नमस्कार साथियों,
"चित्र से काव्य तक" अंक -९ प्रतियोगिता से संबधित निर्णायकों का निर्णय आपके समक्ष प्रस्तुत करने का समय आ गया है | इस बार भी प्रतियोगिता में निर्णय करना अत्यंत दुरूह कार्य था जिसे हमारे निर्णायकों श्री संजय मिश्र 'हबीब' व श्रीमती वंदना गुप्ता नें अत्यंत परिश्रम से संपन्न किया है जिसके लिए हम उनका हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं |
लगातार तीन दिनों तक चली इस प्रतियोगिता के अंतर्गत कुल ५२० रिप्लाई आयीं हैं इनके अंतर्गत अधिकतर छन्न -पकैया, दोहा, कुंडली, गज़ल, गीत, बरवै, हाइकू, क्षणिकाएं व छंदमुक्त सहित अनेक विधाओं में रचनाएँ प्रस्तुत की गयीं, सर्व प्रथम आदरणीय प्रधान सम्पादक जी नें अपने शानदार छन्न-पकैया छंदों से इस आयोजन का श्रीगणेश किया जो कि अत्यंत मनोहारी रहा, तदपश्चात् जब उनके छन्न-पकैया पर छन्न पकैया छंदों में ही प्रतिक्रियायें दी गईं तो सम्पूर्ण वातावरण ही छन्न-पकैया-मय हो गया फिर तो प्रतिक्रियाओं में छन्न -पकैया का कुछ ऐसा दौर चला कि सर्वत्र आनंद ही आनंद हो गया | इस प्रतियोगिता में समस्त प्रतिभागियों के मध्य, आदरणीय संजय मिश्र 'हबीब' , आदरणीय अविनाश बागडे जी, आदरणीया श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी, धर्मेन्द्र कुमार सिंह, व आदरणीय गणेश जी बागी जी, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, आदरणीय धर्मेन्द्र शर्मा जी, आदि ने अंत तक अपनी बेहतरीन टिप्पणियों के माध्यम से सभी प्रतिभागियों व संचालकों में परस्पर संवाद कायम रखा, न केवल यह वरन उन्होंने अपनी प्रतिक्रियाओं में छन्न-पकैया, दोहा, कुण्डलिया, कह मुकरी व घनाक्षरी आदि छंदों का खुलकर प्रयोग करके इस प्रतियोगिता को और भी आकर्षक व रुचिकर बना दिया | इस आयोजन में उत्साहवर्धन हेतु आदरणीय श्री आलोक सीतापुरी जी, श्री योगराज प्रभाकर जी, श्री संजय मिश्र 'हबीब' जी, श्रीमती वंदना गुप्ता, श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी, श्री सतीश मापतपुरी जी आदि नें भी प्रतियोगिता से बाहर रहकर मात्र उत्साहवर्धन के उद्देश्य से ही अपनी-अपनी स्तरीय रचनाएँ पोस्ट कीं जो कि सभी प्रतिभागियों को चित्र की परिधि के अंतर्गत ही अनुशासित सृजन की ओर प्रेरित करती रहीं, साथ-साथ इन सभी नें अन्य साथियों की रचनायों की खुले दिल से निष्पक्ष समीक्षा व प्रशंसा भी की जो कि इस प्रतियोगिता की गति को त्वरित करती रही |
बंधुओं ! हम सभी आदरणीय योगराज जी के अत्यंत आभारी हैं कि उन्होंने इस लुप्तप्राय विधा छन्न -पकैया को इस मंच पर जीवित किया केवल यही नहीं वरन इससे पूर्व भी वह एक और लुप्तप्राय विधा कह -मुकरी विधा को इसी मंच पर ही इस नया आयाम दे चुके हैं| यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता छंदबद्ध होकर अपेक्षित गुणवत्ता की ओर अग्रसर हो रही है...........
इस यज्ञ में काव्य रूपी आहुतियाँ डालने के लिए सभी ओ बी ओ मित्रों का हार्दिक आभार...
प्रतियोगिता का निर्णय कुछ इस प्रकार से है...
प्रथम स्थान : श्री दिनेश मिश्र 'राही' जी
अभिमान कभी न भरैं उर मा अरमान सदा उत्साह भरैं.
विकलांग हूँ तो कोई बात नहीं बस ईश हमार सहाय करैं.
