मदिरा सवैया
मोषक राज किये यतियों पर ये कहना अतिरंजन है।
कौन बचा दुनिया भर में कह दे उसका चित कंचन है।
शोषक भी सब शोषित भी सब मौसम का परिवर्तन है।
कारण है निजता चढ़ के सिर नाच रही कर गर्जन है॥
दुर्मिल सवैया
अवलंबन हो निज का तब जीवन ये सुख की रसधार लगे।
प्रभुवंदन से मन पावन हो तरणी भव के उसपार लगे।
धरती सम हो उर तो नित "मैं कुछ दूँ सबको" यह भाव जगे।
अनुशीलन है बसता जिसमें उसमें नव के प्रति चाव जगे॥
Comment
सराहना के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र अरूण शर्मा जी........
मित्र कुमार गौरव अजितेंदु मुझे इनका ज्ञान नहीं है परन्तु पढ़कर बहुत अच्छा लगा बधाई स्वीकारें.
सादर प्रणाम आदरणीय रक्ताले सर ......सराहना के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ......
सादर प्रणाम मित्रवर संदीप पटेल जी .....आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.....
बहुत-बहुत धन्यवाद शालिनी जी.......
सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार आदरणीया सीमा जी...........
आदरणीय गौरव जी
सादर, दोनों ही सवैया मस्त बन पड़े हैं और मदिरा सवैया के लिये तो कहूँगा कि प्रत्येक चरण में मद छलक रहा है.बहुत बहुत बधाई.
आदरणीय कुमार गौरव जी सादर प्रणाम
सुन्दर सवैया छंद रचे हैं आपने सादर बधाई आपको
अवलंबन हो निज का तब जीवन ये सुख की रसधार लगे।
प्रभुवंदन से मन पावन हो तरणी भव के उसपार लगे।
धरती सम हो उर तो नित "मैं कुछ दूँ सबको" यह भाव जगे।
अनुशीलन है बसता जिसमें उसमें नव के प्रति चाव जगे॥
bahut sundar bhavabhivyakti .badhai
//धरती सम हो उर तो नित "मैं कुछ दूँ सबको" यह भाव जगे।
अनुशीलन है बसता जिसमें उसमें नव के प्रति चाव जगे॥// वाह बहुत सुन्दर भाव और सम्प्रेषण
दोनों ही सवैये बहुत सुन्दर बने हैं
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