी भी जगह से ऐसी किसी हिंसा की बात सामने नहीं आई है। यह किसी भी आंदोलन की सफलती की कहानी कहती है। यही लड़ाई सरकार के लिए फजीहत बन गई और सरकार को न तो खाते बन रही है और न ही उगलते। सरकार ने अन्ना हजारे पर भ्रष्टाचार समेत अन्य गंभीर आरोप लगाए, मगर यह दांव उल्टा पड़ गया और अन्ना की आंधी के आगे सरकार ठिठक कर रह गई। जनता ने अन्ना का पूरा समर्थन किया और सरकार के कारिंदे एक-दूसरे को कोसते रहे कि अन्ना पर व्यक्तिगत हमला नहीं करना चाहिए था।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का भी इस विधेयक को लेकर ढुलमुल रवैया नजर आ रहा है। कभी वे कहते हैं कि प्रधानमंत्री को भी इसके दायरे में आना चाहिए, फिर कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों से मशविरा बाद यह बात कही जाती है कि सरकार को यह मंजूर नहीं कि जो लोकपाल बिल बने, उसके दायरे में प्रधानमंत्री भी आए। यहां हमारा यही कहना है कि आखिर यूपीए सरकार इतनी डरी-सहमी क्यों है ? जब उनके प्रधानमंत्री ईमानदार माने जाते हैं, ये अलग बात है कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान आजाद भारत में सबसे अधिक भ्रष्टाचार हुए हैं। सरकार में बैठे मंत्री, खासकर वे जो जन लोकपाल बिल का विरोध कर रहे हैं, शायद उन्हें यह लगता होगा कि टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए. राजा ने प्रधानमंत्री की ओर उंगली उठाई है और यहां तक मुंह खोल दिया कि वे जो भी करते रहे, वह पहले से चलता आ रहा था तथा उसकी जानकारी प्रधानमंत्री को थी। इस बात का खुलासा होने के बाद शुतुरमुर्ग की तरह सोया विपक्ष के भी कान खड़े हो गए और वे प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़े करने लगे। विपक्ष के निशाने पर प्रधानमंत्री आ गए। यही बात है, जो शायद सरकार को डरा रही है, नहीं तो प्रधानमंत्री को दायरे में आखिर कैसी हिचक होनी चाहिए।
संविधान में कई फेरबदल की बात या अन्य पेचीदगियों का हवाला देकर प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल से बाहर रखने की बात पर जोर दे रहे हैं, किन्तु हमारा यही कहना है कि यही वह सरकार है, जो जनतंत्र की नींव मजबूत करने के लिए देश की जनता को 2005 में ‘सूचना का अधिकार’ कानून समर्पित करती है। जो आज हर जागरूक जनता का मजबूत हथियार है, जिसके बदौलत कई घपले भी उजागर हुए हैं और व्यूरोक्रेसी भी तिलमिलाई हुई है। इसे इसी बात से जाना जा सकता है कि इसी साल 8 आरटीआई ( सूचना के अधिकार ) कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई। खैर, सूचना का अधिकार के अलावा एक बात और है, जब हम संविधान को सर्वोच्च मानते हैं और चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री या उसके बाद वे अपनी संपत्ति की घोषणा कर एक मिसाल पेश करते हैं तो फिर खुद को लोकपाल के दायरे में लाने, हिचक क्यों ? यह एक ऐसा सवाल है, जिसे देश की जनता पूछ रही है।
अन्ना हजारे के जनलोकपाल बिल तथा संसद की स्टैंडिंग कमेटी के पास पहुंचा सरकारी लोकपाल बिल में वैसे मतभेद कई हैं, मगर तीन बातों पर प्रमुख रूप से मतभेद हैं। इनमें पहला प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की है, जो मांग अन्ना टीम ने की है, मगर सरकार इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती। जनलोकपाल के ड्राफ्ट में ज्यूडिशरी को शामिल करने के साथ सांसदों से लेकर बड़े से छोटे अधिकारियों-कर्मचारियों को दायरे में लाने की अन्ना की टीम कवायद कर रही है। इस मामले में भी सरकार नहीं चाहती कि ज्यूडशरी, लोकपाल के दायरे में आए।
अब तो एक तीसरे लोकपाल बिल का ड्राफ्ट को तैयार किया गया है, वह है समाजसेवी अरूणा राय व उनकी टीम ने। इसे प्राइवेट प्रस्ताव रखकर संसद में पेश कराने की तैयारी है, हालांकि इसमें अन्ना हजारे की तरह जोर नहीं दिया गया है कि सरकार उनकी बात या ड्राफ्ट को स्वीकार करे। दूसरी अन्ना हजारे व उनकी टीम का कहना है कि वे जनलोकपाल बिल से कम कुछ नहीं चाहते। सरकार की ओर से अभी तक स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा है, बस इतना कहा जाता है कि बातचीत के रास्ते खुल हैं और अन्ना टीम का भी बयान आता है कि वे भी बातचीत करने तैयार हैं, लेकिन आखिर यह पहल करने तो कौन ? किसी को तो आगे आना होगा, तभी बिल पर विचार-विमर्श हो सकेगा, नहीं तो ऐसा ही चलता रहेगा।
सरकार अकड़ी बैठी रहेगी और अन्ना, अपना अनशन जारी रखेंगे, जनता भी पल-पल पर नजर बनाए रखी हुई है। मीडिया भी लोगों की आंख-कान बने बैठा है। सवाल यह है कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन ? जनता तो चाहती है कि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो, उन्हें यह नहीं मालूम हो कि इसके लिए कारगर ‘लोकपाल बिल’ कौन सा होगा ? अवाम की सोच यही है कि देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो और भ्रष्टाचारियों की कारगुजारियों पर लगाम लगे और कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत तरक्की करे। यह सही भी है कि देश के विकास को भ्रष्टाचार ने लील लिया है। भ्रष्टाचार कर विदेशो में धन जमा कराकर देश को खोखला किया जा रहा है। यही कारण है कि भ्रष्टाचार मिटाने की एक आवाज पर देश की करोड़ों जनता सड़क पर उतर आई है। उसे यह मतलब नहीं कि कौन क्या चाहता है, सरकार क्या चाहती है। जनता को बस भ्रष्टाचार मुक्त भारत चाहिए, जिसके बाद उनकी खुशहाली व तरक्की की राह खुलती है।


राजकुमार साहू
लेखक जांजगीर, छत्तीसगढ़ में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार हैं। पिछले दस बरसों से पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और स्वतंत्र लेखक, व्यंग्यकार तथा ब्लॉगर हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा - 074897-57134, 098934-94714, 099079-87088

Views: 228

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
19 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service