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उर्दू शायरी में इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण - II

पहले भाग में मुफ़रद बह्रों के उदाहरण प्रस्तुत किए गए थे. इस भाग में मुरक़्क़ब बह्रों के उदाहरण हैं.

मज़ारे

मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

221        2121      1221     212

हक़ फ़त्ह-याब मेरे ख़ुदा क्यूँ नहीं हुआ

तू ने कहा था तेरा कहा क्यूँ नहीं हुआ

 

जो कुछ हुआ वो कैसे हुआ जानता हूँ मैं

जो कुछ नहीं हुआ वो बता क्यूँ नहीं हुआ - इरफ़ान सिद्दीक़ी

 

दीवार क्या गिरी मेरे ख़स्ता मकान की

लोगों ने मेरे सह्न में रस्ते बना लिए - सिब्त अली सबा

बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए

दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है - हैदर अली आतिश

 

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल

दुनिया है चल-चलाओ का रस्ता सँभल के चल - बहादुर शाह ज़फ़र

 

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में

किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में

कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में - बहादुर शाह ज़फ़र

 

शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़

वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले - मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'

 

अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल

हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया - जिगर मुरादाबादी

                  

गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़

काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं

 

यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर

जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं - जिगर मुरादाबादी

 

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं

हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं - जिगर मुरादाबादी

 

कुछ इस अदा से आज वो पहलूनशीं रहे

जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे - जिगर मुरादाबादी

 

बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गए

इंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए - कैफ़ी आज़मी

 

लिक्खो सलाम ग़ैर के ख़त में ग़ुलाम को

बंदे का बस सलाम है ऐसे सलाम को - मोमिन ख़ाँ मोमिन

 

हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो

सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं  - ख़ुमार बाराबंकवी

 

इंसान जीते-जी करें तौबा ख़ताओं से

मजबूरियों ने कितने फ़रिश्ते बनाए हैं - ख़ुमार बाराबंकवी

 

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल

लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे - अल्लामा इक़बाल

 

इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के

अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के - फ़रहत एहसास

 

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी

जिस को भी देखना हो कई बार देखना - निदा फ़ाज़ली

 

बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई

इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया - ख़ालिद शरीफ़

 

इस बार राह-ए-इश्क़ कुछ इतनी तवील थी

उस के बदन से हो के गुज़रना पड़ा मुझे - अमीर इमाम

 

मीठे थे जिन के फल वो शज़र कट कटा गए

ठंडी थी जिस की छाँव वो दीवार गिर गयी - नासिर काज़मी

 

कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें

आए हैं इस गली में तो पत्थर ही ले चलें - नासिर काज़मी

 

आ कर गिरा था कोई परिंदा लहू में तर

तस्वीर अपनी छोड़ गया है चटान पर - शकेब जलाली

 

कुछ अक़्ल भी है बाइस-ए-तौक़ीर ऐ 'शकेब'

कुछ आ गए हैं बालों में चाँदी के तार भी - शकेब जलाली

 

हर चंद राख हो के बिखरना है राह में

जलते हुए परों से उड़ा हूँ मुझे भी देख - शकेब जलाली

 

इक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया

काली सड़क पे चाँद सा चेहरा चमक गया - मोहम्मद अल्वी

 

इस शहर में कहीं पे हमारा मकाँ भी हो

बाज़ार है तो हम पे कभी मेहरबाँ भी हो - मोहम्मद अल्वी 

 

कल सू-ए-ग़ैर उस ने कई बार की निगाह

लाखों के बीच छुपती नहीं प्यार की निगाह - मुसहफ़ी

 

क्या जाने क्या करेगा ये दीदार देखना

इक दिन में आईना उसे सौ बार देखना - मुसहफ़ी

 

काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें

उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें- अख़्तर शीरानी

 

पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा

लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए - अकबर इलाहाबादी

 

इक नाम क्या लिखा तेरा साहिल की रेत पर

फिर उम्र भर हवा से मेरी दुश्मनी रही - परवीन शाकिर

 

ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है

हद-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है  - शहरयार

 

कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ

मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए - शहरयार

 

शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम

आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें - राहत इन्दौरी

 

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ

सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए - राहत इन्दौरी

 

पैगाम ये मिला है जनाबे हफ़ीज़ को

अंजाम पहले सोच लें तब शायरी करे - हफ़ीज़ मेरठी

 

सुनता नहीं है मुफ़्त जहाँ बात भी कोई

मैं ख़ाली हाथ ऐसे ज़माने में रह गया

 

