For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कर्त्ता और क्रिया के व्यवस्थापक है कारक -- डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

      

                हिंदी शब्द सागर के अनुसार- व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम की उस व्यवस्था को कारक कहते है, जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ सम्बन्ध प्रकट होता है I यह अंग्रेजी व्याकरण के CASE की भांति है I CASE  को अंग्रेजी में निम्न प्रकार परिभषित किया गया है I

 

              Grammatical case pertains to nouns and pronouns. A case shows its relationship of a noun or pronoun  with the other words in a sentence.

               हिन्दी में कारको की संख्या आठ है I इन कारको के अपने अर्थ है और उनके चिन्ह भी है परन्तु यह चिन्ह कभी वाक्य में स्पष्ट रूप से विद्यमान होते है कभी वे लुप्त अथवा अप्रत्यक्ष होते है I यथा – ‘मैंने खाया’, यहाँ पर कर्ता कारक का चिन्ह ‘ने’ स्पष्ट है I परन्तु  ‘मै गया’ में यह चिन्ह लुप्त है I सम्प्रति यहाँ सभी कारक, उनके अर्थ और उनके चिन्हों का विवरण  अधोवत दिया जा रहा है -

नाम कारक                 संक्षिप्त अर्थ                                                     चिन्ह

1-कर्ता                   कार्य करने वाला                                                         ने

2-कर्म                    कार्य का जिस पर प्रभाव पड़े                                        को

3-करण                  कर्ता के कार्य करने का माध्यम                                     से

4-सम्प्रदान            क्रिया जिसके लिए की जाये                                          को ,के ,लिए

5–अपादान            जिससे से अलग होनेका बोध हो                                    से [बिछड़ना]

6-सम्बन्ध             वाक्य की अन्य बातो से सम्बन्ध                                   का,की,के.रा,री,रे

7-अधिकरण          क्रिया का आधार स्तम्भ                                               में पर, ऊपर

8–संबोधन            पुकारना, बुलाना, आह्वान  चौंकना, विस्मय, शोक            हे ! भगवान , सखी री ! हाय !

                 

                                                               

 

1-कर्ता कारक

               वाक्य में कार्य करने वाले को कर्ता कहते है I जैसे –

               लखन सकोप बचन जब बोले I डगमगानि महि कुंजर डोले II

              उक्त उदहारण में लखन, महि [पृथ्वी ], कुंजर [दिग्गज ] ये बोलने, डगमगाने और डोलने की क्रिया के करने वाले है I अतः इनमे कर्ता कारक है I

 

2-कर्म कारक 

                कर्ता जब कोई कार्य करता है तो किसी संज्ञा, सर्वनाम, व्यक्ति अथवा वस्तु पर उसका प्रभाव पड़ता है I यह प्रभाव जिस पर भी पड़ता है वही कर्म कारक है I  जैसे –

               मुठिका एक महा कपि हनी I रुधिर बमत धरती ढनमनी II

               इस उदाहरण में कर्ता हनुमान जी हैं, जो लंकिनी को एक मुक्का जड़ते है और प्रभाव किसपर होता है , जाहिर है लंकिनी पर क्योंकि वही रक्त वमन करती हुयी धरती पर ढेर हो जाती है I इस प्रकार लंकिनी यहाँ पर कर्म कारक है I

 

3-करण कारक

                कर्ता कार्य करता है, परंतु उसकी क्रिया का जो साधन है, वही करण कारक है I उदाहरणस्वरुप  मैथिलीशरण गुप्त के ‘जयद्रथ-बध’ काव्य की निम्नांकित पंक्तियां देखिये –

 

               वह शर इधर गांडीव-गुण से भिन्न जैसे ही हुआ  I

               धड से जयद्रथ का उधर सर छिन्न वैसे ही हुआ  II

               उक्त उदाहरण में अर्जुन का बाण जैसे ही गांडीव धनुष की प्रत्यंचा से छूटा वैसे ही उधर जयद्रथ का धड उसके शरीर से अलग हो गया I यहाँ पर क्रिया का साधन धनुष है I अतः धनुष ‘करण’ कारक हुआ  I इसी प्रकार एक उदाहरण ‘पंचवटी’ काव्य से देखिये -

 

               आक्रमणकारिणी के झट, लेकर शोणित तीक्ष्ण कृपाण I

               नाक कान काटे लक्ष्मन ने, लिये न उसके पापी प्राण ।

 

               उपर्युक्त उदाहरण में लक्ष्मण ने तीक्ष्ण कृपाण से सुपर्णखा  के नाक व कान  काटे है I यहाँ पर कार्य का साधन कृपाण है I अतः कृपाण में ‘करण’ कारक है I

      

 

4 –सम्प्रदान कारक

              कर्ता जब कोई कार्य करता है तो उसका कोई उद्देश्य होता है I वह कार्य स्वयं के लिए करता है या किसी दूसरे के लिए I वह जिसके लिए यह कार्य करता है  उसे ही सम्प्रदान कारक कहते हैं I जैसे ‘यशोधरा’ महाकाव्य के इस उदाहरण में दर्शित है

 

            तेरे   वैतालिक   गाते   है I

            स्वस्ति लिए ब्राह्मण आते है I

            गोप  दुग्ध–भाजन    लाते है I

                              ऊपर  झलक  रहा  है  झाग I

                               जाग ! दु:खिनी के सुख जाग !

