नील गगन में अम्बुद धवल,
स्नेहरूपी मोतियों समान बूँदों से सींचते
बलवान, योग्य आत्मजों सदृश
फलों से लदे छायादार विटपों से भरी,
उत्साही, सुगन्धित, रंग-बिरंगी पल्लवित
पुष्पों से सजी,
स्वर्ण सरीखी लताओं से जड़ित,
चटख हरे रंग की कामदार कालीन बिछी
धरती को;
मंगलगान गाती कोयलें बैठ डालियों पर,
प्रणय-निवेदनरत मृग युगल,
अमृतकलश सम दिखते सरोवर,
किलकारियों से वातावरण को गुंजायमान
करते खगवृन्द,
परियों जैसी उड़ती तितलियाँ;
ऐसे सुन्दर, मनमोहक, रम्य दृश्य को
निहारते हुये
मुदित मन से नृत्य करते-करते
अपने पैरों पर दृष्टी पड़ते ही
नैराश्य के विशिखों से विदीर्ण ह्रदय हुआ
अकस्मात ही ठिठक जाता है
मयूर मन का।
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय मित्र अरुन शर्मा जी........
हार्दिक आभार आदरणीय अजय खरे जी.........
कुमार गौरव मित्र सुन्दर कविता अच्छा प्रयास मेरी ओर से बधाई
man ki chanchalta ka barnan bahut badia badhai
अच्छी रचना गौरव जी, साथ में मैं डॉ प्राची जी से सहमत हूँ |
प्राची जी से सहमत हूं मेरे हिसाब से शब्द भार अधिक हो गया है इसी कारण सहजता बाधित हो रही है किंतु भाव पक्ष के लिए बधाई जरूर मिलनी चाहिए
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