भींगते तकियों से आँसू पी रही हैं दूरियाँ
मस्त हो नजदीकियों में जी रही हैं दूरियाँ
अनदिखी कितनी लकीरें खींच आँगन में खड़ीं
अनसुनेपन को बना बिस्तर दलानों में पड़ीं
बैठ फटती तल्खियों को सी रही हैं दूरियाँ
तोड़ देतीं फूल गर खिलता कभी एहसास का
कर रहीं रिश्तों के घर को महल जैसे ताश का
इन गुनाहों की सदा दोषी रही हैं दूरियाँ
प्यार में जब घुन लगा तो खोखलापन आ गया
भूतबँगले सा वहाँ भी खालीपन ही छा गया
ऐसे ही माहौल में…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 28, 2013 at 6:30pm — 11 Comments
चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है।
बेखबर इस रात में सारा जहाँ मदहोश है।
वक्त आगे भागता, जम से गये मेरे कदम,
हाँ, सहारा दे रहा तन्हाई का आगोश है।
हँस रहा चेह्रा मेरा तुम तो बस इतना जानते,
क्योंकि गम दिल संग सीने में ही परदापोश है।
माँगता मैं रह गया, दे दो बहारों कुछ मुझे,
अनसुना कर बढ़ गईं, इसका बड़ा आक्रोश है।
अब कहाँ रौनक बची "गौरव" उमंगों की यहाँ,
घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 10, 2013 at 9:30am — 28 Comments
ख्वाब के मोती हकीकत में पिरोने के लिए।
लोग हैं तैयार खुद की लाश ढोने के लिए।
झोंपड़े में सो रहा मजदूर कितने चैन से,
है नहीं कुछ पास उसके क्योंकि खोने के लिए।
आसमां की वो खुली, लंबी उड़ानें छोड़कर,
क्यों तरसते हैं परिंदे कैद होने के लिए।
जिंदगी भर खून औरों का बहाते जो रहे,
जा रहे हैं तान सीना पाप धोने के लिए।
जगमगाते हैं दिखावे से शहर के सब मकान,
सादगी तो रह गई है मात्र कोने के लिए।
पुष्प सारे चल…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 2, 2013 at 12:25pm — 28 Comments
जीवन में मत जमीर को पलभर सुलाइए।
सोने लगे तो फेंक के पानी जगाइए।
बेगैरतों के शह्र में रहते जो शौक से,
अपने घरों की लाज को उनसे बचाइए।
अनमोल रत्न शील ही होता जहान में,
यूँ कौड़ियों के मोल इसे मत लुटाइए।
जिसने दिये हों सात वचन सात जन्मों के,
केवल उसी के सामने घूँघट उठाइए।
बीमारियाँ चरित्र की लगती हैं छूत से,
पीड़ितजनों के पास जियादा न जाइए।
बस दागदार करते जो घर की दीवारों को,
वैसे चिराग हाथ से…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 3, 2013 at 7:17pm — 16 Comments
बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222 1222 1222 1222
..............................................................