बाज़ार-ए-ज़िंदगी से क़ज़ा ले गई मुझे

ये दौर मेरे दाम लगाने में रह गया - हफ़ीज़ मेरठी

 

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है

लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के

वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

उठ कर तो आ गए हैं तेरी बज़्म से मगर

कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

आँखों में आँसुओं का कहीं नाम तक नहीं

अब जूते साफ़ कीजिए उन के रुमाल से - आदिल मंसूरी

 

फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया

उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के

 

किस तरह जम्अ' कीजिए अब अपने आप को

काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के - आदिल मंसूरी

 

मजमूआ' छापने तो चले हो मियाँ मगर

अशआर में तुम्हारे कोई बात भी तो हो - आदिल मंसूरी

 

अल्लाह जाने किस पे अकड़ता था रात दिन

कुछ भी नहीं था फिर भी बड़ा बद-ज़बान था - आदिल मंसूरी

 

वो चाय पी रहा था किसी दूसरे के साथ

मुझ पर निगाह पड़ते ही कुछ झेंप सा गया - आदिल मंसूरी

 

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी

जिस को भी देखना हो कई बार देखना - निदा फ़ाज़ली

 

लाई हयात आये, कज़ा ले चली, चले

अपनी ख़ुशी न आये, न अपनी ख़ुशी चले

 

बेहतर तो यही है कि न दुनिया से दिल लगे

पर क्या करें जो काम न बेदिल-लगी चले

 

दुनिया ने किसका राहे फ़ना मे दिया है साथ

तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले - मुहम्मद इब्राहिम ‘ज़ौक़’

 

कोई घड़ी अगर वो मुलाएम हुए तो क्या

कह बैठेंगे फिर एक कड़ी दो घड़ी के बाद - मुहम्मद इब्राहिम ‘ज़ौक़’

 

कैसे गुज़र गयी है जवानी न पूछिए

दिल रो रहा है क्यूँ ये कहानी न पूछिए - अल्ताफ़ हुसैन ‘हाली’

 

बहला न दिल न तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म गई

ये जानता तो आग लगाता न घर को मैं - फ़ानी बदायुनी

 

अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ

देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ - निज़ाम रामपुरी

 

पीरी में वलवले वो कहाँ हैं शबाब के

इक धूप थी कि साथ गई आफ़्ताब के - मुंशी ख़ुशवक़्त अली ख़ुर्शीद

 

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं

सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं - हैरत इलाहाबादी

 

दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से

इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से - महताब राय ताबां

 

अब इत्र भी मलो तो मुहब्बत की बू नहीं

वो दिन हवा हुए कि पसीना गुलाब था - माधवराम जौहर

 

नाज़ुक दिलों के ज़ख़्म को मरहम कभू न हो

पैराहने हुबाब फटे तो रफू न हो - हसरत 

 

जो कुछ कहो क़ुबूल है तकरार क्या करूं

शर्मिंदा अब तुम्हें सरे बाज़ार क्या करूं - अनवर शऊर

 

मैं तो गज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा

सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए - कृष्ण बिहारी नूर

 

ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया

कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए - जावेद अख़्तर

 

जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ दे

जब तुम चलो ज़मीन चले आसमाँ चले - जलील मानिकपूरी

मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक सालिम

मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु  फ़ाइलातुन                                                   

221        2122          221       2122  

 

दरिया की ज़िंदगी पर सदक़े हज़ार जानें

मुझ को नहीं गवारा साहिल की मौत मरना - जिगर मुरादाबादी

एहसास-ए-आशिक़ी ने बेगाना कर दिया है

यूँ भी किसी ने अक्सर दीवाना कर दिया है - जिगर मुरादाबादी

 

अपनी तो इस चमन में नित उम्र यूँ ही गुज़री

याँ आशियाँ बनाया वाँ आशियाँ बनाया - मुसहफ़ी

 

कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा

सच कहिए तो ज़माना यारो नहीं है सच का - मुसहफ़ी

 

अंदाज़ हू-ब-हू तिरी आवाज़-ए-पा का था

देखा निकल के घर से तो झोंका हवा का था - अहमद नदीम क़ासमी

 

कुछ तो लतीफ़ होतीं घड़ियाँ मुसीबतों की,

तुम एक दिन तो मिलते दो दिन की ज़िन्दगी में - सागर निजामी

 

दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे

चर्चे यूँ ही रहेंगे अफ़्सोस हम न होंगे - आग़ा मोहम्मद तक़ी

 

