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dilbag virk's Discussions (601)

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"चलो मालूम हो जाए ज़िग़र रखते हैं कुछ प्यादे  किन्हीं हाथों के खंज़र को बुलावा आज सीने स…"

dilbag virk replied Dec 28, 2011 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १८ (Now Closed With 424 Replies)

424 Dec 31, 2011
Reply by Saurabh Pandey

"अरे साकी पिलाना है तो ऐसी मय पिला हमको जिसे ताउम्र पीकर दिल न आजि़ज़ आये पीने से। बह…"

dilbag virk replied Dec 28, 2011 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १८ (Now Closed With 424 Replies)

424 Dec 31, 2011
Reply by Saurabh Pandey

"गुहर मिलते गए हमको मुहब्बत के दफीने से  हुआ यूं ही, किया हमने नहीं कुछ भी करीने से ।…"

dilbag virk replied Dec 28, 2011 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १८ (Now Closed With 424 Replies)

424 Dec 31, 2011
Reply by Saurabh Pandey

"एक से बढकर एक"

dilbag virk replied Dec 10, 2011 to "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४ (Now Closed with 730 Replies)

730 Dec 11, 2011
Reply by satish mapatpuri

"यही तो है आशा की परिभाषा"

dilbag virk replied Dec 10, 2011 to "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४ (Now Closed with 730 Replies)

730 Dec 11, 2011
Reply by satish mapatpuri

"एकादशी - अभिनव प्रयोग सुंदर तांके"

dilbag virk replied Dec 10, 2011 to "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४ (Now Closed with 730 Replies)

730 Dec 11, 2011
Reply by satish mapatpuri

"सभी शेर लाजवाब"

dilbag virk replied Dec 10, 2011 to "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४ (Now Closed with 730 Replies)

730 Dec 11, 2011
Reply by satish mapatpuri

"सुख-दु:ख दोनों , धूपछाँव- से आते - जाते ठहर न पाई,  इस आंगन में कभी निराशा. लाजवाब"

dilbag virk replied Dec 10, 2011 to "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४ (Now Closed with 730 Replies)

730 Dec 11, 2011
Reply by satish mapatpuri

"सुंदर कविता"

dilbag virk replied Dec 10, 2011 to "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४ (Now Closed with 730 Replies)

730 Dec 11, 2011
Reply by satish mapatpuri

"शायद बन जाये मेरी धड़कने तेरे दिल की आवाज़ ...शायद जी लूं उन कुछ क्षणों में जो सांस क…"

dilbag virk replied Dec 10, 2011 to "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४ (Now Closed with 730 Replies)

730 Dec 11, 2011
Reply by satish mapatpuri

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"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
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"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
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घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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