हुआ पैदा जो अंधा वो खड़ा राहें दिखाता है।
फटी आवाजवाला रोज अब गाने सुनाता…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 7, 2013 at 1:11pm — 23 Comments
अँधेरे में डूबकर
सन्नाटे से बतियाता
वो वीराना
समय से दौड़ में पिछड़ा
वह बेबस, कर्महीन खंड है…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 12, 2013 at 12:04pm — 18 Comments
(१) ज्वलंत प्रश्न
जब फलदार वृक्ष ही
बन जाएं नरभक्षी,
चूसने लगें रक्त,
तब क्या करे पथिक,
किधर ढूँढे छाँव, शीतलता,
कहाँ करे विश्राम,
कैसे जुटाये भोजन
जेठ की तपती राहों में।
(२) एक घटना
सुबह कुछ फूल देखे थे,
आकार में बड़े-बड़े,
चटख रंगोंवाले, भड़कदार,
मन किया कि घर ले आऊँ,
जाँच की तो पाया
सारे के सारे जहरीले थे।
(३) कैसी…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 10, 2013 at 11:46am — 8 Comments
इंजिनियर रामबाबू अपनी बेटी दिव्या को एयरपोर्ट छोड़कर अभी-अभी घर लौटे थे। दिव्या ने IIM से एमबीए किया था। एक प्रतिष्ठित कंपनी में बतौर मैनेजर लाखों कमा रही थी। रामबाबू को अपनी बेटी पर खासा गर्व था। नातेदारों से लेकर जान-पहचानवाले सभी लोगों से बात-बातपर वो दिव्या का ही जिक्र छेड़ते थे। अन्य के मुकाबले आर्थिक स्थिति काफी अच्छी होने के कारण रिश्तेदारी में भी उनकी विशेष इज्जत थी। आज छुट्टी थी और कोई खास काम भी नहीं था सो रामबाबू आराम से पलंगपर पसर गये। लेटे-लेटे ही उन्होंने अपनी पत्नी शर्मिला से…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on February 3, 2013 at 4:30pm — 6 Comments
पंचमहाभूतों से निर्मित
मानव शरीर,
जिसके अंदर वास करती है
परमात्मा का अंश "आत्मा",
जो संचालित करती है
ब्रह्मांड में मानवजीवन को,
उसके आचार-विचार, व्यक्तित्व को,
रोकती है कुमार्ग पर जाने से,
ले जाती है सन्मार्ग की ओर,
उधर, जिधर मार्ग है मोक्ष का;
किन्तु मनुष्य पराभूत हुआ
अनित्य, क्षणभंगुर, सांसारिक
मोह के द्वारा, कर देता है उपेक्षा
ईश्वर के उस सनातन अंश की,
और निकल जाता है
अंधकार से भरे ऐसे मार्ग पर
जो समाप्त होता है
एक कभी न…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 18, 2012 at 7:00pm — 1 Comment
मोती-मोती जोड़ के, गूँथ नौलखा हार।
विश्वपटल पे रख दिया, भारत का आधार॥
भारत का आधार, भरा था जिसमें लोहा,
जय सरदार पटेल, सभी के मन को मोहा।
वापस लाये खींच, देश की गरिमा खोती,
सौ सालों में एक, मिलेगा ऐसा मोती॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 15, 2012 at 10:50am — 16 Comments
नील गगन में अम्बुद धवल,
स्नेहरूपी मोतियों समान बूँदों से सींचते
बलवान, योग्य आत्मजों सदृश
फलों से लदे छायादार विटपों से भरी,
उत्साही, सुगन्धित, रंग-बिरंगी पल्लवित
पुष्पों से सजी,
स्वर्ण सरीखी लताओं से जड़ित,
चटख हरे रंग की कामदार कालीन बिछी
धरती को;
मंगलगान गाती कोयलें बैठ डालियों पर,
प्रणय-निवेदनरत मृग युगल,
अमृतकलश सम दिखते सरोवर,
किलकारियों से वातावरण को गुंजायमान
करते खगवृन्द,
परियों जैसी उड़ती तितलियाँ;
ऐसे सुन्दर, मनमोहक, रम्य…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 12, 2012 at 11:30am — 12 Comments
मदिरा सवैया
मोषक राज किये यतियों पर ये कहना अतिरंजन है।
कौन बचा दुनिया भर में कह दे उसका चित कंचन है।
शोषक भी सब शोषित भी सब मौसम का परिवर्तन है।
कारण है निजता चढ़ के सिर नाच रही कर गर्जन है॥
दुर्मिल सवैया
अवलंबन हो निज का तब जीवन ये सुख की रसधार लगे।
प्रभुवंदन से मन पावन हो तरणी भव के उसपार लगे।
धरती सम हो उर तो नित "मैं कुछ दूँ सबको" यह भाव जगे।
अनुशीलन है बसता जिसमें उसमें नव के प्रति चाव जगे॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 1, 2012 at 8:21am — 10 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया, सॉरी भैया धोनी।
