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कंह गोरी पनघट कहाँ,कंह पीपल की छांव।
पगडंडी दिखती नहीं,बदल रहा है गांव॥
बदल रहा है गाँव,खत्म है भाईचारा।
कुछ परिवर्तन ठीक,किन्तु कुछ नहीं गवारा॥
ग्लोबल होते गाँव,गाँव की मार्डन छोरी।
कहें विनय नादान,कहाँ पनघट कंह गोरी॥

पगडंडी ये गाँव की,सड़क बनी बेजोड़।
जो जाती है शहर को,जन्म-भूमि को छोड़॥
जन्म-भूमि को छोड़,कमाने रोजी जाते।
करते दिनभर काम,रात फुटपाथ बिताते॥
भर विकास का दम्भ,शहर कितना पाखंडी।
हमको आये याद,गाँव की वो पगडंडी॥

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by pawan amba on February 27, 2013 at 4:21pm

हमको आये याद,गांव की वो पगडंडी॥...sach bahut yaad aati hai.....

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:13pm
आदरणीय भाई रामशिरोमणि पाठक जी!हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:12pm
आदरणीय भाई सुजान सिंह जी!हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:11pm
आदरणीय भाई सुजान सिंह जी!हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:10pm
आदरणीय अरुण सर जी रचना की सराहना के लिये हार्दिक आभार
Comment by ram shiromani pathak on February 25, 2013 at 9:08pm

बहुत गहरी बात त्रिपाठी जी शानदार रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:04pm
आदरणीय रविकर जी रचना की सराहना के लिये आभार व बेहतरीन ध्वन्यात्मक अनुप्रास अंलकार युक्त प्रतिक्रिया कुंडलिया रचना के लिये बधाई।
Comment by सूबे सिंह सुजान on February 25, 2013 at 5:14pm

wah bhai...........sunder hn aapki kundliyan.............

पगडंडी ये गांव की,सड़क बनी बेजोड़।
जो जाता है शहर को,जन्म-भूमि को छोड़॥
जन्म-भूमि को छोड़,कमाने रोजी जाते।
करते दिनभर काम,रात फुटपाथ बिताते॥
भर विकास का दम्भ,शहर कितना पाखंडी।
हमको आये याद,गांव की वो पगडंडी॥

Comment by Abhinav Arun on February 25, 2013 at 3:24pm
बहुत गहरी बात त्रिपाठी जी शानदार रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !!
 
भर विकास का दम्भ,शहर कितना पाखंडी।
हमको आये याद,गांव की वो पगडंडी॥
 
प्रभावी और सारगर्भित पंक्तियाँ !!
 
Comment by रविकर on February 25, 2013 at 2:55pm

बहुत बढ़िया है आदरणीय -

मॉडर्न की प्रिंटिंग ठीक कर लें-

एक प्रतिक्रिया -

आभार

प्रेरणा मिली

सादर -

गोरु गोरस गोरसी, गौरैया गोराटि ।

गो गोबर गोरस गणित, गोशाला परिपाटि ।

गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी ।

पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी ।

गाँव गाँव में जंग, जमीं जर जल्पक जोरू ।

भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥

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