राहों की इन मुश्किलों से,इंसा तू न डर ।
पानी है तुझे मंजिल,हिम्मत तो ज़रा कर ।।
कि जाना है तुझे अभी,फ़लक से भी आगे ।
दुनिया ये सारी फिर,पीछे तेरे भागे ।।
छोटी-छोटी हारों से,ना खुद को दुखी कर ।
पानी है तुझे मंजिल,हिम्मत तो ज़रा कर ।।
छोटे व्यवधानों से,हिम्मत तेरी भागी ।
ये तो हैं कंकर,अभी चट्टान है बाकी ।।
जाएंगे बन पुष्प,तेरी राहों के पत्थर ।
पानी है तुझे मंज़िल,हिम्मत तो ज़रा कर ।।
माना दूर है बहुत,तेरी मंज़िल तो क्या ।
मुश्किलों से भरा हुआ,पूरा सफ़र तो क्या ।।
अपने तन और मन को,तू हौसलों से भर ।
पानी है तुझे मंजिल,हिम्मत तो ज़रा कर ।।
- प्रशांत दीक्षित
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
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