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ਲਾਰਾ ਲੱਪਾ ਲਾਰਾ ਲੱਪਾ ਲਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਗਾਹਾਂ ਹੀ ਪਾਈ ਰੱਖਦੇ  

ਵਕਤ ਨੂੰ ਥੋੜਾ ਜਿਹਾ ਟਪਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਵਕਤ ਨੂੰ ਵਖਤਾਂ ‘ਚ ਪਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਦੁਨੀਆਂ ਨੂੰ ਐਵੇਂ ਹੀ ਨਚਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਝੂਠੀ ਜਿਹੀ ਆਸ ਬੰਨਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਅੱਜ ਨੂੰ ਕੱਲ ਹੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਝੂਠ ਨੂੰ ਸੱਚ ਹੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਭੋਲ਼ੇ-ਭਾਲ਼ੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਉਲ਼ਝਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਖਹਿੜੇ ਜਿਹੇ ਪਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਕਦਮਾਂ ‘ਚ ਉਡੀਕ ਨੂੰ ਵਿਛਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਨੈਣਾ ‘ਚ ਸੁਪਨੇ ਸਜਾਈ ਰੱਖਦੇ 

ਲਾਰਾ ਲਾ ਕੇ ਉਮਰਾਂ ਟਪਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਲਾਰਾ ਲੱਪਾ ਲਾਰਾ ਲੱਪਾ ਲਾਈ ਰੱਖਦੇ !

ਡਾ. ਹਰਦੀਪ ਕੌਰ ਸੰਧੂ ( ਬਰਨਾਲ਼ਾ-ਪੰਜਾਬ)

ਸਿਡਨੀ-ਆਸਟ੍ਰੇਲੀਆ

 

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Replies to This Discussion

ਹਰਦੀਪ ਜੀ, ਤੁਹਾਡੀ ਏਹ ਕਵਿਤਾ ਛੋਟੀ ਹੈ ਪਰ ਮੈਨੂ ਚੰਗੀ ਲਗੀ, ਇਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਲੈਕੇ ਕੁਛ ਮੈਂ ਵੀ ਲਿਖੇਯਾ ਹੈ,

ਲਾਰਾ ਲੱਪਾ ਲਈ ਰਖਦੇ
 
ਐਂਵੇਂ ਹੀ ਸਿਆਪਾ ਪਾਯੀ ਰਖਦੇ
ਅਖਾਂ ਚ ਝੂਠੇ ਖ਼ਾਬ ਸਜਾਯੀ ਰਖਦੇ
ਅਮੀਰਾਂ ਨਾਲ ਦੋਸਤੀ ਬਨਾਯੀ ਰਖਦੇ
ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਤੋਂ ਫ਼ਾਸਲੇ ਵਧਾਯੀ ਰਖਦੇ
ਜ਼ਬਾਨ ਤੇ ਕੋੜੀ ਦਵਾਯੀ ਰਖਦੇ
ਰਿਸ਼ਤੇਯਾਂ ਚ ਅੱਗ ਲਗਾਯੀ ਰਖਦੇ
 ਆਪਣੀ ਜਾਨ ਧੋਖੇ ਚ ਫ਼ਸਾਯੀ ਰਖਦੇ
ਰਾਜ਼ ਸਾਰੇ ਯੋ ਛੁਪਾਯੀ ਰਖਦੇ
ਰੱਬ ਨਾਲ ਵੀ ਦੁਸ਼ਮਣੀ ਪਾਈ ਰਖਦੇ
ਲਾਰਾ ਲੱਪਾ ਲਾਰਾ ਲੱਪਾ ਲਾਯੀ ਰਖਦੇ
ਸੁਰਿੰਦਰ ਰੱਤੀ
ਮੁੰਬਈ

ਚੰਗਾ ਲੱਗਾ ਸੁਰਿੰਦਰ ਜੀ ਤੁਹਾਡਾ ਲਿਖਿਆ ਪੜ੍ਹ ਕੇ !

ਝੂਠੇ ਖਾਬ ਸਜਾਈ ਰੱਖਦੇ

ਜ਼ੁਬਾਨ 'ਤੇ ਕੌੜੀ ਦਵਾਈ ਰੱਖਦੇ....

ਵਾਹ ....ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ !

 

ਹਰਦੀਪ

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