सब इख़्तियार मेरा तुज हात है पियारा

जिस हाल सूँ रखेगा है ओ ख़ुशी हमारा

 

नैना अँझूँ सूँ धोऊँ पग अप पलक सूँ झाडूँ

जे कुइ ख़बर सो ल्यावे मुख फूल का तुम्हारा - क़ुली क़ुतुब शाह

       

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसितां हमारा - अल्लामा इक़बाल

मुन्सरेह

 

मुन्सरेह मुरब्बा मुजाइफ़ मतव्वी मतव्वी मक्सूफ़

मुफ़्तइलुन  फ़ाइलुन  //  मुफ़्तइलुन फ़ाइलुन      

2112          212      //     2112       212

 

बैठे हो क्यूँ हार के साए में दीवार के

शायरो सूरतगरो कुछ तो किया चाहिए

 

मानो मेरी 'काज़मी' तुम हो भले आदमी

फिर वही आवारगी कुछ तो किया चाहिए - नासिर काज़मी

 

और कोई चारा न था और कोई सूरत न थी

उस के रहे हो के हम जिस से मुहब्बत न थी

 

अब तो किसी बात पर कुछ नहीं होता हमें

आज से पहले कभी ऐसी तो हालत न थी - मोहम्मद अल्वी

 

मुंतज़िर उस के दिला ता-ब-कुजा बैठना

शाम हुई अब चलो सुब्ह फिर आ बैठना - नज़ीर अकबराबादी

 

सिलसिला-ए-रोज़ो-शब नक्शबारे-हादिसात

सिलसिला-ए-रोज़ो शब अस्ले-हयातो-मुमात - अल्लामा इक़बाल

 

मुन्सरेह मुसम्मन मतव्वी मन्हूर

मुफ़्तइलुन फ़ाइलातु मुफ़्तइलुन फ़ा

 2112        2121      2112       2                                                 

 

कोई नहीं आस पास, खौफ़ नहीं कुछ

होते हो क्यूँ बेहवास, खौफ़ नहीं कुछ - इंशा अल्लाह ख़ान

 

ऐश-ए-जहाँ बाइसे-निज़ात नहीं है

खंदा-ए-तस्वीर, इन्बिसात नहीं है - फ़ानी बदायुनी

मुक्तज़ब

 

मुक्तज़ब मुसम्मन मतव्वी, मतव्वी मुसक्किन

फ़ाइलातु  मफ़ऊलुन //  फ़ाइलातु  मफ़ऊलुन 

2121         222       //    2121        222

(ये वज़न बह्रे हज़ज में भी मुमकिन हैं लेकिन हज़ज में यति(वक्फ़ा) के बाद एक अतिरिक्त लघु नहीं लिया जा सकता)

कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है     

बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है

 

इश्क़ के तग़ाफ़ुल से हर्ज़ा-गर्द है आलम

रू-ए-शश-जिहत-आफ़ाक़ पुश्त-ए-चश्म-ए-ज़िन्दाँ है - मिर्ज़ा ग़ालिब

 

मुक्तज़ब मुसम्मन मतव्वी, मतव्वी मुसक्किन मुजाइफ़

फ़ाइलातु  मफ़ऊलुन //  फ़ाइलातु  मफ़ऊलुन // फ़ाइलातु  मफ़ऊलुन //  फ़ाइलातु  मफ़ऊलुन   

2121           222     //     2121        222     //   2121          222     //    2121       222

(ये वज़न बह्रे हज़ज में भी मुमकिन हैं > 212 1222  212  1222   212  1222  212  1222)

शहर के दुकाँ-दारो कारोबार-ए-उल्फ़त में सूद क्या ज़ियाँ क्या है तुम न जान पाओगे

दिल के दाम कितने हैं ख़्वाब कितने महँगे हैं और नक़्द-ए-जाँ क्या है तुम न जान पाओगे

 

जानता हूँ मैं तुम को ज़ौक़-ए-शाएरी भी है शख़्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है

फिर भी हर्फ़ चुनते हो सिर्फ़ लफ़्ज़ सुनते हो उन के दरमियाँ क्या है तुम न जान पाओगे - जावेद अख़्तर

 

मुक्तज़ब मुसम्मन मतुव्वी मर्फूअ

फ़ाइलातु फ़ाइलुन // फ़ाइलातु फ़ाइलुन

2121        212    //    2121      212

 

मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ

मंज़िलों की बात है रास्ते में क्या कहूँ

 

तर्जुमान-ए-राज़ हूँ ये भी काम है मिरा

उस लब-ए-ख़मोश ने मुझ से जो कहा कहूँ

 

ग़ैर मेरा हाल-ए-ग़म पूछते रहे मगर

दोस्तों की बात है दुश्मनों से क्या कहूँ

 

इम्तिहान-ए-शौक़ है ऐसी आशिक़ी 'नुशूर'

दिल का कोई हाल हो उन को दिलरुबा कहूँ - नुशुर वाहिदी   

 

मुक्तज़ब मुसम्मन मख़्बून मर्फूअ मख़्बून मर्फूअ मुसक्किन

फ़ऊलु फ़ेलुन फ़ऊलु फ़ेलुन

121       22     121    22

 

वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था

हवाओं का रुख दिखा रहा था

बताऊँ कैसे वो बहता दरिया
जब आ रहा था तो जा रहा था

उसी का ईमाँ बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था - गुलज़ार

 

गिरह में रिश्वत का माल रखिए

ज़रूरतों को बहाल रखिए

 

अरे ये दिल और इतना ख़ाली

कोई मुसीबत ही पाल रखिए - मोहम्मद अल्वी

 

हमें भी आता है मुस्कराना

मगर किसे मुस्करा के देखें - मोहम्मद अल्वी

 

सितारे हैरान हो रहे थे

चराग़ मिट्टी में जल रहा था

 

दुआएँ खिड़की से झाँकती थीं

मैं अपने घर से निकल रहा था - हम्माद नियाज़ी

 

मुक्तज़ब मख़्बून मर्फूअ मख़्बून मर्फूअ मुसक्किन 12-रुक्नी

फ़ऊलु फ़ेलुन फ़ऊलु फ़ेलुन फ़ऊलु फ़ेलुन 

121      22      121     22     121     22 

 

वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है

ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है

 

जो मुझ को ज़िंदा जला रहे हैं वो बे-ख़बर हैं

कि मेरी ज़ंजीर धीरे धीरे पिघल रही है - जावेद अख़्तर

 

कहीं तो पा-ए-सफ़र को राह-ए-हयात कम थी

क़दम बढ़ाया तो सैर को काएनात कम थी

 

सिवाए मेरे किसी को जलने का होश कब था

चराग़ की लौ बुलंद थी और रात कम थी - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

 

वो रात जिस में ज़वाल-ए-जाँ का ख़तर नहीं था

वो रात गहरे समुंदरों में उतर गई है - मुसव्विर सब्ज़वारी

 

मुक्तज़ब मुसम्मन मख़्बून मर्फ़ूअ' मख़्बून मर्फ़ूअ' मुसक्किन मुजाइफ़

फ़ऊलु फ़ेलुन फ़ऊलु फ़ेलुन  //  फ़ऊलु फ़ेलुन फ़ऊलु फ़ेलुन

121      22      121     22    //    121     22     121    22

 

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ

कि ताब-ए-हिज्राँ नदारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ

शाबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ ओ रोज़-ए-वसलत चूँ उम्र-ए-कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ - अमीर ख़ुसरो

 

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले

सज़ा खता-ए-नज़र से पहले, इताब ज़ुर्मे-सुखन से पहले

 

जो चल सको तो चलो के राहे-वफा बहुत मुख्तसर हुई है

मुक़ाम है अब कोई न मंजिल, फराज़े-दारो-रसन से पहले

 

इधर तक़ाज़े हैं मसहलत के, उधर तक़ाज़ा-ए-दर्द-ए-दिल है

ज़बां सम्हाले कि दिल सम्हाले, असीर ज़िक्रे-वतन से पहले - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

अदम में रहते तो शाद रहते उसे भी फ़िक्र-ए-सितम न होता

जो हम न होते तो दिल न होता जो दिल न होता तो ग़म न होता - मोमिन ख़ाँ मोमिन

 

क़रीब है यारो रोज़-ए-महशर छुपेगा कुश्तों का ख़ून क्यूँकर

जो चुप रहेगी ज़बान-ए-ख़ंजर लहू पुकारेगा आस्तीं का - अमीर मीनाई

 

चमन के फूलों में ख़ून देने की एक तहरीक चल रही है

और इस लहू से ख़िज़ाँ की ख़ातिर ख़िज़ाब तय्यार हो रहा है

 

मैं जब कभी उस से पूछता हूँ कि यार मरहम कहाँ है मेरा

तो वक़्त कहता है मुस्कुरा कर जनाब तय्यार हो रहा है - फ़रहत एहसास

 

गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो

अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो - नासिर काज़मी

  

तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंज़र से आप ही खुदकशी करेगी

जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पायदार होगा

 

ख़ुदा के आशिक तो हैं हज़ारों बनों में फिरते हैं मारे मारे

मैं उसका बन्दा बनूंगा जिस को ख़ुदा के बन्दों से प्यार होगा - अल्लामा इक़बाल

 

चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे

उतार दे चाँद उस के दर पर सियाह दिन मेरे घर में रख दे - अतीक़ुल्लाह

 

बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है

हर एक ग़ुंचा चटक रहा है गुलों की रंगत बदल रही है

 

तड़प रहा हूँ यहाँ मैं तन्हा वहाँ अदू से वो हम-बग़ल हैं

किसी के दम पर बनी हुई है किसी की हसरत निकल रही है - आग़ा शायर क़ज़लबाश

 

ये हुस्न है आह या क़यामत कि इक भभूका भभक रहा है

फ़लक पे सूरज भी थरथरा कर मुँह उस का हैरत से तक रहा है

 

खजूरी चोटी अदा में मोटी जफ़ा में लम्बी वफ़ा में छोटी

है ऐसी खोटी कि दिल हर इक का हर एक लट में लटक रहा है - नज़ीर अकबराबादी

मुज्तस

 

मुज्तस मुसम्मन मख़्बून

मुफ़ाइलुन  फ़इलातुन  मुफ़ाइलुन  फ़इलातुन

1212          1122        1212        1122

 

अजब निशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे

कि अपने साए से सर पाँव से है दो कदम आगे

 

ग़म-ए-ज़माना ने झाड़ी नशात-ए-इश्क़ की मस्ती

वगरना हम भी उठाते थे लज़्ज़त-ए-अलम आगे - मिर्ज़ा ग़ालिब

 

मुज्तस मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ मुसक्किन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212         1122        1212       22

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए - इरफ़ान सिद्दीक़ी

 

मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा

इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा - अमीर क़ज़लबाश

 

खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए

सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को - नज़ीर बाक़री

 

इक चीज़ थी ज़मीर जो वापस न ला सका

लौटा तो है ज़रूर वो दुनिया खरीद कर - क़मर इक़बाल

 

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें

वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं - साहिर लुधियानवी

 

तुम्हारे आने की उम्मीद बर नहीं आती

मैं राख होने लगा हूँ दिए जलाते हुए - अज़हर इक़बाल

 

चकोर हुस्न-ए-मह-ए-चार-दह को भूल गया

मुराद पर जो तेरा आलम-ए-शबाब आया

 

मुहब्बत-ए-मय-ओ-माशूक़ तर्क कर 'आतिश'

सफ़ेद बाल हुए मौसम-ए-ख़िज़ाब आया - हैदर अली आतिश

 

अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है

मगर चराग़ ने लौ को सँभाल रक्खा है

 

भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब

कि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है - अहमद फ़राज़

 

कल रात सूनी छत पे अजब सानेहा हुआ

जाने दो यार कौन बताए कि क्या हुआ - मोहम्मद अल्वी

 

ग़ज़ल कही है कोई भाँग तो नहीं पी है

मुशाएरे में तरन्नुम से क्यूँ सुनाऊँ मैं

 

अरे वो आप के दीवान क्या हुए 'अल्वी'

बिके न हों तो कबाड़ी को साथ लाऊँ मैं - मोहम्मद अल्वी

 

वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत

हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है - आनंद नारायण मुल्ला

 

ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र

न इब्तिदा न कहीं इंतिहा में आता है - सलीम कौसर

 

बदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वर्ना

ये बाग़ साया-ए-सर्व-ओ-समन को तरसेगा - नासिर काज़मी

 

न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ

इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही

नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

गुलों  में  रंग भरे  वाद - ए - नौबहार  चले

चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

इसी ख़याल में हर शाम-ए-इंतज़ार कटी

वो आ रहे हैं वो आए वो आए जाते हैं - नज़र हैदराबादी

 

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

 

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता

मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो  - निदा फ़ाज़ली

 

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए

कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए - निदा फ़ाज़ली

 

ग़ज़ब किया तेरे वादे पे एतबार किया

तमाम रात क़यामत का इंतज़ार किया - दाग़ देहलवी

 

हज़ारों काम मुहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'

जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं - दाग़ देहलवी

 

रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा

मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था - दाग़ देहलवी

 

