आदरणीय साथिओ,
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‘पट्टी’
रघु के फ़ौज में जाने के बाद घर में उसकी पुरानी मोटरसाइकिल को चालू व् फिट रखने के लिए हर तीसरे दिन उसमे किक मारकर स्टार्ट करने की ड्यूटी छोटी बहन रानो बखूबी निभा रही थी|
एक दिन उसके पिता गिरिजा ने देख ही लिया की वो उसपर बैठकर पीछे घेर में एक चक्कर भी लगा आई पिता ने हैरत में पूछा
“तूने कब सीख ली बेटी ”?
“भैया ने एक दो बार सिखाई थी बाबू जी ” रानो ने कुछ डरते हुए कहा |
“क्या बाबू जी मैं अच्छी तरह सीख लूँ चलाना”? बाबा के चेहरे पर गर्वित मुस्कान देख कर रानो को पूछने की हिम्मत हुई
बाबा ने ख़ुशी से हामी भर दी |
किन्तु इस गाँव में हंगामा न खड़ा हो जाए इस बात को लेकर उसके माथे पर चिंता की लकीरें भी उभर आई एक तो छोटी जात फिर गाँव में जाटों का बोलबाला तो चिंता होना स्वाभाविक था |किन्तु फिर भी गिरिजा ने बेटी को मना नहीं किया| .
अब रानो रोज गाँव के एक खाली मैदान में प्रैक्टिस करने लगी जैसे ही गाँव के प्रधान को भनक लगी लाख दलीलें देने के बाद भी उसने अच्छी खासी खरी खोटी सुनाई गिरिजा को तथा बेटी को अनुशासन में रखने की हिदायत दी |
माँ के मना करने के बाद भी गिरिजा की बेटी ने प्रैक्टिस बंद नहीं की तो प्रधान ने परिणाम भुगतने की चेतावनी तक दे डाली|
पत्नी की खरी खोटी भी सिर पर हथौड़े की तरह सहन करनी पड़ी|
पूरे गाँव वालों को मुनादी करके इकट्ठा होने को कहा गया| ‘आप दोनों बाप बेटी को इसी वक़्त पंचायत में हाजिर होने का फरमान ज़ारी किया जाता है’ ये लिखा हुआ पर्चा काँपते हाथ में ज्यों ही हवा से फड़फड़ाया गिरिजा अचानक वर्तमान में लौट आया माथे पर पसीना आ गया बेटी प्रैक्टिस के काफी देर बात भी अभी तक नही लौटी थी |
पंच व गाँव वाले पूछ रहे थे “तेरी बेटी क्यों नहीं आई गिरिजा”? प्रधान चौधरी का गुस्सा सातवें आसमान पर था|
“आती हो होगी चौधरी जी थोड़ा इन्तजार और कर लेते” हाथ जोडकर विनती करते हुए गिरिजा बोला|
पंचों व गाँव वालो के सब्र का बाँध टूटा जा रहा था इतनी ही देर में मोटरसाइकिल की गड़गड़ाहट सुनी तो सबका ध्यान उधर गया |
रानो के पीछे एक लड़का प्रधान के छोटे पोते को गोदी में लेकर बैठा था उसके सिर व् आँख पर पट्टी बंधी थी |
लड़का बोला “ताऊ जी छोटे को मेरी क्रिकेट की बॉल लग गई थी बहुत खून बह रहा था हमारे कहने से रानो दीदी तुरंत डॉक्टर के पास ले गई डॉक्टर ने कहा देर हो जाती तो छोटे की आँख चली जाती”|
सुनते ही प्रधान की आँखें छलछला गई वो हाथ जोड़ते हुए बोला “मेरे पोते की आँख पर पट्टी करवा कर बेटी तूने हमारी आँखों पर बंधी पट्टी खोल दी तू तो हमारे गाँव की शान है कल से और छोरियों को भी तू बाइक चलाना सिखाएगी”|
मौलिक एवं अप्रकाशित
आद० डॉ० आशुतोष जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .
प्रिय सीमा जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .
वाह !! यह तरीका है लघुकथा कहने का ..सच है "म्हारी छोरिया छोरो से कम है के ?" के सार्वभामिक सत्य को कुशलता से उद्घाटित करती बेहतरीन रचना है यह | इस हेतु दिली मुबारकबाद आ राजेश कुमारी दीदी !
आद० सुधीर द्विवेदी भैया जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .
आद० सुधीर द्विवेदी भैया जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .
अच्छी और संदेशपरक लघुकथा है आ० राजेश कुमारी जीI हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
आद० योगराज जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .
आद० योगराज जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ . पहले की कई टिप्पणी पता नहीं क्यूँ गायब हो गई हैं
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प्रिय सीमा जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .