१. गिरिराज भण्डारी
गीतिका छंद
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ले चलो मुझको वहाँ तक सत्य ज़िंदा है जहाँ
कुछ भरोसा कर सकूं मैं, है ज़मीं औ आसमाँ
सत्य मरता है ग़रीबी, भूख में, ज्यों नातवाँ
झूठ जीता है हमेशा ज़िंदगी ज्यों जाविदाँ
व्यर्थ की बातें करो मत सत्य अब ज़िंदा नहीं
और उसपे बात सच्ची झूठ शर्मिन्दा नहीं
एक मुरदा सत्य ले कर घूमते हैं अब सभी
और मन में डर लिए हैं, जी न जाए फिर कभी
सत्य वो क्या सत्य है जो ज़िंदगी ना पा सके
जीत की खुशियाँ किसी की कब्र तो ना गा सके
सत्य को दो पैर,चल के ज़िंदगी तक आ सके
झूठ क्यों है जीतता ये बात कुछ समझा सके
द्वितीय प्रस्तुति
२१२२ २१२२ २१२
अब सराबों सा हुआ सच का असर (सराब = मृग मरीचिका )
झूठ गुर्राता रहा है उम्र भर
झूठ की बुनियाद गहरी इस क़दर
सच मगर ओढ़ा कफ़न है ढांक कर
सत्य रूपी शेर लगता ढेर है
स्वान झूठे हँस रहे हैं घेर कर
सत्य आखिर जीत जाएगा, चलो
जीते जी हम देखना चाहें मगर
यूँ लड़ा अभिमन्यु भी सच के लिए
मर गया वो , सत्य हारा देख कर
न्याय देरी से मिला, क्या फाइदा
आप भी तो देखिये ये सोच कर
और कितनी इन्तिज़ारी है बची
अध मरा सा सत्य सोया बेखबर
जब क़यामत ख़त्म कर देगी जहाँ
क्या करेगा सत्य ऐसे जीत कर
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२. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव
क्यों दिल से नहीं कहते - अब सत्य मेव जयते ?
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सत्य सदा ही विजयी होगा, परदादा जी कहते थे।
उसी राह पर दादा भी थे, सत्य सदा ही कहते थे॥
रोज कहानी हमें सुनाते, साथ भजन हम करते थे।
जो दादा की कसमें खाते, झूठ कभी ना कहते थे॥
सत्य टिके न झूठ के आगे, अब उसमें सामर्थ्य नहीं।
भ्रष्ट आचरण, धर्म जहाँ है, वहाँ सत्य का अर्थ नहीं॥
सत्य बोलते सदा पिताजी, मुश्किल में पड़ जाते थे।
लिया झूठ का जब भी सहारा, सभी काम बन जाते थे॥
कोर्ट, संसद, कार्यालय में, झूठों का बोल बाला है।
सत्यवान जितने देखे हैं, सब के मुँह पर ताला है॥
लोग उसे पागल कहते हैं, जो हैं सच कहने वाले।
सज़ा मिली, सारे दुख झेले, सत्यशील बनने वाले॥
सूक्ति “ सत्य मेव जयते ” है, द्वापर, त्रेता, सतयुग की।
झूठ, कपट औ स्वार्थ जहाँ है, बात करें उस कलियुग की॥
झूठे, मक्कारों ने बरसों, राज किया, हम हुए गुलाम ।
सत्य स्वयं सक्षम होता तो, कृष्ण न आते न श्रीराम॥
अवगुण सभी भरे हैं मुझ में, सपने देखा करता हूँ ।
इज्ज़त दौलत ख्याति बढ़ गई, हर चैनल पर दिखता हूँ॥
*संशोधित
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सत्यनारायण सिंह
है शुचित जग को विदित यह, देश भारत भारती।
सुर सरित बहती जहाँ पर, पतित जन को तारती।।
धर्म दर्शन वेद सारे, ग्रन्थ पावन धारती।
आज उस माँ भारती की, हम उतारें आरती।१।
मूल सारी सृष्टि का ही, सत्य को जाना गया।
सत्य को ही चिर निरंतर, ब्रम्ह सा माना गया।।
उपनिषद का वाक्य पावन, राष्ट्र की पहचान है ।
मान औ सम्मान जीवन, देश का अभिमान है ।२।
सत्य की ही जीत होती, उपनिषद का घोष है।
सत्य जीवन सार संस्कृति, मेटता मन दोष है।।
पाठ शुचिता का पढाये, यह अलौकिक मंत्र है।
गति प्रशासन को दिलाये, यह अनोखा तंत्र है।३।
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विजय प्रकाश शर्मा
सत्य खोजते
ईशा मर गए,
हँसते- हँसते
सूली चढ़ गए .
