For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा-उत्सव" अंक - 30 (Now Closed with 1721 replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर वन्दे.

 

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 30 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले 29 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 29  विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है.

इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 30

विषय "शिशु/ बाल-रचना"

आयोजन की अवधि-  शनिवार 06 अप्रैल 2013 से सोमवार 08 अप्रैल 2013 तक

बाल-साहित्य है क्या ? कोई सजग समाज अपने शिशुओं और बच्चों से निर्लिप्त या अन्यमनस्क हो कर नहीं रह सकता. आज के शिशु और बच्चे ही कल को बड़े होने हैं. इन्हीं को कल की दुनिया को जीना और सँवारना है. बाल-साहित्य उनकी मानसिकता को आकार देने का सर्वोत्तम साधन है. दूसरे शब्दों में बाल-साहित्य कल के वयस्कों से सीधा संवाद बनाने की तरह है. इस लिहाज से बाल-साहित्य किसी दृष्टि से कम महत्वपूर्ण नहीं है. भारतीय परिवेश में गद्य का क्षेत्र तो प्राचीन काल में ही अति उच्च श्रेणी की बाल-कथाओं से समृद्ध हो गया था. शिशुओं के लिए आचार्य विष्णु शर्मा रचित संस्कृत भाषा में ’पंचतंत्र’ के जोड़ की कहानियाँ अवश्य ही किसी प्राचीन भाषा में नहीं हैं. इसी से यह समझा जा सकता है कि हमारा तब का समाज आने वाली पीढ़ी के लिए कितना सचेत था. पद्य के क्षेत्र में सूरदास तो बाल-साहित्य के आदि गुरु सदृश हैं. हिन्दी भाषा में भी मौलिक कहानियाँ भारतेंदु के समय से ही उपलब्ध होनी शुरू हो गई थीं. यानि, बाल-साहित्य का मूल आशय ही शिशुओं या बच्चों के लिए रचित सृजनात्मक साहित्य से है. बाल-रचनाओं का अर्थ कभी उपदेशात्मक रचनाएँ मात्र नहीं होता.  

दूसरे, हम कितने भी बड़े हो जाएँ, परन्तु बचपन की यादें कभी नहीं भूलतीं. सही ही कहा गया है, हर वयस्क में एक बच्चा जीता है. किसी में चुपचाप हाशिये पर पड़ा हुआ तो किसी में अति मुखर, अति प्रखर ढंग से जीता हुआ. उस बच्चे को संतुष्ट करना हर वयस्क का नैतिक कर्तव्य है. आज हिन्दी-साहित्य में बाल-साहित्य के रचनाकारों की संख्या भले ही कम प्रतीत होती हो, लेकिन बड़ों के लिए लिखने वाले कई-कई रचनाकारों ने अति उच्च स्तर की बाल-रचनाओं से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है. आधुनिककाल के पद्य रचनाकारों में सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह ’दिनकर’, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, शिवमंगल सिंह ’सुमन’, हरिवंश राय ’बच्चन’, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, भवानीप्रसाद मिश्र, प्रभाकर माचवे, जयप्रकाश भारती, कन्हैयालाल नन्दन आदि ने भरपूर योगदान किया है.
 
तो आइये, हम इस बार का लाइव काव्य महोत्सव शिशु/ बाल-रचना पर केंद्रित करें. शिशुओं से सम्बन्धित उनकी मनोदशा को संतुष्ट करती, बच्चों की मनोदशा और सोच को मान देती रचनाओं से इसबार के त्रि-दिवसीय आयोजन को आबाद करें.
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं.  साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.


उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

अति आवश्यक सूचना : ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 30 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जस सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 06 अप्रैल दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय (Saurabh Pandey)
(सदस्य प्रबंधन टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 23793

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

संदीप भाई आपका आभार! 