फ़सील-ए-जिस्म पे ताज़ा लहू के छींटे हैं

हुदूद-ए-वक़्त से आगे निकल गया है कोई - शकेब जलाली

 

जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है

मेरी तरह से अकेला दिखाई देता है

 

न इतनी तेज़ चले सर-फिरी हवा से कहो

शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है

 

खिली है दिल में किसी के बदन की धूप 'शकेब'

हर एक फूल सुनहरा दिखाई देता है - शकेब जलाली

 

किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में

मेरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं - अख़्तर सईद ख़ान

 

मुझे ख़बर थी मेरा इंतज़ार घर में रहा

ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा - साक़ी फ़ारुक़ी

 

मैं क्या भला था ये दुनिया अगर कमीनी थी

दर-ए-कमीनगी पे चोबदार मैं भी था - साक़ी फ़ारुक़ी

 

तेरी दुआ है कि हो तेरी आरज़ू पूरी

मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाए - अल्लामा इक़बाल

 

तमाम उम्र तेरा इंतज़ार हम ने किया

इस इंतज़ार में किस किस से प्यार हम ने किया - हफ़ीज़ होशियारपुरी

 

तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात

मुझे यक़ीं है ख़ुदा मर्द हो नहीं सकता - फ़रहत एहसास

 

अजीब शख़्स था बारिश का रंग देख के भी

खुले दरीचे पे इक फूल-दान छोड़ गया

 

उक़ाब को थी ग़रज़ फ़ाख़्ता पकड़ने से

जो गिर गई तो यूँही नीम-जान छोड़ गया

 

न जाने कौन सा आसेब दिल में बसता है

कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया - परवीन शाकिर

 

मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी

वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा - परवीन शाकिर

 

अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक

हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते - नज़ीर बनारसी

 

अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो

मैं अपने साए से कल रात डर गया यारो

 

वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे

सुना है आज कोई शख़्स मर गया यारो - शहरयार

 

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का

यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का - शहरयार

 

शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को

मैं देखता रहा दरिया तेरी रवानी को - शहरयार

 

रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले

क़रार दे के तेरे दर से बे-क़रार चले - गुलज़ार

 

हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए

नज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए - नशूर वाहिदी

 

अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी

सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे - राहत इन्दौरी

 

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे

किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

 

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में

किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है - राहत इन्दौरी

 

ये खींच-तान तो हिस्सा है दोस्ती का मियाँ

तअल्लुक़ात में लेकिन दरार थोड़ी है 

 

उसे भी ज़िद है कि शादी करेगी तो मुझ से

जुनून मेरे ही सर पे सवार थोड़ी है - विकास शर्मा ‘राज़’

 

हवा के वार पे अब वार करने वाला है

चराग़ बुझने से इंकार करने वाला है

 

ज़मीन बेच के ख़ुश हो रहे हो तुम जिस को

वो सारे गाँव को बाज़ार करने वाला है - विकास शर्मा ‘राज़’

 

इसी लहू में तुम्हारा सफ़ीना डूबेगा

ये क़त्ल-ए-आम नहीं तुमने ख़ुदकुशी की है - हफ़ीज़ मेरठी

 

ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त

तेरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई - फ़िराक़ गोरखपुरी

 

न कोई वादा न कोई यक़ीं न कोई उमीद

मगर हमें तो तेरा इंतज़ार करना था - फ़िराक़ गोरखपुरी

 

हजार बार ज़माना इधर से गुजरा है

नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी - फ़िराक़ गोरखपुरी

 

दिखा तो देती है बेहतर हयात के सपने

खराब होके भी ये जिंदगी खराब नहीं - फ़िराक़ गोरखपुरी

 

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए

अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए - उबैदुल्लाह अलीम

 

सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़

जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले - मजरूह सुल्तानपुरी

 

हयात ले के चलो काएनात ले के चलो

चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो - मख़दूम मुहिउद्दीन

 

अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी

हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का - जावेद अख़्तर

 

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

कही जमीं तो कही आसमाँ नहीं मिलता - निदा फ़ाज़ली

 

वो अक्स बन के मेरी चश्म-ए-तर में रहता है

अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है - बिस्मिल साबरी

 

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

कि एक उम्र चले और घर नहीं आया - इफ़्तिख़ार आरिफ़

 

समन्दरों की तलाशी कोई नहीं लेता

गरीब लहरों पे पहरे बिठाये जाते हैं - वसीम बरेलवी

 

ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम

यहाँ से तेरे मिरे रास्ते बदलते हैं - बशीर बद्र

 

