भ्रष्टता के इस युग में
हर कोई समाज सुधारक है,
देखता है, विचारता है
समाज में व्याप्त घृणित बुराइयों को,
करता है प्रतिकार पुरजोर तरीके से
हर एक बुराई का,
लड़ता है सच के लिए,
बावजूद, क्यों अंत नहीं होता
किसी भी बुराई का,
बल्कि बढ़ती जा रही
बुराइयाँ, दिन-प्रतिदिन,
वजह मात्र एक,
हरेक मनुष्य सुधारता औरों को,
नहीं दिखती किसी को भी
कमियाँ अपनी,
करते नजरअंदाज
अपने अवगुणों को,
कैसे सुधरेगा समाज
जब सुधारनेवाले ही बिगड़े रहेंगे,
बढ़ानेवाले खुद पिछड़े रहेंगे,
धूल से धूल साफ नहीं होती,
कीचड़ से कीचड़ धोया नहीं जाता,
गन्दगी को हटाने के लिए
स्वच्छता की जरूरत होती है,
क्या वो स्वच्छता उपलब्ध है !
Comment
आदरणीय गुरुदेव........रचना को पसंद करने और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........
धूल से धूल साफ नहीं होती,
कीचड़ से कीचड़ धोया नहीं जाता,
गन्दगी को हटाने के लिए
स्वच्छता की जरूरत होती है,
भाई अजीतेन्दुजी, आपके वैचारिक कथ्य बहुत ही सदृढ़ हैं. हार्दिक बधाई स्वीकार करें !
आदरणीय अग्रज गणेश जी.......आपके द्वारा सराहना पाकर बहुत खुशी हुई.......आज के समय की मांग ही यही है की मनुष्य पहले खुद को देखे और उसके बाद ही औरों में दोष ढूंढें......प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार........अनुज पर स्नेह बनाये रखियेगा........
आदरणीय लक्ष्मण सर....आपका कहना बिलकुल सही है....मैं भी यही कहना चाहता हूँ.......हर कोई औरों में बुराइयाँ देख लेता है पर खुद के अन्दर नहीं झांक पाता.....रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.......
आदरणीया रेखा जी......आज वक्त की पुकार यही है........जो मनुष्य खुद को नहीं सुधार सका वो दुनिया को क्या सुधारेगा.......रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.......
आदरणीया राजेश जी........रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.....आज लोगों को सबसे पहले अपने अन्दर झाँकने की जरूरत है तभी सही मायने में वो देश और समाज के लिए कुछ कर सकता है.......
//हरेक मनुष्य सुधारता औरों को,
नहीं दिखती किसी को भी
कमियाँ अपनी,//
बिलकुल सही कारण पकड़े है अनुज, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा, इस वाक्य को जीवन में उतारना होगा, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, बहुत बहुत बधाई |
हरेक मनुष्य सुधारता औरों को,
नहीं दिखती किसी को भी
कमियाँ अपनी,
करते नजरअंदाज
अपने अवगुणों को,
कैसे सुधरेगा समाज,सुंदर रचना पर बधाई गौरव जी
हर कोई समाज सुधारक है नहीं भाई अजितेंदु जी, हाँ हर कोई अपने को समाज सुधारक समझता है वैसे ही जैसे हर कोई अपने आपको बुद्धिमान आपकी ये पंक्तिया भाई जिसके लिए बधाई -
गन्दगी को हटाने के लिए
धूल से धूल साफ़ नहीं होती,
कीचड से कीचड धोया नहीं जाता,
गन्दगी को हटाने के लिए
स्वच्छता की जरूरत होती है,-----ये पंक्तियाँ ही सम्पूर्णता हैं रचना की बहुत गहन बात कही है कुमार अजीतेंदु जी बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई
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