प्रिय बृजेश जी, निसंदेह आपकी रचना बहुत ही उच्च स्तर की है, रचना मे निहित कथ्य और शिल्प बेजोड़ है, अतुकान्त कविता मेरे लिए सदैव ही दो धारी तलवार रही है, यदि संतुलन नही बना तो रचना कही की नही रह पाती, किंतु आपकी रचना बहुत ही संतुलित है, जिससे कविता की सुंदरता देखते ही बनता है | इस खूबसूरत और उच्च श्रेणी की रचना हेतु बधाई स्वीकार करें |
लेकिन क्या यह रचना "बाल सहित्य" अंतर्गत आएगी ? मुझे नही लगता |

आदरणीय बागी जी, आपके स्नेह के लिए आभार! आपने जो हौसला अफजाई की है उससे मेरा साहस बढ़ा है।
यह रचना बाल साहित्य का हिस्सा हो सकती है अथवा नहीं यह चर्चा का विषय हो सकता है। मैं भी रचना पोस्ट करते समय संदेह में ही था। इस पर आप विचार कर लें। आप इसे यदि प्रविष्टि स्वीकार नहीं करते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।
इन आयोजनों के माध्यम से अभी मेरा प्रयास कुछ सीखना और अपने लेखन में सुधार की संभावनाओं की तलाश करना ही होता है। इस रचना पर भी आप लोगों का जो मार्गदर्शन मुझे मिला वह मेरे लिए धरोहर स्वरूप है जो आगे के लेखन में मुझे सहायक होगा।
सादर!

//आप इसे यदि प्रविष्टि स्वीकार नहीं करते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।//

आपकी रचना मंच पर है भाई जी ।

आपका आभार सर जी! भविष्य में ऐसा संदेह न पैदा हो ऐसा प्रयास करूंगा।

//लेकिन क्या यह रचना "बाल सहित्य" अंतर्गत आएगी ? मुझे नही लगता //

यह प्रश्न अब भी खुला है. यह अवश्य है कि इस प्रश्न पर गणेशभाई ने अपने विचार रख दिये हैं - मझे नहीं लगता.

वस्तुतः, वयस और अवस्था के अनुसार ही शिशु और बाल का वर्गीकरण होता है. साथ ही साथ एक और अवस्था होती है कैशोर्यावस्था. इसे बालावस्था का एक्स्टेण्डेड रूप और युवावस्था का प्रारम्भिक चरण कहना अधिक उपयुक्त होगा. आज का समाज जिस तरह से सूचना-स्फोट (information-proliferation) (स्फोट विस्फोट या bang का प्रारंभिक किन्तु चरणबद्ध स्वरूप की तरह प्रयुक्त हुआ है) को जी रहा है उससे नई पीढ़ी यानि शिशु-बाल-किशोर-युवा सबसे अधिक प्रभावित हुई है. इस पीढ़ी के ज्ञान और उसकी वैचारिकता के संदर्भ में बहस हो सकती है. किन्तु, सूचना प्राप्ति के लिहाज से यह पीढ़ी अपनी पूर्ववर्ती हज़ार साल की पीढियों से कहीं आगे है. इसी सूचना और तदनुरूप सचेत-संवेदना के आधार पर समझ बनती है. तभी देखा जा रहा है कि वर्तमान के बच्चे यक़ीनन विचारों में गूढ़ता को कहीं अधिक जीते हैं, बनिस्पत मात्र तीन-चार दशक पूर्व के बच्चों के. इन बच्चों के बीच की भाषा अवश्य दोयम दर्ज़े की है, परन्तु समझ बहुत आगे निकल गयी है. साहित्य और तदनुरूप भाषा के हाशिये पर जाना भी सापेक्ष परिणाम मात्र है.

मेरे कहने का आशय मात्र यही है कि भाई बृजेश नीरज जी की प्रस्तुत रचना का लिहाज अवश्य गूढ़ है, परन्तु, बाल+कैशोर्य अवस्था की इकाइयों को समझना कठिन है, ऐसा नहीं है. इस पीढ़ी की भाषा का लिहाज यदि कमज़ोर हुआ है तो यह शिक्षा क्षेत्र के नियंताओं की कमी है. या, आज के ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव है जिसे सही कहिये कत्तई नकारा नहीं जा सकता. उसे बस अपने अनुसार दिशा दी जा सकती है.

