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ये एक ऐसा विषय है जिस पर आज तक कोई सार्थक बहस नहीं हो पाई, आज ट्यूशन फैशन के साथ जरूरत भी बन गया है, बिना ट्यूशन बच्चा नर्सरी भी पास नहीं कर पाता है, इस स्तर पर ही बच्चे को पंगु बनाने में कोई कसर नहीं छोडी जाती है. फिर तो पूरी शिक्षा ट्यूशन भरोसे, क्या वो बच्चा कल एक स्वालम्बी नागरिक बन पायेगा. इस विषय पर आपके विचारों को आमंत्रित कर रहा हूँ, साथ ही इस बारे में किये गए खुद के शोध भी आपके साथ बाटूंगा. हमारे प्रयासों से आने वाली पीढी का सही मार्गदर्शन हो सकता है.

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हम सब इसी रोग के मारे है आशुतोष जी सब भेड़िया धसान है | एक अंधी दौड़ जिसमें हर माँ बाप को अपने संतान में डाक्टर इंजिनीअर ही दीखता है और जन्म लेते ही तैय्यारी शुरू हो जाती है ... हाँ बचपन छिन रहा है आज की पीढ़ी से पर फ़िक्र किसे है | सब भौतिकता का खेल है | अबोध बच्चे अपने हक़ की आवाज़ उठायें भी तो kaise | खेल कूद भी उनका अधिकार है |

aur haan bachchon ko bhee ek "ANNA"chahiye unki awaaz unhin ke ghar men pahunchaane waala |

बच्चों को ट्यूशन भेजना उन माता पिता की मजबूरी हो सकती है जिन्हे अपने कार्य की वजह से समय नही मिल पता बाकी माता पिता कम से कम प्रायमरी स्तर की शिक्षा तो खुद दे सकते है ,जिस विषय मे पारंगत ना हो उसका अध्ययन कर बच्चे को सीखा सकते है लेकिन देखा ये गया है की माता पिता बच्चे को ट्यूशन भेज कर अपनी ज़िम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहते है. 

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