महाराजा, जहाँ चाहे, वहाँ आज्ञा, चलाता है।
खिलाड़ी है, बड़ा वीरू, सदा बल्ला, बताता है।
कभी चौका, कभी छक्का, लगा सौ ये, बनाता है।
मिला मौका, कि गेंदों से, करामातें, दिखाता है॥
किसी के भी, इलाके में, सिंहों जैसा, सही वीरू।
सभी ताले, किले सारे, गिरा देता, यही वीरू।
बिना देरी, विरोधी को, पछाड़े जो, वही वीरू।
डरे-भागे, कभी कोई, लड़ाई से, नहीं वीरू॥
Comment
आदरणीय रक्ताले सर .......आपकी प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहवर्धक है ......आपका दिल से आभार .........
कभी चौका, कभी छक्का, लगा सौ ये, बनाता है।
मिला मौका, कि गेंदों से, करामातें, दिखाता है॥
वाह! आ. गौरव जी बहुत ही सुन्दर छंद और भाव मजा आगया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आदरणीय बड़े भैया गणेश जी ........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ..........
आदरणीय योगी जी ........आपका हार्दिक आभार .........
अच्छी रचना पर आपको और १०० वां सतक पर सहवाग को बधाई प्रेषित है |
bahut bahut badhaai veeru ko bhi aur aapko bhi
thankyou very much shalini ji.....
आदरणीय गुरुदेव, आपका दिल से आभार.....उत्साहवर्धन के लिए भी और उपयोगी परामर्श के लिए भी......आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.......
वाह-वाह ! :-))
इस सधी हुई कोशिश पर हृदय से बधाई, भाई अजीतेन्दु जी.
एक बात :
डरे कोई, कभी भी जो, लड़ाई से, नहीं वीरू = डरे-भागे, खिलाड़ी वो, कभी दीखा, नहीं वीरू
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