For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भ्रष्टता के इस युग में
हर कोई समाज सुधारक है,
देखता है, विचारता है
समाज में व्याप्त घृणित बुराइयों को,
करता है प्रतिकार पुरजोर तरीके से
हर एक बुराई का,
लड़ता है सच के लिए,
बावजूद, क्यों अंत नहीं होता
किसी भी बुराई का,
बल्कि बढ़ती जा रही
बुराइयाँ, दिन-प्रतिदिन,
वजह मात्र एक,
हरेक मनुष्य सुधारता औरों को,
नहीं दिखती किसी को भी
कमियाँ अपनी,
करते नजरअंदाज
अपने अवगुणों को,
कैसे सुधरेगा समाज
जब सुधारनेवाले ही बिगड़े रहेंगे,
बढ़ानेवाले खुद पिछड़े रहेंगे,
धूल से धूल साफ नहीं होती,
कीचड़ से कीचड़ धोया नहीं जाता,
गन्दगी को हटाने के लिए
स्वच्छता की जरूरत होती है,
क्या वो स्वच्छता उपलब्ध है !

Views: 465

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 16, 2012 at 7:27am

आदरणीय गुरुदेव........रचना को पसंद करने और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2012 at 8:00pm

धूल से धूल साफ नहीं होती,
कीचड़ से कीचड़ धोया नहीं जाता,
गन्दगी को हटाने के लिए
स्वच्छता की जरूरत होती है,

भाई अजीतेन्दुजी, आपके वैचारिक कथ्य बहुत ही सदृढ़ हैं.   हार्दिक बधाई स्वीकार करें ! 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 15, 2012 at 6:53pm

आदरणीय अग्रज गणेश जी.......आपके द्वारा सराहना पाकर बहुत खुशी हुई.......आज के समय की मांग ही यही है की मनुष्य पहले खुद को देखे और उसके बाद ही औरों में दोष ढूंढें......प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार........अनुज पर स्नेह बनाये रखियेगा........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 15, 2012 at 6:48pm

आदरणीय लक्ष्मण सर....आपका कहना बिलकुल सही है....मैं भी यही कहना चाहता हूँ.......हर कोई औरों में बुराइयाँ देख लेता है पर खुद के अन्दर नहीं झांक पाता.....रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 15, 2012 at 6:46pm

आदरणीया रेखा जी......आज वक्त की पुकार यही है........जो मनुष्य खुद को नहीं सुधार सका वो दुनिया को क्या सुधारेगा.......रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 15, 2012 at 6:43pm

आदरणीया राजेश जी........रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.....आज लोगों को सबसे पहले अपने अन्दर झाँकने की जरूरत है तभी सही मायने में वो देश और समाज के लिए कुछ कर सकता है.......


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 15, 2012 at 11:51am

//हरेक मनुष्य सुधारता औरों को,
नहीं दिखती किसी को भी
कमियाँ अपनी,//

बिलकुल सही कारण पकड़े है अनुज, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा, इस वाक्य को जीवन में उतारना होगा, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, बहुत बहुत बधाई |

Comment by Rekha Joshi on September 14, 2012 at 11:47am

हरेक मनुष्य सुधारता औरों को,
नहीं दिखती किसी को भी
कमियाँ अपनी,
करते नजरअंदाज
अपने अवगुणों को,
कैसे सुधरेगा समाज,सुंदर रचना पर बधाई गौरव जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2012 at 11:42am

हर कोई समाज सुधारक है नहीं भाई अजितेंदु जी,   हाँ हर कोई अपने को समाज सुधारक समझता है वैसे ही जैसे हर कोई अपने आपको बुद्धिमान   आपकी ये पंक्तिया भाई जिसके लिए बधाई -

गन्दगी को हटाने के लिए

स्वच्छता की जरूरत होती है,  

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2012 at 10:47am

धूल से धूल साफ़ नहीं होती,
कीचड से कीचड धोया नहीं जाता,
गन्दगी को हटाने के लिए
स्वच्छता की जरूरत होती है,-----ये पंक्तियाँ ही सम्पूर्णता हैं रचना की बहुत गहन बात कही है   कुमार अजीतेंदु जी बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service