ख्वाब के मोती हकीकत में पिरोने के लिए।
लोग हैं तैयार खुद की लाश ढोने के लिए।
झोंपड़े में सो रहा मजदूर कितने चैन से,
है नहीं कुछ पास उसके क्योंकि खोने के लिए।
आसमां की वो खुली, लंबी उड़ानें छोड़कर,
क्यों तरसते हैं परिंदे कैद होने के लिए।
जिंदगी भर खून औरों का बहाते जो रहे,
जा रहे हैं तान सीना पाप धोने के लिए।
जगमगाते हैं दिखावे से शहर के सब मकान,
सादगी तो रह गई है मात्र कोने के लिए।
पुष्प सारे चल दिए रंगीन गमलों की तरफ,
रह गया उजड़ा चमन बदहाल रोने के लिए।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
हृदयतल से आपका आभार प्रिय मित्रवर अरुन शर्मा जी, आपका स्नेह सर-आँखोंपर...........
प्रोत्साहन हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील जोशी जी.............
आपका दिल से आभार आदरणीय बृजेश भैया..........
आदरणीय प्रिय मित्रवर वाह मन प्रसन्न हो उठा बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी के सभी अशआर बहुत ही उम्दा बन पड़े हैं ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.
शानदार गज़ल के लिए हार्दिक बधाई गौरव जी.....
एक अच्छी ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई!
दिल से आभार आपका मित्र राम पाठक जी.........
प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय विजय जी..........
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........
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