सत्य खोजते
गांधी मर गए.
मीरा को विष
पीने पड़ गए,
झूठे , दम्भी,
शोषण करते ,
लूट मचाते
रास रचाते
सच्चों को वे
खूब नचाते
पास बुलाते
हंसी उड़ाते
थक गए हम ,
सुनते - कहते
सत्यमेव जयते.
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डॉ. विजय शंकर
सच , सच में कहीं
देखा है आपने ,
सच बताइये , सच
कहां देखा है आपने .
सच शिलालेखों में है ,
शासनादेशों में है ,
कुछ किताबों में है ,
बच्चों की कहानियों में है .
जहां भी है मजबूती से
स्थापित है , बंधा
और जकड़ा हुआ .
पढ़ने और पढ़ाने के लिए है,
व्याख्या के लिए है ,
लोगों को बताने के लिए है .
झूठ आज़ाद है , किताबों से ,
शिलालेखों और शासनादेशों से ,
मस्त घूमता है , हरफन मौला है ,
हर जगह मिलता है ,
हर जगह दिखता है
हर जगह होता है .
सामने होता है , बस
पकड़ में नहीं आता है .
काम करता है , निकल जाता है .
काम तो सब झूट से ही
चलता है , ठीक ही चलता है , .
अच्छा चलता है .
फिर भी जय सत्य की होती है ,
सत्य की ही जय होती है .
सत्यमेव जयते ,
सत्य एवं जय ,
उस सत्य की जय
जो दिखता नहीं है ,
जो मिलता नहीं है .
या जिनकी जय होती है
उनका सत्य सत्य है
जिसे हम भ्रमवश कुछ
और समझते रहें हैं।
यदि यह है , तो फिर
असत्य क्या है ?
द्वितीय प्रस्तुति
सत्य एक है
उसका रूप एक है
किसी के लिए वह ,
शिव है , सुन्दर है ,
चित्त का आनंद है .
दूसरे के लिए वही
रूद्र है , क्रुद्ध है ,
मन का ताण्डव है .
सत्य तेरा मेरा नहीं है ,
विविध नहीं , एक है .
प्रिय अप्रिय से वह मुक्त है ,
जहां देह का एक अंत है ,
वह भी तो एक सत्य है ,
वह न प्रिय है , न अप्रिय है ,
है , बस है , क्योंकि सत्य है ,
यही तो राम नाम सत्य है .
झूठ के रूप अनेक हैं ,
रंग बिरंगे , मन भावन
जो चाहो , जैसा चाहो ,
हर रूप में मिलता है .
मन को खूब लुभाता है
है कुछ नहीं ,आभासित है ,
सिर्फ मिथ्या , एक भ्रम है ,
झूठ एक बुलबुला है
सातो रंग दिखाता है ,
पर एक भी जमा नहीं पाता है .
सौ झूठ का समूह भी न तो
एक सच को हरा पाता है
न मिटा पाता है .
झूठ कब कहाँ जीत पाता है ,
जीत का तो वह भ्रम फैलता है .
भ्रम में जीने वाला इंसान
यही समझ नहीं पाता है .
सत्य जीत हार से ऊपर है
वह कहीं नहीं लड़ने जाता है
कोई उसे हरा नहीं पाता है
झूठ बहरूपिये के रूप में
उस से भिड़ता और पिटता है ,
अपनी झूठी जय का दम भरता है ,
वह किसी को नहीं स्वयं को छलता है .
