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थम ही नहीं रही है,रफ़्तार ज़िन्दगी में ।

हर दर्द की दवा है,बस प्यार ज़िन्दगी में ।।

बैठो न चुप दबाके, तुम राज़ सारे दिल के ।

जज़्बात का ज़रूरी,इज़हार ज़िन्दगी में ।।

माशूक़ से कलह का,यूं ग़म न कीजियेगा ।

पनपाती* है मुहब्बत,तक़रार ज़िन्दगी में ।।

इक़रार हर रज़ा का,है लाज़मी नहीं अब ।

है वक़्त पे जरूरी,इनकार ज़िन्दगी में ।।

'सागर' ख़री मुहब्बत,करके दिखो किसी से ।

हरदम रहे खुशी की,भरमार ज़िन्दगी में ।।

- प्रशांत दीक्षित 'सागर'

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on October 13, 2019 at 9:09pm

बहुत बहुत धन्यवाद Samar kabeer जी सुझावों के लिए ।

मुझे ऐसे ही मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता है  

Comment by Samar kabeer on October 13, 2019 at 8:49pm

जनाब प्रशांत दीक्षित 'सागर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

ज़िन्दगी में ।

'हर मर्ज़ की दवा है,बस प्यार ज़िन्दगी में'

इस मिसरे में 'मर्ज़' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मरज़",इसकी जगह "दर्द" ले सकते हैं ।

'पनपाति है मुहब्बत,तक़रार ज़िन्दगी में'

इस मिसरे में 'पनपाति' शब्द आपने शायद वज़्न 

पूरा करने के लिए लिया है,ये शब्द शुद्ध नहीं है,देखियेगा ।

'इक़रार हर रज़ा का,है लाज़मी नहीं'

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।

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