(१) फूटे बम चल जाए गोली,
नहीं निकलती मुँह से बोली |
बाहर आता खाने राशन,
क्या भई चूहा? नहिं रे "शासन" ||
(२) ताने घूँघट औ शरमाए,
तड़पा के मुखड़ा दिखलाए |
रोज दिखाए जलवा ताजा,
क्या मेरी भाभी? नहिं तेरा "राजा" ||
(३) चलते पूरी सरगर्मी से,
सुनते ताने बेशर्मी से |
बातों से पूरे बैरिस्टर,
क्या कोई लुक्खा? नहिं रे "मिनिस्टर" ||
(४) बातों से लगता है झक्खी,
नहीं भिनकने आती मक्खी |
डांटे मैडम बँधती घिग्गी,
क्या कोई पागल? नहिं रे "दिग्गी" ||
Comment
आदरणीय गुरुदेव...आपका स्नेह और विश्वास सर-आँखों पर.....आपकी बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ....आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........
कह-मुकरियों पर भाई अजीतेन्दु आपकी पहली कोशिश अत्यंत ही भली लगी है. एक तो कह-मुकरी दूसरे हास्य ! लेकिन आपसे एक अनुरोध के साथ एक महत्त्वपूर्ण बात साझा कर रहा हूँ.
साहित्य हेतु समर्पित इस सात्विक मंच पर व्यक्तिगत आक्षेप (भले ही हास्यपरक) चाहे वह किसी तथाकथित राजानीतिबाज पर ही क्यों न हो उचित प्रतीत नहीं होता. हम व्यवस्था और वर्तमान देश-हाल पर असहज हो कर अपने भाव बेशक रख सकते हैं. किन्तु, व्यक्ति विशेष पर कोई सीधी रचना कंट्रोवर्सियल हो जाती है. मंच की प्रबन्धन टीम ने इस संदर्भ में पहले ही विचार कर लिया है.
आपके माध्यम से यह बात अन्य सभी रचनाकारों से साझा की जा रही है.
आपकी रचनाधर्मिता के प्रति पूर्ण आश्वस्ति है, भाई. शुभ-शुभ !!
आदरणीया रेखा जी.........जिस देश का राजा संवेदनहीन हो जाए उस देश का कभी भला नहीं होनेवाला......ऊपर से उनके चमचे......बाप रे बाप........इन्हें और क्या कहा जाए........रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.......
आदरणीया राजेश जी........दरअसल मेरी ये कह मुकरियाँ जनता की उस भावना को दिखा रही हैं जिसमें ऐसे लोगों के प्रति एक गुस्सा है......ये लोग खुद तो कुछ करते नहीं उल्टे कुछ करनेवालों की टाँग खींचते है......इन्हें और क्या कहा जाए........रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.......
बातों से लगता है झक्खी,
नहीं भिनकने आती मक्खी |
डांटे मैडम बँधती घिग्गी,
क्या कोई पागल? नहिं रे "दिग्गी" ||,बहुत बढ़िया गौरव जी ,बधाई
बातों से लगता है झक्खी,
नहीं भिनकने आती मक्खी |
डांटे मैडम बँधती घिग्गी,
क्या कोई पागल? नहिं रे "दिग्गी" || हाहाहा वाह वाह अजीतेंदु जी लगता है ओ बी ओ पर आचार संहिता लगवाओगे एनी वे बहुत बढ़िया रोचक ,सामयिक कह मुकरियाँ
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