छप्पर के चाए-ख़ाने भी अब ऊँघने लगे

पैदल चलो कि कोई सवारी न आएगी - बशीर बद्र

 

मैं एक कतरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है

हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है

 

मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था

उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है - कृष्ण बिहारी नूर

 

मैं और मेरी तरह तू भी इक हक़ीक़त है

फिर इस के बाद जो बचता है वो कहानी है - अभिषेक शुक्ला

 

वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था

कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए - राजेन्द्र मनचन्दा 'बानी' 

सरीअ

 

सरीअ मुसद्दस मतव्वी मक़्सूफ़

मुफ़्तइलुन मुफ़्तइलुन फ़ाइलुन

2112         2112       212 

हाथ दिया उस ने मिरे हाथ में

मैं तो वली बन गया इक रात में

 

शाम की गुल-रंग हवा क्या चली

दर्द महकने लगा जज़्बात में

 

हाथ में काग़ज़ की लिए छतरियाँ

घर से न निकला करो बरसात में - क़तील शिफ़ाई

 

दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया

देर तलक वो मुझे देखा किया

 

मर गए उस के लब-ए-जाँ-बख़्श पर

हम ने इलाज आप ही अपना किया

  

जाए थी तेरी मेरे दिल में सो है

ग़ैर से क्यूँ शिकवा-ए-बेजा किया - मोमिन ख़ाँ मोमिन

मदीद

मदीद मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122         212       2122        212

हिज़्र में ये हाल है ज़िस्त की सूरत नहीं
आओ जानी अब हमें ताक़ते फ़ुरकत नहीं - सफ़ी अमरोहवी

ज़दीद

ज़दीद मुसद्दस मख़्बून

फ़इलातुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन

1122      1122         1212

मुझे हासिल हो जो टुक भी फ़राग़े दिल
तो रहे क्यूँ तपिश-ओ-दर्द दाग़े-दिल - इंशा अल्लाह ख़ान

जो कभी एक घड़ी हाँ भी हो गई
तो रही फिर वही दो दो पहर नहीं - इंशा अल्लाह ख़ान

खफ़ीफ़

 

खफ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून मजहूफ़

फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ा

2122          1212       2 

 

थमते थमते थमेंगे आँसू

रोना है कुछ हँसी नहीं है - बुध सिंह कलंदर

 

खफ़ीफ़ मुसद्दस सालिम मख़्बून महज़ूफ़ मुसक्किन

फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 

2122         1212        22

मुफ़लिसी सब बहार खोती है

मर्द का एतबार खोती है - वली मोहम्मद वली

 

तुम मेरे पास होते हो गोया

जब कोई दूसरा नहीं होता - मोमिन ख़ाँ मोमिन

 

याद-ए-माज़ी अज़ाब है या-रब

छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा - अख़्तर अंसारी

 

सुब्ह होती है शाम होती है

उम्र यूँही तमाम होती है - अमीरुल्लाह तस्लीम

 

तंग-दस्ती अगर न हो 'सालिक'

तंदुरुस्ती हज़ार नेमत है - क़ुर्बान अली सालिक बेग

 

दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है

वहम की क्या दवा करे कोई - यास यगाना चंगेजी

 

कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी

कुछ मुझे भी ख़राब होना था - असरार-उल-हक़ मजाज़

 

आप का एतबार कौन करे

रोज़ का इंतज़ार कौन करे - दाग़ देहलवी

 

हासिल-ए-कुन है ये जहान-ए-ख़राब

यही मुमकिन था इतनी उजलत में

 

ऐ ख़ुदा जो कहीं नहीं मौजूद

क्या लिखा है हमारी क़िस्मत में - जौन एलिया

 

अपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खो

कुछ नहीं आसमान में रक्खा - जौन एलिया

 

जो गुज़ारी न जा सकी हम से

हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है - जौन एलिया

 

क्या कहा इश्क़ जावेदानी है

आख़िरी बार मिल रही हो क्या - जौन एलिया

 

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता

एक ही शख़्स था जहान में क्या - जौन एलिया

कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है - जौन एलिया 

 

इतना ख़ाली था अंदरूँ मेरा

कुछ दिनों तो ख़ुदा रहा मुझ में - जौन एलिया  

    

ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है

कितना झुक कर किसे सलाम करो - हफ़ीज़ मेरठी

 

इश्क़ बीनाई बढ़ा देता है

जाने क्या क्या नज़र आता है मुझे - विकास शर्मा राज़

 

