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भारत सरकार को भारत में बढ़ती गरीबी के कारण बार-बार विदेशों में भारी शर्मिदंगी का सामना करना पड़ता था. गरीबी भारत सरकार की नीतियों की देन है यह भारत सरकार मानने को कतई तैयार नहीं. तब क्या हो सकता था ? गरीबी मापने के पैमाने को ही छोटा कर दिया जाय. जाहिर है भारत सरकार (योजना आयोग) ने यही किया भी. 32 रूपये से कम कमाने वाले ही गरीब हैं. अर्थात् 960 रूपये प्रतिमाह कमाने वाले गरीब कतई नहीं है. इस तरह भारत सरकार ने एक ही झटके में तमाम भारत वासियों को गरीबी से अमीरी में तब्दील कर दिया. क्या जादुई कारनामा है ! ऐसा जादुई कारनामा तो भगवान शंकर भी नहीं कर पाये थे. करोड़ों रूपये के महलों में एसी की ठंढक में बैठकर ऐसे ही नायाब करनामे रचने वाले नमूने लोग जिन्हें हम ‘‘माननीय’’ मान बैठते हैं, उनसे और कैसी उम्मीदें कर सकते हैं ? हम भारतवासियों के साथ यह भद्दा और अपमानजनक मजाक बंद किया जाना चाहिए. खैर यह भारत सरकार जिनके हर शाख पर उल्लू विराजमान है, जनता में हरपल विद्रोह की भावना ही भर रही है, आम जनता को विद्रोह के लिए उकसा रही है. अन्ना हजारे जैसे लोगों के लिए नई जमीनें तैयार कर रही है. जाहिर है लाखों सुरक्षा कर्मियों और फौजों के संगीनों की सुरक्षा में दुबकी यह भारत सरकार का आगे अहिंसक अन्ना हजारे से नहीं वरन् हथियारों से लैस भुक्खड़ों के अन्ना हजारे से भेंट होगी जो अपने पैने जबड़े से इन माननीय लोगों के जबड़े फाड़ डालेगी, जैसा कि फ्रांस की राज्य क्रांति के समय हुआ था. भारत सरकार का यह नया जादुई कारनामा ठीक वैसा ही है, जैसा फ्रांस की रानी ने कहा था, रोटी नहीं है तो केक खाओ. भारत सरकार को समय रहते चेत जाना चाहिए. उन्हें भुक्खड़ों का अपमान नहीं करना चाहिए.

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रोहितजी, सबसे पहले मेरी शुभेच्छाएँ और बधाइयाँ कि आपने एक सामयिक और ज्वलंत मुद्दे पर आपने विचारों को साझा किया है. आपका योजना आयोग की हालिया सिफ़ारिशों और आँकड़ों पर मुखर हो उठना आपकी संवेदनशीलता का परिचायक है. आप ऐसी ही लिखते रहें.

हाँ, यह बात अवश्य रहे कि आक्रोशित हो उठना मानव-सुलभ प्रक्रिया है, परन्तु, तथ्यपरक बात कहना उचित अध्ययन की परिणति है जिसके आलोक में मीमांसाएँ की जाती हैं.आप विश्व-राजनीति, भारत का कुल आर्थिक एवं सामाजिक इतिहास आदि का अध्ययन करते रहें ताकि आनेवाले समय में आपकी कलम में आवश्यक धार तो हो ही, कथ्य में तथ्य भी अपनी गंभीरता के साथ विद्यमान हों. 

आपका ध्यान फ्रांस की क्रांति की ओर उठा रहा हूँ  जिसका आपने जिक्र किया है. फ्रांस का भौगोलिक आकार और अपने देश का भौगोलिक आकार क्या बराबर है? मेरा आशय है बस इतना है कि फ्रांस जैसे पॉकेट-कंट्री में घटित किसी आंदोलन की परिणति भारत जैसे विशाल देश में उसी तरह के आक्रोश के उपरांत घटनाक्रम की परिणति बराबर नहीं हो सकती. क्योंकि, अपने देश के कई-कई राज्य फ्रांस जैसे देश से भौगोलिक रूप से बहुत बड़े हैं. उस लिहाज से कई राज्यों में कुछ न कुछ तो हो ही रहा है.

इसीकारण से प्रतिदिन कमाई के आधार पर गरीब होने का मुद्दा और उसके प्रति आक्रोश राज्य-राज्य में अलग-अलग आवृतियों के लिहाज से हो रहा है  जो उस राज्य-विशेष की पर कैपिटा इंकम पर ज्यादा निर्भर कर रहा दीखता है. हो सकता यह सारा प्रकरण बिहार, उप्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों को अधिक प्रभावित करे किन्तु, पंजाब, दिल्ली, गोवा, केरल आदि राज्यों में यह सारा कुछ महज़ एक खबर बन कर रह जाए. फिर फ्रांस जैसी क्रांति का क्या होगा !  इस लिहाज से, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखण्ड, आंध्र आदि राज्यों में नक्सलवाद का पैर पसारना दीखता आता है, परन्तु पंजाब, गोवा, केरल, तमिलनाडु आदि में यह मात्र एक समाचार भर है.

मेरा विश्वास है कि आप मेरे आशय को समझ रहे होंगे

 

//अहिंसक अन्ना हजारे से नहीं वरन् हथियारों से लैस भुक्खड़ों के अन्ना हजारे से भेंट होगी जो अपने पैने जबड़े से इन माननीय लोगों के जबड़े फाड़ डालेगी,//

उपरोक्त पंक्तियों पर मेरी बधाई स्वीकारें.

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