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आज एक ही ढर्रे पे चलना चाहता  है कौन?
सभी को है चाह परिवर्तन की, मुखर हो या मौन |

खोजते है कोई द्वार या रास्ता चाहे हो संकरा सा ..
नयी राह तराशें क्यों? कहाँ वक़्त और तलाशे भी कौन?

चक्र से उबरना भी हैं चाहते और चक्र को बचाना भी ...
तोड़ दिया तो फिर भला फंसेगा कौन?

प्रतिद्वंदिता इससे-उससे और स्वयं से..
पर प्रतिद्वंदिता है क्यों ? सभी मूक..मौन..

दौड़ते हैं, भागते हैं एक अनजान शिखर के लिए..
आज तक वो शिखर, दौड़ के पाया है कौन?

जिसने भी पाया उस दिव्यता के शिखर को..
उसने दौड़ को त्याग, धरा मौन..

कितने हैं आज उस दिव्यता के आस-पास भी ..
आज वो भी नहीं जो गए रुक  या हैं मौन...

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Comment by Lata R.Ojha on October 7, 2011 at 9:39pm

Aabhaar Sanjay Mishra ji :)

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 6, 2011 at 3:34pm

सुन्दर रचना....

सादर बधाई...

Comment by Lata R.Ojha on May 28, 2011 at 2:42am
Thanks dear Sara :) glad to see you here :)
Comment by SARA MISRA on May 28, 2011 at 1:50am
Bahut hi khoobsurat se jeevan ki Satayata ko darshaya hai
Comment by Lata R.Ojha on May 14, 2011 at 12:10am

@ Anand Kumar ji : dhanyavaad :)

 

Comment by Anand kumar Ojha on May 13, 2011 at 4:47pm
KYA BAT HAI .. LAJABAB !
Comment by Lata R.Ojha on May 12, 2011 at 10:01pm
@ Vandana ji : bahut bahut shukria aapka  pasand karne ke liye :)
Comment by Lata R.Ojha on May 12, 2011 at 1:37am
@Ganesh ji: meri rachna ko pasand karne ke liye aabhaar :)
Comment by Lata R.Ojha on May 12, 2011 at 1:33am
@Dheeraj ji: aapne ekdam sahi kahaa. Aaj swayam mein us divy ko koi nahi dhoondhna chaahta. Saraahne ke liye aabhaar.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 10, 2011 at 1:49pm
दौड़ते हैं, भागते हैं एक अनजान शिखर के लिए..
आज तक वो शिखर, दौड़ के पाया है कौन?
वाह लता जी वाह, खुबसूरत भाव के साथ एक अच्छी रचना | बधाई ...

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