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देखो,
यह कलयुगी मानव,
कैसा है ?
यह कलयुगी मानव !
जिसका जीवन यंत्रो जैसा,
आखो में लालच है,
लालच इसकी न चेहरे पर भाव !
झूठ इसकी है बुनियाद !
बईमानी इसकी है आदत !
धोखा इसका है स्वभाव !
हर पल में इसका अभिनय बनता,
बातो में इसके छलावा पन !
हर पल में नया चरित्र है बनता !
देख कर अवसर वार यह करता !
रहता हरदम चोक्न्ना देखो,
यह कलियुगी मानव !
कैसा है ?
यह कलयुगी मानव !!

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2010 at 10:30am
आदरणीया पूजा सिंह जी, बहुत ही सही विवेचना किया है आपने इस कलयुगी मानव का, सरल शब्दों का प्रयोग इसे सुंदर कृति का रूप देते है , बधाई स्वीकार करे इस बेहतरीन अभिव्यक्ति पर, उम्मीद करते है कि आगे भी आप की और रचनायें तथा अन्य रचनाओं पर आपकी बहुमूल्य विचार पढ़ने को मिलेंगे |

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