सत्य एक यथार्थ है , प्रकट और उद्भासित है
जो भी उस से लड़ता है
वह हार हार जाता है
सत्य कब कहाँ किसी से लड़ता है।
वो तो सदैव से अजेय है
झूठ जब भी उस से लड़ता है
हार जाता है , इसी लिए तो
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डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव
फलता किंचित भी नहीं जग में सदा असत्य I
मरने पर कहते सभी राम नाम है सत्य II
राम नाम है सत्य सदा इसकी जय होती
सत्य चमकता धवल सदा जैसे हो मोती
कह गुपाल अभिराम सत्य का सिक्का चलता I
भले देर में सही सत्य निश्चय ही फलता II
मथुरा-काशी में नहीं मिला सत्य का ज्ञान
दर्शन मेला हो गया विश्वनाथ भगवान् II
विश्वनाथ भगवान् राजते सबके उर में
कभी देख लो झांक वपुष के अन्तःपुर में
कह गुपाल अभिराम सुनो हे भारतवासी I
सत्य ह्रदय में बसा खोजते मथुरा-काशी II
द्वितीय प्रस्तुति
सत्यमेव जयते ! का घोष मेरा मंत्र बने
करता प्रणाम हूँ मै तुझको निर्भयते !
छांह भी असत्य की न छूने पाए भले तेरा
अवलंब लेना पड़े मुझको निर्दयते !
करुणा जता के भला आज तक जगत में
किसने वरण तेरा किया है विजयते !
फहरी पताका सच की समस्त युग में है
इसीलिये कहता मै सत्यमेव जयते !
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डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ’आकुल’
परिवर्तन की एक नई आधारशिला रखना है।
न्याय मिले बस इसीलिए आकाश हिला रखना है।
द्रवित हृदय में मधुमय इक गु़लजार खिला रखना है।
हर दम संकट संघर्षों में हाथ मिला रखना है।
अमर शहीदों की शहादत का इंडिया गेट गवाह है।
गदर वीर जब बिफरे अंग्रेजों का हश्र गवाह है।
स्वाह हुए कुल के कुल अक्षोहिणी कुरुक्षेत्र गवाह है।
तब से जो भी हुआ आज तक सब इतिहास गवाह है।
दो लफ्जों में उत्तर ढूँढ़े हो स्वतंत्र क्या पाया ?
हर पथ कूचे गली गली में क्यूँ सन्नाटा छाया ?
जात पाँत का भेद मिटा क्या राम राज्य है आया ?
रख कर मुँह को बंद जी रहे क्यों आतंकी साया ?
है अनमोल अक्षुण्ण धरोहर हम सब की आजादी।
पछतायेंगे जागरूक यदि रहे नहीं आजादी।
मानव मूल्य सहेज सके ना तो कैसी आज़ादी।
दाँव लगा कर ह्म खो ना दें जीते जी आजादी।
वंदे मातरम्, सत्यमेव जयते, जन गण मन गाते।
रस्म रिवाज़ निभाते और हर उत्सव पर्व मनाते।
कब से भारत माता की जय कह कर जोश बढ़ाते।
मेरा भारत है महान् नहीं कहते कभी अघाते।
महका दो अपनी धरती फिर हरित क्रांति करना है।
हार नहीं हर हाल प्रकृति को अब सहेज रखना है।
न्याय मिले बस इसीलिए आकाश हिला रखना है।
परिवर्तन की एक नई आधारशिला रखना है।
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खुर्शीद खैराड़ी
ग़ज़ल -1222-1222-122
खरा सोना चमक खोता नहीं है
पराजित सच कभी होता नहीं है
हर इक युग में सलीबों पर मिलेगा
मसीहा झूठ को ढोता नहीं है
जहाँ सच के पुरोधा हो सु़ख़नवर
नसीब उस देश का सोता नहीं है
वो पत्थर तानता है आइने पर
मगर चेहरा कभी धोता नहीं है
बहुत कड़वा है फल सच के शजर का
इसी कारण कोई बोता नहीं है
खड़ा रहता है सीना तानकर सच
अनय के सामने रोता नहीं है
छुपा 'खुरशीद' सच का बादलों में
