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ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह अप्रैल 2019 – एक प्रतिवेदन                                      डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

ओबीओ लखनऊ-चैप्टर की साहित्य संध्या माह अप्रैल 2019 का आगाज रविवार दिनांक 28अप्रैल 2019 को श्री भूपेन्द्र सिंह ’होश’ के सौजन्य से 37, रोहतास एन्क्लेव, निकट नील गिरि चौराहा, रवींद्र पल्ली (डॉ. शरदिंदु मुकर्जी का आवास) में सायं 3 बजे हुआ । कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. अनिल मिश्र ने की। संचालन का प्रभार डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव को प्रदान किया गया।

कार्यक्रम के प्रथम चरण में डॉ. अनिल मिश्र ने ध्यान (Meditation)पर अपने विचार व्यक्त किये I एतदर्थ उन्होंने अपनी प्रस्तावना के बाद उपस्थित लोगों से उनकी शंकाओं की  जानकारी ली और फिर अष्टांग योग के अंतर्गत केवल ध्यान पर ही नही अपितु यम, नियम से लेकर समाधि तक अपनी बात रखी I उन्होंने यह भी बताया कि यद्यपि यम-नियम से लेकर ध्यान तक की अवस्था समाधि में जाने की निसेनी है किन्तु एक श्रेणी उन महापुरुषों की भी है जिन्हें इन सीढ़ियों की आवश्यकता नही होती और वे सहज ही सीधे ध्यान की अवस्था प्राप्त कर लेते है I ऐसे लोगों में उन्होंने कबीर का नाम लिया I कुण्डलिनी जागरण हेतु उन्होंने मूलाधार चक्र से स्वाधिष्ठान चक्र की यात्रा पर प्रकाश डाला I चक्र के रंगों के बारे में बताया I किस प्रकार इन सातों चक्र के रंग इन्द्रधनुष के रंगों की तरह हैं और उसी क्रम से चक्रों में स्थित होते है I ये जब एकाकार होते है तो श्वेत रंग बनता है और ब्रह्म रंध्र अद्भुत ज्योति का अनुभव होता है i इसी प्रकार डॉ. मिश्र ने अन्नमय कोष से लेकर आनन्दमय कोष तक की यात्रा का चित्रांकन किया I उनकी प्रस्तुति में एक आकर्षण और सम्मोहन था, जिससे सभी उपस्थित जन मुतासिर हुए I डॉ. मिश्र के अतिरिक्त श्रीमती शीला मिश्र ने भी इस विषय पर सारगर्भित जानकारी दी I

कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्य पाठ करने हेतु सबसे पहले अशोक शुक्ल ‘अनजान’ को आमंत्रित किया गया I कवि अनजान ने आजकाल बड़े पैमाने पर हो रही साहित्यिक चोरी पर तंज किया और फिर देवी वंदना में अपने भाव इस प्रकार प्रकट किये –

मत भूल ‘अनजान’ माँ के किये उपकार

जिसकी कृपा से तूने तन यह पाया है I

 इसके बाद कवि मृगांक श्रीवास्तव जी ने अपना काव्य पाठ किया I मृगांक जी गंभीर चिन्तक हैं, पर वह इन विषयों को बड़ी सहजता से हास्य का रसत्व प्रदान करते हैं I यथा-

चारों ओर वोटरन के,

देवतन के पूजन की जंग है।

बजरंगबली राम और गंगा मैया भी दंग हैं।

अपना इस्तेमाल होति देखि,

देवता भी हैरान हैं।

देखि देखि रहे मुस्कराय,

आए भक्तन में नये नये भुजंग है

 डॉ. अंजना मुखोपाध्याय का चिंतन गम्भीर है और वह गूढ़-व्यंजना भी बड़ी सहजता से करती हैं I जैसे-

ध्यानमग्नता ::

इन्द्रियाँ देह के वातायन पथ हैं I

नरसंहार के सौ साल ::

इतिहास के पन्नों से जाग उठा

 अगले कवि थे डॉ. शरदिंदु मुकर्जी I इन्होंने सबसे पहले गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर की रचना ‘संध्या और प्रभात’ का भावानुवाद समकालीन कविता की तर्ज पर सुनाया I इस रचना का दर्शन प्रभात अर्थात जीवन की शुरुआत है और संध्या का तात्पर्य पर्यावसान की तैयारी I इस अनुवाद का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है -

वे पान्थशाला से निकल पड़े हैं,

चल पड़े हैं पूर्व दिशा में ;

उनके माथे पर सुबह की लालिमा है,

उनकी यात्रा अभी जारी है;

उनके लिए मार्ग के वातायन से

काले नयनों की करुण कामना

निर्निमेष झाँक रही है;

रास्ते ने उन्हें निमंत्रण दिया

तुम्हारे लिए सब तैयार है’.

