For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वफ़ा के दायरे - लघु कथा

"बख्श दे ख़ता, गर ख़ता की सजा है ये जिंदगी।
दुआ या बददुआ, अब सही नहीं जाती ये जिंदगी।"
खाने की ओर नजर भर देख उस्मान मियां ने खुदा की इबादत में हाथ ऊपर उठा दिए।
कभी जिंदगी को अपने अंदाज में जीने वाले उस्मान मियां अब पेट की आग भरने के लिए भी दुसरो की झूठन के मोहताज थे। आज भी किसी दावत की प्लेट में बचा खाना उठा लाये थे। अभी दो कोर ही मुँह में गये थे कि 'शैरी' अपने 'पिल्लो' समेत बीच में मुँह मारने की कोशिश करने लगी और मियाँ अपनी प्लेट बचाने की कोशिश में लग गये। उसे दुत्कारना तो उनके वश में था नहीं क्योंकि एक यही थी जो अब तक साथ थी वर्ना तो सभी एक एक कर उन्हें छोड़ गए थे।
प्लेट खाली होती देख शैरी ने भौंकना शुरू कर दिया मानो अपने बच्चों की याद दिला रही हो। मियाँ घबरा कर और भी सिमटने लगे। शैरी की 'भौं भौं' अनायास ही उन्हें अतीत में खींच ले गयी।......
"नीच ! हमारी थाली के अन्न को छूने की जुर्रत की तूने ?" शोरशराबे की आवाज पर, मुट्ठी में सालन भरी रोटी लिए नौकर पर भौंकती शैरी को देख वो आपे से बाहर हो गए थे। "निकल जा अभी का अभी हवेली से।"
"हुजूर ! मेरी खता बख्श दे, अपने बच्चे की भूख नहीं देखी गयी मुझसे, बस इसलिए मैं......" कहता हुआ खैरु पैरो में गिर पड़ा था।
मगर पत्थर भी कहीं पिघलते है, मियाँ के मन का शैतान हँसने लगा था। "अच्छा ! जा बख्श दी खता, ले पकड़ ये बोतल, रात भर की खितमत तुझे माफ़ी और रोटी दोनों देगी।" कहते हुए मियाँ अपनी जश्न-ए-महफ़िल में खो गए थे।........
शैरी की भौं भौं की तीखी आवाज ने उनको वापस वर्तमान में ला पटका। वो अपने बच्चों की भूख बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और मियाँ अपना हिस्सा देना नहीं चाहते थे। एकाएक शैरी अपनी वफादारी भूल मियां के हाथ से अपना हिस्सा ले भाग खड़ी हुयी।
पल भर में हाथ में आये जख्म से रिसते लहू को देख मियाँ की नजरों के आगे अँधेरा छाने लगा और इन्ही अंधेरो में कही दूर से आती खैरु की आवाज उन्हें बेचैन करने लगी। "हुजूर पेट की आग ऊंच नीच और वफ़ा के दायरे नहीं देखती अब चाहे वो जानवर हो या फिर कोई इंसान।"
घिरते अँधेरे और लम्हा दर लम्हा उखड़ती साँसों के बीच उनके जहन में गूँजने लगी वही बात जिसने बरसो से उनका सकून छीना हुआ था। "हजूर.....हजूर.... खैरु का बच्चा रात भूख से मर गया, हजूर !"
(मौलिक व् अप्रकाशित)
विरेंदर 'वीर' मेहता

Views: 461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 6, 2016 at 10:58am

सर्वप्रथम ओ बी ओ  पर  न  आने  के  कारण  जवाब देने में देरी  के  लिए क्षमा.. भाई  शेख शहजाद उस्मानी  जी  कथा  पर  आपकी  स्नेहिल टिप्पणी  के  लिए  दिल  से  आभार ...   रचना  में  'शैरी' नाम शायद  आप  को  अच्छा  नहीं  लगा,  लेकिन  वस्तुतः भाई  जी  ये नाम  मैंने  वास्तविक जीवन की एक  घटना  से  लिया  इसलिए  इसे  मैंने  इसे  परिवर्तित नहीं  किया  .... सादर . 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 6, 2016 at 10:53am

सर्वप्रथम ओ बी ओ  पर  न  आने  के  कारण  जवाब देने में देरी  के  लिए क्षमा...  आदरणीय समर  कबीर  जी रचना  आप को  अच्छी  लगी  उसके लिए दिल  से  आभार... बस  यूँ समझिये  कि कथा  में  कही  बात पाठक तक  पहुचने का प्रयास सफल हो  यही  रचनाकार का पहला लक्ष्य  होता  है ... सादर ...

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 29, 2016 at 7:34pm
भूख संदर्भित बेहतरीन कथ्य सम्प्रेषित करती चित्र खींचती रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको मोहतरम जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता जी। बढ़िया शिल्प। नाम - 'शैरी' की जगह कोई आम नाम शायद अच्छा लगता।
Comment by Samar kabeer on August 29, 2016 at 2:54pm
जनाब वीरेंद्र वीर मेहता जी आदाब,बहुत बढ़िया लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service