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हमारा शक सही हो ऐसा अक्सर नहीं होता,
हर आदमी के हाँथ में पत्थर नहीं होता.

मेरे दुखों की बाबत मुझसे न पूछिए,
जो ज्वार को रोये वो समुन्दर नहीं होता.

मैं अपने घर के लोगों से मिलता हूँ उसी रोज,
जिस रोज मेरे घर मेरा दफ्तर नहीं होता.

सच बोलता हूँ मान न होने का गम नहीं,
नासूर कितने होते जो नश्तर नहीं होता.

कितने बरस से बन रही हैं योजनाएं पर,
लाखों हैं जिनके सर पर छप्पर नहीं होता.

गढ़ते हैं किले आपके कर पेट पीठ एक,
उनको नसीब फूलों का बिस्तर नहीं होता.

गांधी की राह पर अगर हम चल रहे होते,
पेशे नज़र ये आज का मंज़र नहीं होता.

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on October 11, 2010 at 12:54pm
बागी जी आपका ये स्नेह हौसला बढाता है .सिलसिला चलता रहे यही प्रयास रहेगा.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 11, 2010 at 9:24am
कितने बरस से बन रही हैं योजनाएं पर,
लाखों हैं जिनके सर पर छप्पर नहीं होता.

जमीन से जुड़ा यह शे'र, बहुत ही खूबसूरती से अपनी जज्बात को आपने कह दिया है ,

गांधी की राह पर अगर हम चल रहे होते,
पेशे नज़र ये आज का मंज़र नहीं होता.

वाह वाह वाह, बहुत बड़ी बात कह गये है अभिनव साहब, दाद देता हूँ , बधाई स्वीकार करें ,

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