स्पिन ट्रैक से क्या होता है, टलती थोड़े होनी॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, भाग देख लो फूटे।
अपने सौवें ही दंगल में, वीरू दादा टूटे॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, थोड़ा चले पुजारा।
लदफद होती सेना को जो, देते रहे सहारा॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, क्या करते हो सच्चू।
अपने ही घर में अपनी क्या, पिटवाओगे बच्चू॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, अन्ना दीखे भज्जी।
कुक पूरे सरकारी बन के, उड़ा रहे थे धज्जी॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, दिखी…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 27, 2012 at 7:13pm — 12 Comments
भारत के हम शेर किये नख के बल रक्षित कानन को।
छोड़त हैं कभि नाहिं उसे चढ़ आवहिं आँख दिखावन को।
भागत हैं रिपु पीठ दिखा पहिले निजप्राण बचावन को।
घूमत हैं फिर माँगन खातिर कालिख माथ लगावन को॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 25, 2012 at 10:20am — 13 Comments
वो नर नाहिं रहे डरते डरते सबसे नित आप हि हारे।
पामर भाँति चले चरता पशु भी अपमान सदा कर डारे।
मानव जो जिए गौरव से अपनी करनी करते हुए सारे।
जीवन हैं कहते जिसको बसता हिय में निजमान किनारे॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 23, 2012 at 9:34pm — 6 Comments
महाराजा, जहाँ चाहे, वहाँ आज्ञा, चलाता है।
खिलाड़ी है, बड़ा वीरू, सदा बल्ला, बताता है।
कभी चौका, कभी छक्का, लगा सौ ये, बनाता है।
मिला मौका, कि गेंदों से, करामातें, दिखाता है॥
किसी के भी, इलाके में, सिंहों जैसा, सही वीरू।
सभी ताले, किले सारे, गिरा देता, यही वीरू।
बिना देरी, विरोधी को, पछाड़े जो, वही वीरू।
डरे-भागे, कभी कोई,…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 23, 2012 at 2:30pm — 10 Comments
विजय मिली है, सदा विजय हो।
भारतमाता की जय-जय हो॥
बेटों के उर लगन लगी है।
विश्वविजय की चाह जगी है॥
उनके बल का कभी न क्षय हो।
भारतमाता की जय-जय हो॥
ले के दलबल निकल पड़े हैं।
कर अस्त्रों से भरे पड़े हैं॥
लगते ऐसे हुई प्रलय हो।
भारतमाता की जय-जय हो॥
क्रोधानल से नैन लाल हैं।
नाहर सम नख-मुख विशाल हैं॥
देख जिसे भय को भी भय हो।
भारतमाता की जय-जय हो॥
अरिसेना सब भाँप रही है।
थर-थर करती काँप रही है॥
अतिशीघ्र नवयुग का उदय…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 16, 2012 at 1:24pm — 6 Comments
दीपावली लो आ गई है, शोभते सुन्दर दिये।
श्रीराम का जयपर्व ये है, भाग्य पाने के लिये॥
सोहें निलय जगमग बड़े ही, दिव्य सारे चित हुए।
लक्ष्मी-गजानन को सभी ही, पूजके हर्षित हुए॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2012 at 11:33am — 4 Comments
जब-जब धर्म की विजय हो,
शुभ-लाभ से भंडार भर जाये,
सुन्दर-सुन्दर रंगोलियाँ सजी हों,
अमावस की रात उजाला हो,
समझ लेना दीपावली है।
दुकानों में उत्सवी रौनक हो,
सबके यहाँ पकवान बने,
ह्रदय-ह्रदय आलोकित हो जाये,
मन-मस्तिष्क व्यथाओं से मुक्त हो,
समझ लेना दीपावली है।
गगन, हर्षध्वनि से गुंजायमान हो,
रोम-रोम आनंद से पुलकित…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2012 at 9:25am — 4 Comments
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
लय, रस, भाव, शिल्प संग प्रीति |
वैचारिक सुप्रवाह की रीति ||
अलंकार से कथ्य चमकता |
उपमानों से शब्द दमकता ||
यगण-तगण जैसे पाशों से,
होता कोई साथ कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
अनियमित औ स्वच्छंद गति है |
भावानुसार प्रयुक्त यति है ||
अभिव्यक्ति ही प्रधान विषय है |
तनिक नहीं इसमें संशय है ||
ह्रदयचेतना से सिंचित ये,
ऐसा यातायात कहाँ है |
मुक्तछंद…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2012 at 8:38am — 12 Comments
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