           उक्त उदाहरण में वैतालिक गौतम पुत्र राहुल का विरुद गाते है I ब्राह्मण उसके लिए ‘स्वस्ति’ लेकर आते है I ग्वाले दूध लेकर आते है और यशोधरा कहती है कि हे दु:खिनी माता के पुत्र अब तू जाग I यहाँ पर सारा कार्य राहुल के लिए हो रहा है अतः यहाँ पर सम्प्रदान कारक है I

 

5- अपादान कारक 

           किसी संज्ञा या सर्वनाम से जब कोई वस्तु या चीज का अलगाव अथवा पार्थक्य होने का बोध हो तब वहां पर अपादान कारक होता है I इसका ‘साकेत’ में एक उदाहरण देखे -

 

            वर   विमान   से कूद,  गरुड़  से  ज्यों पुरुषोत्तम,
            मिले भरत से राम क्षितिज में सिन्धु-गगन-सम !

           उक्त उदाहरण के अनुसार राम जब पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे तब वे भरत को देखकर विमान से यूँ कूद पड़े जैसे भगवान विष्णु गरुड़ से कूद पड़ते है I यहाँ पर विमान और गरुड़ से अलगाव का भाव है I अतः अपादान कारण है I इससे पहले करण कारक में भी जो उदाहरण दिया गया है उसमे भी बाण लगने पर जयद्रथ का धड शरीर से अलग हो जाता है I अतः वहा भी उस प्रसंग में अपादान कारण है I

 

6-सम्बन्ध कारक

           संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस स्वरुप से किसी एक वस्तु का दूसरी  वस्तु से सम्बन्ध प्रकट होता है, उसे सम्बन्ध कारक कहते है I उदाहरण स्वरूप जयशंकर प्रसाद  कृत ‘आंसू ‘ का यह वर्णन अवलोकनीय है –

 

          नक्षत्र   डूब   जाते  है

          स्वर्गंगा  की  धारा  में I

         बिजली  बंदी  होती जब 

         कादिम्बिनि की कारा में I 

  

         उक्त उदाहरण में नक्षत्र का सम्बन्ध आकाश गंगा से है और बिजली का सम्बन्ध बादलो के कारावास से है I  इस प्रकार यहाँ सम्बन्ध कारक है I

 

7-अधिकरण कारक

          संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार-स्तम्भ का भान होता है उसे अधिकरण कारक कहते है I उदाहरण स्वरुप ‘साकेत’ में उर्मिला का एक चित्र देखिये -

 

             दायाँ हाथ लिये था सुरभित

                  चित्र-विचित्र सुमन माला I

             टांग धनुष को इन्द्रलता पर

                  मनसिज  ने डेरा  डाला I

 

          उक्त दृश्य में उर्मिला बहुवर्णी सुमन माल को (लक्ष्मण के गले में डालने हेतु) उठाये हुए है पर कवि को लगता है कि कामदेव ने  इन्द्रलता पर धनुष टांग कर आराम से डेरा डाल दिया है I यहाँ इन्द्रलता आधार है जिस ‘पर’ धनुष टंगा हुआ है I  अतः यहाँ पर अधिकरण कारक है I

 

8-संबोधन कारक

           संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी को संबोधित किया जाये या आश्चर्य, हर्ष, विषाद अथवा घृणा प्रकट की जाए वहाँ संबोधन कारक होता है I उदाहरण के रूप में मलिक मुहम्मद जायसी कृत ‘पद्मावत’ के  नागमती विरह वर्णन का यह चित्र देखिये –

 

            पिउ  से  कहेव  संदेसड़ा,  हे भौरा  ! हे काग !

            सो धनि विरहै जरि मुई  तेहिक धुवाँ हम लाग I

 

            यहाँ नागमती  भौरे और कौए को संबोधित करते हुए कहती है कि तुम {चूँकि उड़ने वाले जीव हो ) जाकर मेरे प्रिय से यह संदेश कहना कि वह स्त्री विरह में जल कर मर गयी है और उसी का धुवाँ हमें लगा है ( जिससे हम काले हो गए है ) इसी प्रकार ‘पंचवटी’ काव्य में भगवान् राम और सूपर्णखा का वार्तालाप दृष्टव्य है –

 

              पाप शांत हो ! पाप शांत हो !

                          कि  मै  विवाहित  हूँ  बाले !

              पर  क्या पुरुष  नहीं होते है

                           दो-दो    दाराओ     वाले  I

 

       इस प्रसंग में ‘पाप शांत हो !’ मे शान्ति का आह्वान है और ‘बाले !’ में संबोधन है I अतः यहाँ पर संबोधन कारक है I

 

                                                                                                            ई एस -1/436, सीतापुर रोड योजना

                                                                                                           सेक्टर-ए, अलीगंज, लखनऊ I

                                                                                                            मो0  9795518586

(मौलिक व अप्रकाशित )

 

Views: 3100

Replies to This Discussion

कारक को बहुत ही आसान तरीके यहाँ समझाया है आपने आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी । हम सबके लिए ही बहु उपयोगी सामग्री देने के लिये आभार ।

इस आलेख को मुझे प्रतिदिन पढ़ने की जरुरत है।  सादर। :))))

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service