वो नर नाहिं रहे डरते डरते सबसे नित आप हि हारे।
पामर भाँति चले चरता पशु भी अपमान सदा कर डारे।
मानव जो जिए गौरव से अपनी करनी करते हुए सारे।
जीवन हैं कहते जिसको बसता हिय में निजमान किनारे॥
Comment
स्नेह के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय बड़े भैया गणेश जी .........
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश जी ........
आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण सर .........
एक बार पुनः आपने अच्छी रचना प्रस्तुत की है, बहुत ही संदेशात्मक रचना है, बधाई अनुज |
बहुत सुन्दर बात कही है सवैया के माध्यम से जो इंसान खुद का सम्मान नहीं करना जानता तो दूसरों से उम्मीद कैसी बहुत बहुत बधाई अजीतेंदु जी
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