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सचिवालय के बड़ा बाबू सिन्हा साहब के घर पुलिस आई हुई थी | उनके लड़के को गिरफ्तार करने के लिये | लड़का बी.ए पार्ट वन का छात्र था और उसपर अपनी सहपाठिन के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में झूठी गवाही देकर अदालत को गुमराह करने, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने तथा भोले-भाले निर्दोष युवकों पर बेबुनियाद इल्जाम लगा के उन्हें फंसाने की साजिश करने का आरोप साबित हो चुका था |

घर के बाहर मोहल्लेवालों की अच्छी-खासी भीड़ जमा थी | पड़ोस के शर्मा जी भी अपने कुछ जान-पहचानवालों के साथ खड़े ये तमाशा देखते हुए बतिया रहे थे - "अरे मिश्रा साहब, इसे तो सत्यवादी बनने का भूत चढ़ा था, अब लो भुगतो |" मिश्रा जी ने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए झट से कहा - "अजी बिलकुल सही कह रहे हैं आप | अब भला इसे क्या पड़ी थी इस मामले में पड़ने की? इसका तो इससे कुछ लेना-देना भी नहीं था |" जायसवाल बाबू कहाँ चुप रहनेवाले थे, उन्होंने फरमाया - "इसका तो यही हश्र होना ही था | जब इसे मालूम था कि इस कांड का मुख्य आरोपी यहाँ के विधायक का बेटा है और सारा किया धरा भी उसी का है, तो फिर ये क्यों नाना पाटेकर बन रहा था? इसे तो मैंने समझाया भी था कि अरे, ये सब फिल्मों में ही अच्छा लगता है, असली जिंदगी में नहीं | लेकिन मेरी सुने तब न !" चौबे जी ने निष्कर्ष पर पहुँचते हुए कहा - "अब छोड़िये भी साहब, समझाया तो उसे जाता है जिसमें अक्ल हो, ये लड़का तो निरा बेवकूफ है निरा बेवकूफ |" पुलिस लड़के को ले के जा चुकी थी |

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 19, 2012 at 10:19pm

आदरणीय गणेश सर........कहानी को सराहने के लिये आपका हार्दिक आभार.......और खास तौर से आपने जो तकनीकी सुझाव दिये उनके लिये विशेष रूप से आपका आभारी हूँ.....

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 19, 2012 at 10:11pm

आदरणीय लोकेश जी.........कहानी को पसंद करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2012 at 1:50pm

प्रिय कुमार गौरव, बहुत ही सही नब्ज पकड़ा है, जो समर्थवान हैं वो नव सौ चूहा खाकर भी खुलेआम घूम रहे है और निर्दोष जेल जा रहे है, कथ्य उत्तम है |

शिल्प के मामले मे थोड़ी और कसने की गुन्जाईस थी, जैसे //उसपर अपनी सहपाठिन के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में झूठी गवाही देकर अदालत को गुमराह करने, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने तथा भोले-भाले निर्दोष युवकों पर बेबुनियाद इल्जाम लगा के उन्हें फंसाने की साजिश करने का आरोप साबित हो चुका लगा था//

इस तरह से करने से अभी भी भारतीय न्याय प्रणाली तथा "सत्य मेव जयते" पर विश्वास जता सकते थे कि अभी भले नायक गिरफ्तार हुआ किन्तु बाद में छूट सकता है |

//पुलिस लड़के को ले के जा चुकी थी // इस पक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है |

बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

Comment by लोकेश सिंह on September 18, 2012 at 1:10pm

सामाजिक व्यवहार का मनोवैज्ञानिक चित्रण ,लघुकथा के माध्यम से सामाजिक जीवन के ताने बने की  सूक्ष्मता  से पड़ताल ,अतिउत्तम कहानी ,बहुत बहुत साधुवाद ...

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