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कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२


जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते
कौन क्या कहता नहीं अब कान देते 

 
आपके निर्देश हैं चर्या हमारी
इस जिये को काश कुछ पहचान देते

जो न होते राह में पत्थर बताओ
क्या कभी तुम दूब को सम्मान देते ?

बन गया जो बीच अपने हम निभा दें
क्यों खपाएँ सिर इसे उन्वान देते

दिल मिले थे, लाभ की संभावना भी,
अन्यथा हम क्यों परस्पर मान देते ?

जो थे किंकर्तव्यविमूढों-से निरुत्तर
आज देखा तो मिले वे ज्ञान देते

आ गये फिर फूल क्या 'सौरभ' हॄदय में
दिख रहे हैं लोग फिर गुलदान देते
***
सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित) 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey 18 minutes ago

प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि भाईजी। 

  

किंकर्तव्यविमूढ़ों में तव्य के व्य को एक गिन कर उसे एक गाफ की तरह प्रयुक्त किया गया है। मुझे भान है कि तव्य के व्य को एक गिनने में कई सहज नहीं होंगे। यह वस्तुत: उक्त तत्सम शब्द के उच्चारण की प्रतिकृति है। 

सादर 

Comment by Ravi Shukla on November 16, 2025 at 9:29am

आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई

सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती हम नहीं कर पा रहे हैं कृपया इस पर सहायता कीजिएगा।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 12, 2025 at 1:02pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद .. 

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 5, 2025 at 10:36pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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