उजास अपना मगर खोता नहीं है
द्वितीय प्रस्तुति
ग़ज़ल- 2122 - 2122 - 212
सच की जय जय कार होगी देखना
झूठ की फिर हार होगी देखना
सामने तूफान हो सच के मगर
हाथ में पतवार होगी देखना
स्वर्ग उतरेगा धरा पर एक दिन
कल्पना साकार होगी देखना
बदलियाँ छँट जाएगी जब झूठ की
रौशनी दमदार होगी देखना
हाथ कंगन को भला क्या आरसी
हर तरफ चमकार होगी देखना
झूठ होगा आइने के सामने
सच से आँखें चार होगी देखना
झूठ सच को काट पायेगा नहीं
भोथरी तलवार होगी देखना
सत्य की ही जीत होती है सदैव
बात सच हर बार होगी देखना
तीरगी का दौर है 'खुरशीद' जी
आपकी दरकार होगी देखना
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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
कुण्डलिया छंद
समझो जीवन झूठ सच, करो सत्य से प्रेम
हल जो जोते खेत में, उसमे बरसे हेम |
उसमे बरसे हेम, उसे ही राहत मिलती
उम्मीदों से सींच, ह्रदय फुलवारी खिलती |
लक्षमण समझो सत्य,नहीं विवाद में उलझो
करो देश से प्रेम, सत्य जीवन का समझो |
सच्चाई जीते सदा, जय जय जय गणतंत्र
करते रक्षा देश की, जय जवान शुभ मन्त्र |
जय जवान शुभ मन्त्र, देश हित में वे लड़ते
देते अपने प्राण, कभी न मौत से डरते |
कह लक्षण कविराय, देख कर प्रीत पराई ||
संकट में दे साथ, उसी के दिल सच्चाई ||
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रमेश कुमार चौहान
छप्पय
सत्य नाम साहेब, शिष्य कबीर के कहते ।
राम नाम है सत्य, अंत पल तो हम जपते ।।
करें सत्य की खोज, आत्म चिंतन आप करें ।
अन्वेषण से प्राप्त, सत्य को ही आप वरें ।।
शाश्वत है सत्य नश्वर जग, सत्य प्रलय में शेष है ।
सत्यमेव जयते सृष्टि में, शंका ना लवलेश है ।।
असत्य बन कर मेघ, सत्य रवि ढकना चाहे ।
कुछ पल को भर दंभ, नाच ले वह मनचाहे ।।
मिलकर राहू केतु, चंद्र रवि को कब तक घेरे ।
चाहे हो कुछ देर, अंत जीते सत तेरे ।।
सत्य सत्य ही तो सत्य है, सत बल सृष्टि विशेष है ।
सत्यमेव जयते सृष्टि में, शंका ना लवलेष है ।।
पट्टी बांधे आंख, ढूंढ़ते सत को जग में ।
अंधेरे का साथ, निभाते फिरते जग में ।।
उठा रहे हैं प्रष्न, कौन सच का साथी है ।
कहां जगत में आज, एक भी सत्यवादी है ।।
सत्यवादी तो खुद आप है, तुम में जो सच शेष है ।
सत्यमेव जयते सृष्टि में, शंका ना लवलेश है ।।
द्वितीय प्रस्तुति
तड़पते घायल को, देख लोग निकलते ।
संवेदना मर चुकी, दूसरों को कहते ।।
कोख में कन्या जो मारे, नारी को देवी कहते ।
बेटी से जो मुख मोड़े, पतोहू तो वरते ।।
श्वेत दुसाला ओढे जो़, बुद्धजीवी हैं बनते ।
अंदर बाहर भिन्न, काम जो हैं करते ।।
झूठ के मूरत इंसा, झूठे स्वांग ही रचते ।
कहते छाती फूलाय, सत्यमेव जयते ।।
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वेदिका
नवगीत
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बादल ऊँचा पवन वेग से
छटता है तो जल रह जाता
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सच का पलड़ा ही जीता है
सोचो तो यह बात विचारो
आरंभिक है कदम तुम्हारे
न निराश हो हिम्मत हारो
छोटी मछली धार काटती
है विशाल हाथी बह जाता ।।
.
