जब-जब धर्म की विजय हो,
शुभ-लाभ से भंडार भर जाये,
सुन्दर-सुन्दर रंगोलियाँ सजी हों,
अमावस की रात उजाला हो,
समझ लेना दीपावली है।
दुकानों में उत्सवी रौनक हो,
सबके यहाँ पकवान बने,
ह्रदय-ह्रदय आलोकित हो जाये,
मन-मस्तिष्क व्यथाओं से मुक्त हो,
समझ लेना दीपावली है।
गगन, हर्षध्वनि से गुंजायमान हो,
रोम-रोम आनंद से पुलकित हो,
जात-पात तज दिया जाये,
सब के लिए कुछ न कुछ हो,
समझ लेना दीपावली है।
सर्द वातावरण, गर्माहट से भर जाये,
कीड़े-मकोड़े जल के भस्म हो जाएँ,
घर-घर के किवाड़ खुले हों,
सात्विक उल्लास, पटाखे चला रहा हो,
समझ लेना दीपावली है।
खुशियाँ किसी से भेदभाव न करें,
समाज अपने अस्तित्व को सार्थक करे,
सामूहिकता से नौनिहालों का परिचय हो,
गरीबों के घर भी दिया जगमगाए,
समझ लेना दीपावली है।
Comment
आपका हार्दिक आभार आदरणीय रक्ताले सर
सुन्दर रचना आ. गौरव जी बधाई स्वीकारें.
प्रिय अनुज कुमार गौरव जी,
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति! पर इस रचना को थोडा और साध कर गेयता को बढाया जा सकता है..
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
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