उनके हृदय का रक्त जयगान करता हुआ

नृत्य करने लगा

इसके बाद कवि मुकर्जी ने अपनी एक स्वरचित कविता भी सुनाई I  इस कविता में गुरुदेव के ही भावों का आलम्बन लिया गया है I अंतर केवल इतना है की इसमें पहले पर्यावसान है और फिर नये जीवन और नए प्रभात का दर्शन है और यह दर्शन आशावादी है , जो भारतीय वैदिक चिंतन की संगति में है I इसमें पर्यवसान की छटपटाहट नही है I इसमें एक उत्साह और ऊर्जा है I जैसे

मेरी नज़र टिकी हुई है,

नए अध्याय के

पहले वाक्य के पहले शब्द पर,

जिसकी मूर्च्छना गूँज रही है

चराचर में.

पर, कुछ दिखाई नहीं देता

काल के पर्दे के पीछे से,

दिखाई नहीं देता इसीलिए,

उत्सुकता तीव्र से तीव्रतर होगी

नए सूरज के उदय होने तक

 कथाकार एवं कवि डॉ अशोक शर्मा सपनों का गाँव सजाते हुए अपनी बात कुछ इस प्रकार कहते हैं –

लो फिर से सज गए

सपनों के गाँव

मन में जाने कैसी

    अकुलाहट जन्मी है

मेरे इन सपनो में

    गुस्सा है गर्मी है

 धूप में खड़े हैं,  भूल गए छाँव

 

कवि रमा शंकर सिंह ने दो बहुत ही सुन्दर घनाक्षरियाँ सुनाईं I किन्तु उनके गीत ने उपस्थित जनों को सर्वाधिक प्रभावित किया I गीत के बोल इस प्रकार है –

चाहता हूँ आँख में सूरज उगा लूं

किन्तु छोटा है बहुत आयाम मेरा

 वरिष्ठ अधिवक्ता एवं कवयित्री श्रीमती ऊषा सिसौदिया ने पनी कविता में उन गवाहों पर तंज कसा जो सच्चाई जानकार भी उससे मुंह फेर लेते है और इसके लिए उन्होंने चाँद का बेहतरीन रूपक गढ़ा I  

चाँद सच्ची गवाही दे सकता है

ऊपर से सब कुछ देखता जो रहता है वो

अब तो यह भी आम लोगों जैसा ही

आदमी देखकर पलट जाता है

 गजलकार भूपेंद्र सिंह ‘होश’ ने प्रारम्भ में कुछ मात्रिक छंद जैसे दोहे और कुण्डलियाँ तहद में सुनाईं I बाद में उन्होंने अपनी एक गजल बातरन्नुम सुनाई I इस गजल का मतला इस प्रकार है –

जहाँ पर स्वच्छता चाही , वहाँ पर धूल पाता हूँ I

ये सच है मैं हवा की गति सदा प्रतिकूल पाता हूँ II

 संचालक डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने उपमा अलंकार के एक भेद ‘ मालोपमा ‘ जिसमे एक उपमेय के अनेक उपमानों की पूरी माला होती है, उस पर आधारित अपनी कविता सुनायी I  यथा- 

लहराते व्याल सी  दृप्त इंद्रजाल सी

पावस की धार सी राधा के प्यार सी

पतझड़ के अंत सी सौरभ बसंत सी

हिम के शृंगार सी रति के दुलार सी

जीवन में आयी तुम दृग में समाई तुम

उपमा की माल सी कैरव की डाल सी 

 डॉ. श्रीवास्तव ने ‘मंजर’ शीर्षक से एक कविता आज के हालात पर भी सुनाई -

गीत तुम गाओ मत

मरी हुयी आह को सीने में दबाओ मत

लोकमत प्रेत है उसको भी जगाओ मत

वह उठेगा स्वयं अभी तुम उठाओ मत

 अंत में अध्यक्ष डॉ. अनिल मिश्र ने अपने काव्य पाठ में अध्यात्म के अधिकरण पर लौकिक को अलौकिक करने का जो जतन किया उससे प्रभाव क्या हुआ वह इन पंक्तियों में स्पष्ट होता है –

माया की काया का न्यारा

   तार-तार परिधान हो गया

      ज्यों ही मुझको ज्ञान हो गया

 इस आध्यात्मिक संध्या का गवाह यह प्रतिवेदक भी था I गजलकार और कवि भूपेन्द्र सिंह ‘होश’ के आतिथ्य से हम कार्यक्रम के प्रथम चरण के बाद ही आप्यायित हो चुके थे I इस

नयनोत्सव में सुश्री कुंती मुकर्जी भी थीं I उन्होंने केवल एक श्रोता की भूमिका निभाई I अन्य  श्रोताओं के नाम इस प्रकार हैं  –अनुपम तिवारी, गजेन्द्र प्रसाद सिंह, एवं तेजस्वी गोस्वामी I इसी के साथ यह साहित्य संध्या पुनरायोजन और पुनर्मिलन तक के लिए इस संकल्प के साथ स्थगित कर दी गयी कि-

जब तक मन में मधु हाला है

हम नाचेंगे i हम नाचेंगे I

जब तक पीड़ा के सायक से

होगा बिद्ध हमारा पिंजर   

जब तक जग के युग रोदन से 

बहा करेंगे शोणित निर्झर

रोम-रोम में धग-धग करती 

जब तक अन्तस् की ज्वाला है

हम नाचेंगे i हम नाचेंगे I     (सद्म रचित )

 

 

 

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