देखो इसके प्रबल वेग को
छोटी धारा नदी बने है
दम हर साँस जुटाते जाओ
एक एक पल मिल सदी बने है
पर्वत पत्थर का समूह जो
श्रमिकों के दम से ढह जाता ।।
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अखण्ड गहमरी
वतन पर मर मिटे है जो उन्हें दुश्मन बताते है
छुपा कर सच किताबो से गलत राहे दिखाते है
न भूलेगें कभी सच्ची सुनी बलिदान की बातें
बुला हर रात दादा जो कहानी में सुनाते है
बता कैसे कहेगें हम न बोलो झूठ तुम बच्चों
न है पापा अभी घर में हमीं कहना सिखाते है
लगा नारा अहिन्सा की सभी खाते कसम सच्ची
मगर जब दाम मिलता तो सभी सच भूल जाते है
हमारे देश में बनती सभी चीजे सही सस्ती
मगर मोटे कमीशन पे विदेशो से मगाते
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अरुण श्री
समय की पीठ पर बैठ पुराने समय की कुछ स्मृतियाँ -
न जाने किस समय की चली पहुँची हैं मेरे समय तक !
उनका स्वागत करने से पहले -
मैं डरता हूँ कि कोई राजाज्ञा तो नहीं छपी अखबार में ,
कहीं पुरानी नीतियों का विलोम न हो नया संविधान !
जबकि -
पुराने लोगों के हाथों में आज भी अधमिटी तख्तियाँ हैं ,
पुरानी किताबों में लिखा है कि सत्य जीतता है आखिर !
अदालत के बाहर फुटपाथ पर बैठा कोई सत्य -
सर रख सो जाता है “सत्यमेव जयते” लिखी तख्ती पर !
न्याय के लिए ठहरी सत्य की अकेली साँसें -
तारीख से चलकर रुक जाएँगी तारीख से कुछ पहले ही !
न्याय और सत्य का व्यवहार अब नहीं रहा समानुपाती !
संभवतः -
पुराने आदर्श न हो सकेंगे जीने का समकालीन तरीका !
अच्छा है कि पुराने ग्रंथों पर जमी रहे धूल की परत !
पुराने सूत्रों का प्रयोग खतरा है नई प्रयोगशाला के लिए !
जबकि बदल गए हों प्रयोग के लक्ष्य ,
बढ़ गई हों दूरियाँ प्रयोगशाला और पुस्तकालय के बीच !
मैं नए समय में खोज रहा हूँ पुरानी स्मृतियों के अर्थ !
पाता हूँ कि हारने वाला हो ही नहीं सकता सच्चा ,
दरअसल , सत्य तो वो है जो जीत जाता है आखिरकार !
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सरिता भाटिया
सत्यमेव जयते हैं कहते, यह भाषा क़ानूनी है
आँखों पर पट्टी बाँधे हैं ,सत्य चढ़ा हुआ सूली है |
बिन देखे बिन तोले देखो माप रहे हैं सत्यता
सत्य पाने खातिर कहते साक्ष्य बहुत जरुरी है |
साक्ष्य देखन वास्ते देवी पहले आँख की पट्टी खोलो
तराजू में तोल बराबर सत्यमेव की तब जय बोलो |
सारे दावे सारे गवाह ही झूठे तब कहलाते हैं
खुले पोल जब झूठ की औ सच्चे विजय जब पाते हैं |
देवी पट्टी खोलो तब ही सत्य बनेगा आँख और कान
वर्ना सत्य की नींद उड़ेगी झूठ सोयेगा लम्बी तान |
सत्यमेव जयते कहो तुम सत्य की ही होगी जीत
भले बीत जायेंगे बरसों जीत मिलेगी पक्की मीत |
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अरुण कुमार निगम
सत्य ब्रह्म है सत्य ईश है , शेष सभी को मिथ्या जान
परम आत्मा चाहे कह लो, या कह लो इसको भगवान
सतयुग त्रेता द्वापर कलियुग , जितने भी युग जायें बीत
अटल सत्य था अटल सत्य है सदा सत्य की होती जीत
कभी साँच को आँच नहीं है , सोलह आने सच्ची बात
झूठा सच को साबित कर दे,भला किसी की है औकात
सत्य वचन जो भी कहता है, सदा चले वह सीना तान
नज़र मिलाने से कतराता , झूठ कहे जो भी इंसान
दिल सच्चा औ’ चेहरा झूठा, मन ही मन माने इंसान
“झूठ” मुखौटा-दुनियादारी, “सच” है बच्चे की मुस्कान
जीते जी तो सकल कर्म कर , चाहे भोगे भौतिक भोग
“राम नाम सत् है”कहके ही, विदा करें दुनिया से लोग
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मंच संचालिका जी सादर, संकलन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
विनम्र अनुरोध है कि इस संकलन मैं संकलित मेरी मूल रचना को निम्नवत संशोधित रचना के रूप में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें --!
