डटे रहो तुम अपने पथ पर,
इक दिन दुनिया ये डोलेगी ।
जल,थल और आकाश में जनता,
तेरी ही बोली बोलेगी ।।
कभी डरो ना असफलता से,
स्वाद तुम्हें जो जीत का चखना ।
व्यंग्य करें कितने ही दुनिया,
खुद पर विश्वास बनाए रखना ।।
नाम मिला उनका मिट्टी में,
जो हैं बस ख्वाबों में जीते ।
कर्मभूमि पर रहने वाले,
विजय का मृत हैं पीते ।।
बिन संघर्ष यहां सफलता,
नहीं कभी कोई पा पाया ।
उनका ही निखरा है जीवन,
जिसने खुद को है तपाया ।
चलो उठो अब कर्म करो तुम,
ख्वाबों की दुनिया से निकलो ।
लक्ष्य बना लो सपनों को तुम,
उनको पाकर ही अब दम लो ।।
घोर निराशा आने पर भी,
सदा जीत की आस रखो ।
सफल तुम्हें निश्चित ही होना,
हरदम यह विश्वास रखो ।।
इक दिन तेरी खुशबू से,
सारी दुनिया ये महकेगी ।
कामयाबी खुद आगे बढ़कर,तेरे कदमों को चूमेगी ।।
कामयाबी खुद आगे बढ़कर,तेरे कदमों को चूमेगी ।।
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब प्रशांत दीक्षित 'सागर' जी आदाब, अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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