For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके

लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके

कंजक कुँआरी कविताओं का
एक कब्रिस्तान है
मेरे सीने के भीतर

कविताएँ
जिनके जिस्म से अभी
संगीत पनपना शुरू हुआ था
और उनके अंग
कपड़ों के नीचे
जवान हो रहे थे
उनके मरमरी चेहरों पर
सुर्ख आभा झिलमिलाने लगी थी

तभी अतीत ने
उन्हें क्रोधित आँखों से देखा
वर्तमान ने
तिरछी नज़रों से घूरा
और भविष्य ने त्योरी चढ़ाई

इन सुलगती हुई निगाहों से डर कर
मैंने उन कविताओं को
अपने मन की धरती में
गहरा दबा डाला
अपनी तरफ से उन्हें
गहरी नींद सुला डाला
और कहा-
कि अभी कविताओं को
प्यार करने का समय नहीं

लेकिन टिकी रात के
ख़ौफनाक अँधेरे में
मेरे भीतर अब भी
उनकी भयानक हँसी गूँजती
दिल दहला देने वाली चीख़ें
विलाप की आवाज़
मेरे मन की दीवारों से
टकरा-टकरा कर लौटती
और पूछती-
कि हमारा गुनाह क्या था ?
आवाज़ पूछती
तो मेरे मन की मिट्टी काँपती
काँपती और तड़पती
और मैं
घर से छिपकर
समाज से छिपकर
पूर्वजों से छिपकर
हाथों में
स्मृतियों की लालटेन पकड़े
सारे कब्रिस्तान की परिक्रमा करता।

और कंजक कुँआरी
कविताओं की कब्रों पर
अपने लहू का
एक-एक चिराग
रोशन करता।
098142 31698
EMAIL...amarjeetkaunke@yahoo.co.in

Views: 485

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2010 at 11:33pm
तभी अतीत ने
उन्हें क्रोधित आँखों से देखा
वर्तमान ने
तिरछी नज़रों से घूरा
और भविष्य ने त्योरी चढ़ाई
bahut hi umdda kavita hai shandar abhivyakti hai,
Comment by Babita Gupta on May 19, 2010 at 12:21pm
Aap ki kavitayey nihayat hi sunder lag rahi hai, aagey aur padhney ki eechha hai, I want more more n more,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 16, 2010 at 4:45pm
कंजक कुँआरी कविताओं का
एक कब्रिस्तान है
मेरे सीने के भीतर
bahut hi badhiya amarjeet bhai jee..............
Comment by Kanchan Pandey on May 16, 2010 at 2:34pm
Badhiya likha hai sir jee, achhi kavita hai,
Comment by Admin on May 16, 2010 at 10:59am
इन सुलगती हुई निगाहों से डर कर
मैंने उन कविताओं को
अपने मन की धरती में
गहरा दबा डाला
अपनी तरफ से उन्हें
गहरी नींद सुला डाला
और कहा-
कि अभी कविताओं को
प्यार करने का समय नहीं

आदरणीय अमरजीत साहब,
प्रणाम,
सर्वप्रथम तो मै ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपके पहले पोस्ट का स्वागत और धन्यवाद करते है, बहुत ही सुंदर और उम्द्दा कविता आपने लिखा है, आपके कविता के ऊपर लिखे हुए अंश पर मै केवल इतना कहना चाहता हू की अब न तो किसी की निगाहों से डरने की जरूरत है,न ही मन की धरती मे गहरी दबाने की जरूरत है, अब आप अपनी कविताओ को गहरी नींद से जगा दीजिये, अब कविताओ को प्यार करने का समय आ गया है, आप सब की जरूरत और साहित्य से प्यार करने के लिये ही ओपन बुक्स ऑनलाइन का जन्म हुआ है |
आप की लेखन शैली, और अभिव्यक्ति निहायत ही खुबसूरत है, हम सब को आप की रचनाओ का तहे दिल से इन्तजार रहेगा, आप की ओपन बुक्स ऑनलाइन पर उपस्थिति और मार्गदर्शन हम सभी को सबल प्रदान करेगा, धन्यवाद |
आपका अपना ही
ADMIN
OBO

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service