अँधेरे में डूबकर
सन्नाटे से बतियाता
वो वीराना
समय से दौड़ में पिछड़ा
वह बेबस, कर्महीन खंड है
जो आजकल
बड़ा घबराया हुआ है उस
विशिष्ट उजाले की आहट सुनकर
जो उसके भाग्य की कालिमा
को धोने नहीं बल्कि उसे दुनिया के
सामने उजागर कर उसका
मजाक उड़ाने आनेवाला है।
Comment
अरे बाप रे.. . क्या-क्या सोच लेते हो भाई.. . रीढ़ में बर्फ़ की पिघलन महसूस हुई.
अविश्वास और अन्यमनस्कता की बढिया अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीया वंदना तिवारी जी। रचना की सराहना हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
बहुत दिनों बाद आपसे बात करने का मौका मिला आदरणीय योगी जी। आपका स्नेह पाकर मन प्रसन्न हुआ। बहुत-बहुत आभार।
आपका स्नेह तो सदा प्रोत्साहित करता है आदरणीय लक्ष्मण सर। हार्दिक आभार।
स्वागत है आपका आदरणीय विजय निकोर सर। बहुत-बहुत धन्यवाद।
बहुत सुन्दर भाव और उतने ही सुन्दर शब्द श्री कुमार गौरव जी
अच्छे भाव रचना के लिए बधाई श्री कुमार गौरव अजितेंदु जी, हार्दिक बधाई स्वीकारे
आदरणीय कुमार गौरव जी:
शूरू से अंत तक भाव आपस में बंधे हुए हैं,
रचना अच्छी बनी है।
सादर ,
विजय निकोर
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