परवाज भरूं बिनु पंख यहाँ कुविचार भगें व कुछांह जरैं.
फ़ुटबाल उडै नभ बीच सदा खुशियाँ धरि दीप प्रकाश झरैं..
उत्साह में कोइ कमी न रहै नित नीति के संग उड़ान भरूं .
विकलांग हूँ जो अभिशाप नहीं चहुँ ओर अदम्य उड़ान भरूं.
फ़ुटबाल ही लक्ष्य जो साध सदा अब राष्ट्र निमित्त उड़ान भरूं.
बइसाखि ही पांव हमार लगें न थकैं, हुलसाय उड़ान भरूं..
द्वितीय स्थान ; श्रीमती मोहिनी चोरड़िया जी
नियति से मिला है
इन्हें ये रूप
बनाकर असमर्थ असहाय
कर दिया कुरूप,
जिंदगी बेबस हुई
कोई गीत
कोई प्रीत
कोई मीत नहीं
माता -पिता तक मारने की
सोचते हैं इन्हें
जन्मते ही
समझते हैं बोझ इन्हें ,
लेकिन कुछ
इन्हें जीने देने की कसम
खाते हैं
सिर्फ जीने देने की ही नहीं
इज्जत से जीने की
शायद वे समझते हैं कि
ये बच्चे असहाय , अपूर्ण
हो सकते हैं
अयोग्य नहीं
इन्हें दया की भीख की नही
जरुरत है प्रेम की
प्रेम जो योग्यता को निखारता है
प्रेम जो जीने का ज़ज्बा देता है
प्रेम मिलने पर देखें
कैसे उड़ान भरते हैं सपने इनके
और इसी समय
कई संभावनाएं जन्म लेती हैं
कुछ असंभव नहीं रहता
प्रेम बन जाता है प्रेरणा
प्रेम बन जाता है हौसला
और उड़ान सिर्फ परों से नहीं
हौसलों से होती है
जैसा कि चित्र में दर्शाया है
बैसाखी ,चेहरे की चमक
चेहरे की चमक हौसला है
सिर्फ बैसाखी ही नहीं
हौसला फुटबाल खिलाता है
ओलंपिक तक में मेडल दिलाता है
उस समय ये जांबाज़ बन जाते हैं
विजेता
विजेता जिंदगी के खेल के
प्रेम के साथ सम्मान पाकर
गुनगुना उठती है ज़िंदगी
हाथ उठ जाते हैं सम्मान में उसके
जिसने गिराया उठाया भी उसी ने |
तृतीय स्थान : श्री महेंद्र आर्य जी
जिंदगी के खेल में हम सब फ़ुटबाल हैं
समय खेलता हमें दे देकर ताल है
लात इक करारी जब सीने पर पड़ती है
कष्ट थोडा होता है , कसक थोड़ी गड़ती है
लेकिन ये लात हमें उड़ा ले जायेगी
जीवन का गोल जहाँ वहां ले जायेगी
उन्नति का रास्ता - बस यही उछाल है
जिंदगी के खेल में ............................
इन से ही सीखिए, जिंदगी का फलसफा
इतना कुछ खोकर भी , जीवन से न खफा
मुश्किलें फ़ुटबाल है , लात खा के भागेगी
ऐसे ही खेल से किस्मत फिर जागेगी
खेलते हैं बाँकुरे , क्या बेमिसाल हैं
जिंदगी के खेल में ...............
प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान के उपरोक्त सभी विजेताओं को सम्पूर्ण ओ बी ओ परिवार की ओर से हार्दिक बधाई...
प्रथम व द्वितीय स्थान के उपरोक्त दोनों विजेता आगामी "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१० के निर्णायक के रूप में भी स्वतः नामित हो गए हैं, तथा आप दोनों की रचनायें आगामी अंक के लिए स्वतः प्रतियोगिता से बाहर होगी |
जय ओ बी ओ!
अम्बरीष श्रीवास्तव
अध्यक्ष,
"चित्र से काव्य तक" समूह
ओपन बोक्स ऑनलाइन परिवार
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तीनो विजेतायों आदरणीय दिनेश मिश्र राही जी, श्रीमती मोहनी चोरडिया जी एवं आदरणीय महेंद्र आर्य जी को हार्दिक बधाई. निर्णय के लिए निर्णायक मंडल को भी कोटिश: साधुवाद.
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