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राजनीतिक पार्टिया मिल कर कल खूब बंद-बंद का त्योहार मनाया, भारत बंद के नाम पर लफंगो का समूह सरेआम गुंडागर्दी करते देखे गये, आम जनता पूरे दिन बंद की चक्की मे पीसती रही, एक आकलन के मुताबिक देश को 13 हज़ार करोड़ का चूना लगा जो अंततः भारत के आम जनता को ही किसी ना किसी माध्यम से भुगतना होगा, पूरे दिन के एकदिवसीय बंद-बंद टूर्नामेंट खेलने के बाद शाम मे खिलाड़ी मज़े से गला तर करते हुये अपनी अपनी जीत का दावा करते रहे, कौन जीता कौन हारा यह तो पता नही पर भारत की आम जनता पूरी तरह से हार गई इसमे तो कोई शक नही ही है,
खैर जो बीत गया वो बीत गया पर सवाल है क़ि क्या महगाई के विरोध मे किये गये भारत बंद से अब हम भारतीयो को महगाई से निजात मिल जाएगी ? कृपया आप सभी अपनी राय दे,

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मैं आप लोगो की बात से सहमत हूँ की बंद से नुकसान होता हैं और हमें ही कही न कही से भरपाई करना होगा लेकिन इस बेसरम सरकार को ये बात कैसे समझाया जाय ओ हिज्रो की फौज लेकर राज करने वाले डाक्टर मनमोहन सिंग आज से एक साल पहले जब डीजल १५०% /बेरल था और आज ८० के आस पास हैं तो फिर क्या जरुरत थी रेट बढ़ने का और साथ में आप लोगो को बता दू सब कोई सरकारी नोकरी नहीं करता हैं की सरकार महगाई भाता दे रही हैं और आप राज कर रहे हैं , आप उस गरीब के पास खड़ा होकर देखे समझ में आ जायेगा बिरोधी पार्टी का बंद जाएज हैं , अगर मेरी बात गलत लगी हो तो मुझे माफ़ करना दोस्तों ,
गुरु जी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है की पेट्रोलियम पदार्थो का मूल्य बढ़ने से आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, पर सवाल यह उठता है कि सही बात भी कहने का तरीका क्या सही था ? इस बवाल को अंजाम देने मे कितने लोग आम जनता मे से थे ? कितने लोग apni pratisthano को sweksha से band kiyey थे ,

आम जनता के द्वारा चुनी गई सरकार और उनके मंत्रिमंडल को हिजड़ा कह कर संबोधित करना कितना उचित है? यह मंच ऐसे शब्दों के प्रयोग कि निंदा करता है, वैसे यह आपकी अपनी राय है, हो सके तो इसे एडिट कर ले, धन्यवाद,
आम जनता के द्वारा चुनी गई सरकार और उनके मंत्रिमंडल को हिजड़ा कह कर संबोधित करना कितना उचित है? यह मंच ऐसे शब्दों के प्रयोग कि निंदा करता है, वैसे यह आपकी अपनी राय है, हो सके तो इसे एडिट कर ले, धन्यवाद,


आप के बात से मैं सहमत लेकिन उनका क्या कहा जाये जो मूक दर्सक बन के देख रहे हैं और जो इधर के हो न उधर के उन्हें हिजड़ा ही संबोधन किया जाता हैं अगर आपको इस सब्द से आपको एतराज हैं तो हम अपना सब्द वापस ले रहा हूँ और उसके जगह पर दोयम किसिम के लोग की फ़ौज बोलता हु धन्य बाद सर
kahne sunne ke din gaye
ab kahne ya sunne se nahi hoga

kuch thos kar ke dikhana hoga......hame khud hi satta me ana hoga

yahan hame se matlab hai imandar,saaf suthre...aur yuva jo desh ki tarakki aur garibi se nizaat dilana chahte hai....

politics is not a business bt these leaders made it like that......

system me badlauw lana hoga.....kranti ki mashal jalani hogi.........
बिरेश जी , बिलकुल सही आप कह रहे है, सत्ता से दूर रहकर नेताओं को गाली देने से अच्छा है की इमानदार और स्वच्छ छवि के लोग चुनाव लड़े और जीते , बहुत ही उम्द्दा ख्यालात है आपके, धन्यवाद,
MAHANGAI KE VIRODH ME BAND SAHI TARIKA BILKUL NAHI HAI
to aap hi btaye ki sahi tarika kia hai???

hum agli baar se wahi apnayenge.......

galti dhundna asan hota hai

pr uske nedaan bhi to kahye????
hum chup bhi to nahi baith sakte na??

The Bharat Bandh, like many large-scale protests, had both losses and gains. On the negative side, it disrupted normal life, causing inconvenience to the public, economic losses, and potential harm to small businesses. However, it drew attention to critical issues, such as farmers' rights and labor concerns, amplifying these voices on a national scale. It also spurred discussions and negotiations with authorities, highlighting the power of collective action in a democracy. Ultimately, the impact of such protests depends on subsequent actions and resolutions.

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