मन एक सागर
जहाँ ;
भावनाओं की जलपरियाँ
करती हैं अठखेलियाँ
विचारों के राजकुमारों के साथ ;
घात लगाये छुपे रहते
क्रोध के मगरमच्छ ;
लालच की व्हेल भयंकर मुँह फाड़े आतुर
निगल जाने को सबकुछ ;
घूमते रहते ऑक्टोपस दिवास्वप्नों के ;
आते हैं तूफान दुविधाओं के ;
विशालता ही वरदान है
और अभिशाप भी ;
अद्भुत विचित्रता को स्वयं में समेटे
एक अनोखा सम्पूर्ण संसार है
जो सीमाओं में रहकर भी
सीमाओं से मुक्त है ;
मन एक सागर
जहाँ ;
अतीत डूब के अपने अनुभवों से
प्रशस्त करता है मार्ग
भविष्य का ;
ऊपरी सतह को देख के
असंभव है अनुमान लगाना
तलहटी की वास्तविकताओं के बारे में ;
अथाह जल के मध्य स्थित द्वीप
पर्याप्त हैं बताने के लिए
ठहराव अल्पकालिक होता है
बहाव ही प्रकृति का मूल है ;
पग-पग पर दृष्टिगोचर होते है उदाहरण
धैर्य एवं संयम के लाभ के ;
गहराइयों में जाकर ही
मिलते हैं धर्म के सीप
मर्यादित आचरण के मोती लिये |
Comment
आदरणीय गुरुदेव.......स्नेह से भरी आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार........
वाह ! वाह-वाह !!
स्वागत है अनुज !
आदरणीय अग्रज अम्बरीश जी..........आपसे सराहना पाकर मन गदगद हुआ........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........
//ठहराव अल्पकालिक होता है
बहाव ही प्रकृति का मूल है ;
पग-पग पर दृष्टिगोचर होते है उदाहरण
धैर्य एवं संयम के लाभ के ;
गहराइयों में जाकर ही
मिलते हैं धर्म के सीप
मर्यादित आचरण के मोती लिये |//
कुमार गौरव जी, मन सागर की गह्रराइयों में डूब-डूब कर आपके द्वारा चुने हुए ये समस्त मोती स्वयं में लाजवाब हैं ........बहुत बहुत बधाई मित्र !
आदरणीया राजेश जी.........सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...........
आदरणीय ज्येष्ठ भ्राता सुरेन्द्र शुक्ल जी.........रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार........जय श्री राधे.........
प्रिय अजीतेंदु जी ...महीने के सक्रिय सदस्य चुने जाने पर आप की लगन और श्रम को सलाम आप को हार्दिक बधाई .. ये हुयी न बात ..मेंहदी रंग लाती ही रहे
सागर की गहराई में जाकर अंडर वाटर जाकर जो अद्दभुत नज़ारे मिलते हैं उसी तरह मन के सागर की तलहटी में जाकर अद्दभुत विचार अद्दभुत कल्पनालोक का सामना होता है बहुत गहन प्रस्तुति ...वाह बहुत बधाई आपको कुमार अजीतेंदु जी
ठहराव अल्पकालिक होता है
बहाव ही प्रकृति का मूल है ;
पग-पग पर दृष्टिगोचर होते है उदाहरण
धैर्य एवं संयम के लाभ के ;
गहराइयों में जाकर ही
मिलते हैं धर्म के सीप
मर्यादित आचरण के मोती लिये |
प्रिय अजीतेंदु जी ..बहुत सुन्दर रचना और प्यारा सन्देश उत्साहित करते
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