आखिर क्यों डालें हम अपना वोट ?
वर्तमान में इस चुनाव के रूप में हमारे समक्ष लोकतंत्र का महान पर्व आ उपस्थित हुआ है ! आज लगभग सभी प्रत्याशी अपने अपने लुभावने वादों के साथ हमारे द्वार पर एक साथ आ खड़े हुए हैं ! सारे के सारे अपनी-अपनी दलीलें दे रहे हैं........जबकि हम किंकर्तव्यविमूढ़ है | यह तो हम भी जानते हैं कि एक बार चुनाव जीतने के बाद इनमें से कोई भी हमें पहचानेगा तो क्या अपितु अपनी शक्ल तक नहीं दिखायेगा यदि दिखायेगा भी तो सिर्फ टी० वी० चैनल व समाचार पत्रों के माध्यम से ही...........हममें से बहुतेरे सामान्य मतदाता बिना स्वयं के सोंचे-विचारे अपने किसी अभिन्न मित्र या रिश्तेदार या बिरादरी के मुखिया आदि के कहने पर अथवा कुछ स्वार्थवश किसी भी उम्मीदवार को अपना बेशकीमती वोट दे देते हैं, जबकि विवेकी मतदाता इस सिस्टम से त्रस्त होकर या फिर आलस्यवश मतदान ही नहीं करते ! वे शायद यह नहीं सोंचते कि अपने मताधिकार का प्रयोग न करके वस्तुतः उन्होंने जोड़-तोड़ में माहिर किसी भी अयोग्य उम्मीदवार को पाँच साल की अवधि के लिए वास्तव में लूट का लाइसेंस ही दिला दिया है ! इसलिए हमारे विचार में आज के सिस्टम को कोसने के बजाय जाति, धर्म/मज़हब, भय व गुटबंदी इत्यादि से ऊपर उठकर निःस्वार्थ रूप से एक सच्चे भारतीय के कर्तव्य व दायित्व का निर्वहन करते हुए केवल स्वयं के विवेक पर ही भरोसा करना ही उचित है | अतः चुनाव के दिन बिना किसी आलस्य के प्रातःकाल उठकर सर्वप्रथम मतदान अवश्य ही करना चाहिए क्योंकि इतने उम्मीदवारों में कोई न कोई एक तो अवश्य ही उपयुक्त होगा और हमारी उम्मीदों पर सिर्फ वही खरा उतर सकता है .........जैसा कि प्रख्यात शायर दुष्यंत कुमार नें भी कहा है .....
“रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों,
कौन कहता है आकाश में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों |”
अतएव ......
लोकतंत्र के पर्व में, गाफ़िल मत हों लोग.
निज पर ही विश्वास कर, ‘मत’ का करें प्रयोग..
--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव
अध्यक्ष संस्कार भारती सीतापुर
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इस ताक़ीद के लिये सादर धन्यवाद. लोकतंत्र के पर्व को सोत्साह परन्तु खुली आँखों मनाने की ज़रूरत है.
बहुत-बहुत धन्यवाद.
सत्य वचन मित्रवर ! आपका हार्दिक आभार .....
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