आदरणीय मंच संचालक महोदय 

//लेकिन क्या यह रचना "बाल सहित्य" अंतर्गत आएगी ? मुझे नही लगता //

//यह प्रश्न अब भी खुला है.//

शिशु/बाल रचना विषय से ही यह स्पष्ट है कि रचना का पाठक एक बच्चा है, और उसकी (बाल मन ) समझ अनुरूप ही कविता लिखनी है, ताकि बाल पाठक उससे ज्ञान लें, आनंद लें, और वो उनकी समझ को संतृप्त करने वाली हो ...

महोत्सव में कतिपय रचनाएँ ऐसी हैं, जो बचपन पर तो हैं पर बच्चों के लिए हरगिज़ नहीं हैं..

निश्चित रूप से बचपन पर हमारी सोच को प्रस्तुत करती रचनाओं का यदि कथ्य, भाव, सम्प्रेषण सब बहुत उच्च व समृद्द हो, लेकिन यदि वो बाल मन और बुद्धि के अनुरूप न हों, तो उन्हें बाल रचना नहीं कहा जा सकता.

इस आधार पर मेरी यही राय है कि आदरणीय बृजेश जी द्वारा प्रस्तुत रचना बाल साहित्य के अंतर्गत नहीं आती.

सादर.

डॉ.प्राची, आपकी बातें और उसकी तार्किकता सम्यक तथा मान्य है.

आप चूँकि इसी मंच पर बाल-साहित्य समूह की संचालक (संचालिका) हैं, आपकी दृष्टि और आपके विचार सम्माननीय हैं.

मैंने उपरोक्त टिप्पणी में अवस्था वर्गीकरण और वर्तमान समय की कम्प्लिकेसी को प्रस्तुत कर स्थिति को पटल पर रखा भर है.

हम सभी उस उम्र से गुजरे हैं, मैं भी..  :-)))

//हम सभी उस उम्र से गुजरे हैं, मैं भी..  :-)))//

सही मे !!! :-))))))))))))))

हा हा हा हा.. .

हाँ, वस्तुतः काकुल-श्मश्रु यथावत् श्वेताभ थे... .   ;-))))

हा हा हा हा हा हा.................

आदरणीय आपने मेरी रचना को मान दिया इसके लिए आपका आभार! आदरणीय बागी जी के कहे अनुसार मैं समझता हूं कि मुझे भविष्य में सावधान ही रहना चाहिए कि बाल साहित्य के अंतर्गत ऐसी रचना न प्रस्तुत करूं जो बच्चों के लिए दुष्कर हो।
सादर!

//भविष्य में सावधान ही रहना चाहिए कि बाल साहित्य के अंतर्गत ऐसी रचना न प्रस्तुत करूं जो बच्चों के लिए दुष्कर हो//

इसी को (तथ्य को) अवस्था वर्गीकरण के अनुरूप रेखांकित करने की कशिश की है हमने. पाँच से छः वर्ष तक के बच्चे शिशु रचनाओं से संतुष्ट होंगे तो १२-१३ साल के बच्चे बाल-साहित्य की रचनाओं से. इसके आगे की अवस्था इसी लिहाज की होते हुए भी बाल न कहला कर कैशोर्यावस्था कहलाती है जो युवावस्था के ठीक पूर्व की अवस्था है.  कैशोर्यावस्था की रचनाओं लिहाज अपनी पूर्ववर्ती अवस्थाओं की रचनाओं के स्तर से एकदम से छलांग लगा जाती है.  अस्तु, आप मेरी टिप्पणी से समझ ही गये होंगे कि मैंने क्या कहा है.

शुभेच्छाएँ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक जी , मेरी रचना  में जो गलतियाँ इंगित की गईं थीं उन्हे सुधारने का प्रयास किया…"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
22 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत रोला छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका…"
22 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी छंदों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार "
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज जी छंदों पर उपस्थित और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार "
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी छंदों की  प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार "
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय मयंक कुमार जी"
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
" छंदों की प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    गाँवों का यह दृश्य, आम है बिलकुल इतना। आज  शहर  बिन भीड़, लगे है सूना…"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी,आपकी टिप्पणी और प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है, मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service