है शुचित जग को विदित यह, देश भारत भारती।
सुर सरित बहती जहाँ पर, पतित जन को तारती।।
धर्म दर्शन वेद सारे, ग्रन्थ पावन धारती।
आज उस माँ भारती की, हम उतारें आरती।१।
मूल सारी सृष्टि का ही, सत्य को जाना गया।
सत्य को ही चिर निरंतर, ब्रम्ह सा माना गया।।
उपनिषद का वाक्य पावन, राष्ट्र की पहचान है ।
मान औ सम्मान जीवन, देश का अभिमान है ।२।
सत्य की ही जीत होती, उपनिषद का घोष है।
सत्य जीवन सार संस्कृति, मेटता मन दोष है।।
पाठ शुचिता का पढाये, यह अलौकिक मंत्र है।
गति प्रशासन को दिलाये, यह अनोखा तंत्र है।३।
आदरणीया मंच संचालिका जी
महा उत्सव - 47 की रचनाओं के संकलन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया मंच संचालिका जी
इस अंक की मेरी रचना संशोधन के साथ पुनः पोस्ट कर रहा हूँ । मूल रचना के स्थान पर प्रतिस्थापित करने की कंपा करें। धन्यवाद
क्यों दिल से नहीं कहते - अब सत्य मेव जयते ?
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सत्य सदा ही विजयी होगा, परदादा जी कहते थे।
उसी राह पर दादा भी थे, सत्य सदा ही कहते थे॥
रोज कहानी हमें सुनाते, साथ भजन हम करते थे।
जो दादा की कसमें खाते, झूठ कभी ना कहते थे॥
सत्य टिके न झूठ के आगे, अब उसमें सामर्थ्य नहीं।
भ्रष्ट आचरण, धर्म जहाँ है, वहाँ सत्य का अर्थ नहीं॥
सत्य बोलते सदा पिताजी, मुश्किल में पड़ जाते थे।
लिया झूठ का जब भी सहारा, सभी काम बन जाते थे॥
कोर्ट, संसद, कार्यालय में, झूठों का बोल बाला है।
सत्यवान जितने देखे हैं, सब के मुँह पर ताला है॥
लोग उसे पागल कहते हैं, जो हैं सच कहने वाले।
सज़ा मिली, सारे दुख झेले, सत्यशील बनने वाले॥
सूक्ति “ सत्य मेव जयते ” है, द्वापर, त्रेता, सतयुग की।
झूठ, कपट औ स्वार्थ जहाँ है, बात करें उस कलियुग की॥
झूठे, मक्कारों ने बरसों, राज किया, हम हुए गुलाम ।
सत्य स्वयं सक्षम होता तो, कृष्ण न आते न श्रीराम॥
अवगुण सभी भरे हैं मुझ में, सपने देखा करता हूँ ।
इज्ज़त दौलत ख्याति बढ़ गई, हर चैनल पर दिखता हूँ॥
आदरणीया मंच संचालिका जी ,संकलन में अकिंचन की ग़ज़लों को मान देने हेतु हार्दिक आभार |सभी रचनाकारों का सादर अभिनन्दन |
एडमिन को बहुत बधाई इस संकलन पर .आयोजन सफल हुआ.
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