है मुहब्बत जो हमनशीं कुछ है

और इसके सिवा नहीं कुछ है

 

दैरो-काबा में ढूंडता है क्या

देख दिल में कि बस यहीं कुछ है - बहादुर शाह ज़फ़र

 

जो मिला उस ने बेवफ़ाई की

कुछ अजब रंग है ज़माने का - मुसहफ़ी

 

जिस में लाखों बरस की हूरें हों

ऐसी जन्नत को क्या करे कोई - दाग़ देहलवी

 

इस नहीं का कोई इलाज नहीं

रोज़ कहते हैं आप आज नहीं - दाग़ देहलवी

 

ख़ुद चले आओ या बुला भेजो

रात अकेले बसर नहीं होती - अज़ीज़ लखनवी

 

और क्या देखने को बाक़ी है

आप से दिल लगा के देख लिया - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

 

इश्क़ की उम्र कम ही होती है

बाक़ी जो कुछ है दोस्ताना है - निदा फाजली

 

जब भी ये दिल उदास होता है

जाने कौन आस-पास होता है - गुलज़ार

 

हर नए हादसे पे हैरानी

पहले होती थी अब नहीं होती - बाक़ी सिद्दीक़ी

 

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

खिलौने दे के बहलाया गया हूँ - शाद अज़ीमाबादी

 

रात कितनी गुज़र गई लेकिन

इतनी हिम्मत नहीं कि घर जाएँ - नासिर काज़मी

 

दिल तो मेरा उदास है 'नासिर'

शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है - नासिर काज़मी

 

नीयत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं

तू भी दिल से उतर न जाए कहीं - नासिर काज़मी

 

चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो

आइना झूट बोलता ही नहीं - कृष्ण बिहारी नूर

 

बुझ गया दिल हयात बाक़ी है

छुप गया चाँद रात बाक़ी है

 

रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे

कट गई उम्र रात बाक़ी है - ख़ुमार बाराबंकवी

 

तुम ने सच बोलने की जुर्रत की

ये भी तौहीन है अदालत की - सलीम कौसर

 

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ - अहमद फ़राज़

 

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे

तू बहुत देर से मिला है मुझे - अहमद फ़राज़

 

लोग यूँ कहते हैं अपने क़िस्से

जैसे वो शाह-जहाँ थे पहले

 

टूट कर हम भी मिला करते थे

बेवफ़ा तुम भी कहाँ थे पहले - अज़हर इनायती

 

ग़ज़लें अब तक शराब पीती थीं

नीम का रस पिला रहे हैं हम

 

टेढ़ी तहज़ीब, टेढ़ी फ़िक्रो नज़र

टेढ़ी ग़ज़लें सुना रहे हैं हम - बशीर बद्र

 

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी

यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता - बशीर बद्र

 

ख़ूबसूरत  उदास  ख़ौफ़ज़दा

वो भी है बीसवीं सदी की तरह - बशीर बद्र

तेरी जानिब से मुझ पे क्या न हुआ

ख़ैर गुज़री कि तू ख़ुदा न हुआ - इम्दाद इमाम असर

 

क्‍यों डरें ज़िन्‍दगी में क्‍या होगा
कुछ न होगा तो तज़्रिबा होगा - जावेद अख़्तर

 

थोड़ी सर्दी ज़रा सा नज़ला है

शायरी का मिज़ाज पतला है

 

देखिए तो सभी बराबर है

सोचिए तो अजीब घपला है - मोहम्मद अल्वी

मैं ने दुनिया समेट ली तो खुला

काम की कोई चीज़ थी ही नहीं - मुनीर सैफ़ी

दिल है वीरान शहर भी ख़ामोश

फ़ोन ही उस को कर लिया जाए - महमूद शाम

 

हम से क्या हो सका मुहब्बत में

ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की - फ़िराक़ गोरखपुरी

 

ज़िन्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त

सोच लें और उदास हो जाएं - फ़िराक़ गोरखपुरी

 

मौत का भी इलाज हो शायद

ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं - फ़िराक़ गोरखपुरी

 

कोई समझे तो एक बात कहूँ

इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं - फ़िराक़ गोरखपुरी

 

बन्दगी से कभी नहीं मिलती

इस तरह ज़िन्दगी नहीं मिलती

 

लेने से ताज़ो-तख़्त मिलता है

मागे से भीख भी नहीं मिलती

एक दुनिया है मेरी नज़रों में
पर वो दुनिया अभी नहीं मिलती - फ़िराक़ गोरखपुरी

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