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'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक-८ : प्रतिक्रियाओं में दी गईं समस्त रचनाएँ एक साथ

साथियों ! इस प्रतियोगिता में प्रतिक्रियाओं के माध्यम से इतने अधिक छंद दिये गये मानो छंदों की बरसात ही हो गयी हो .....ख़ास तौर पर दोहों का क्या कहना......हमारे आदरणीय प्रतिभागियों नें जिस विधा में रचना प्रस्तुत की गयी ठीक उसी विधा में हमारे सदस्यों नें अपनी आशुप्रतिक्रिया प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया......यह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है.....क्योंकि छंदों के रचने के अभ्यास का इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है ....  हमारे  इन सभी प्रतिक्रियाओं को एक साथ प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि आप इनका भी आनंद ले सकें ! जय ओ बी ओ !!!

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श्री संजय मिश्र 'हबीब' 

 

यह औसर मुबारक हो, आये अनगिन साल

भगवत कृपा बनी रहे, उन्नत रक्खे भाल ||

 

जय गिरधारी गूंजता, टीप टीप चहुँ ओर

गिरधारी दर्शन बढे, दुनिया में हो जोर

 

ऐसे दोहे रच दिए, जीवन का ज्यों सार.

आनंदित पढता गया, इनको बीसों बार

इनको बीसों बार, ह्रदय आनंद उगाये

डूबा जितनी बार, नया ही रूप दिखाए

दिल से है आभार, कहूँ कुछ इन पर कैसे

भाव मेरे  उडुगन, निहारे चाँद को ऐसे

 

गुरुजन का आशीष हो, सदा शिष्य के साथ.

नैन विनय में नत रहे, और झुकाऊं माथ..

 

अम्बर दोहों का खिला, देखो इंद्रधनुष

सात रंग में रंग के, अम्बर हो गया खुश.

 

अम्बर जी रचते चलें दोहे नित चितचोर

उनकी उंगली थाम कर, मारें हम भी जोर

 

सार्थक ताँके

चित्र हुआ चित्रित

सुन्दर भाव

दिल में उतरती 

सच्चाई की रोशनी...

 

कितने सुन्दर रच दिए, भाई ने सब छंद

आपसे आशीष लिये, सीखूं मैं मतिमंद

नेह सत्य ही आपका, भर देता उत्साह

चेले को सिंचित करे, यह आशीष प्रवाह

 

दोहे पर दोहे गढ़ें, अम्बर लेकर साज.

चकित ह्रदय औ नैन ले, विनयावत मैं आज..

 

गुरुवर से ही सीखता, डगमग चलते पाँव

छंद रचायें आपने,  दिए अनुज को नाँव ||

 

बहूमूल्य सब छंद हैं, गुरुवर का आशीष

पढता गुनता बैठ कर, नैन बंद नत शीश ||

 

प्रोत्साहन गुरुजन का, करता बहुत कमाल

धीमी आंच बनी रहे, गलती जाती दाल

 

हाईकू में पा गया, चित्र नया आयाम

जीवन रण में है कहाँ, थोड़ा भी आराम ||

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अम्बरीष श्रीवास्तव

 

रचना रच लें चित्र पर, छंदों से दें मान,
ओ बी ओ पर आपका, स्वागत है श्रीमान,
स्वागत है श्रीमान, चित्र यह हमें नचाये ,
चूके, पक्की मौत, कलेजा बाहर आये,
'अम्बरीष' है आज, सभी से इसका कहना,
लिया स्वयं को साध, तभी मुँह बोले रचना..

 

जनम दिन ये मुबारक हो रहे मुस्कान होठों पर

खुशी बिखरे जहाँ जाओ नया हो गीत होठों पर

जमाना संग में झूमे तेरी खुशियों को बांटें हम

हज़ारों साल हो जीवन  यही अंदाज़ होठों पर..

 

आभारी हूँ आपका, दोहा यह अनमोल..

जन्म दिवस पर आ मिलें मीठे मीठे बोल..  

 

मर्यादित है कुण्डली, कह डाला सब सार.
जय हो जय हो मित्रवर, धन्य धन्य, आभार..

 

खिलता मौसम आ गया , देता यह संदेश.

योगी जी युग-युग जियें, उनका हो अभिषेक..   

 

कुण्डलिया दोहा यहाँ , बरवै को भी ठौर.

छंदों की बरसात में, भीगे तन मन मोर..

 

दन-दन दोहे आ रहे, खिला प्रकृति का गात.

सच में अब तो हो रही छंदों की बरसात..

 

जय गिरधारी गूंजता, सब में है उन्माद 
गिरधारी गिरवर धरे, छाया है आह्लाद.

स्वागत करता आपका, सदा आपको मान.

आप आदि की शक्ति हैं, आप नहीं श्रीमान..

 

सारे लेकर आओ लड्डू थाल.
मापतपूरी जी लो खाओ माल.. (छंद बरवै)

स्वागत है जी आपका, दोहों से आगाज़.
जय हो जय हो हे प्रभू , बेहतरीन अंदाज़..

हम तो मात्र निमित्त हैं, सब कुछ करते ईश.
उनकी ही हो वंदना उन्हें नवायें शीश ..

सही कहा प्रभु आपने, यही मौत का खेल.
हमें चलाये राह पर, जोश होश का मेल..


बहुत कठिन है जिन्दगी, नहीं यहाँ कुछ मोल.
बहुत गज़ब दोहा रचा,  दर्शन यह अनमोल..

जीवन बीते प्रेम से, रहें चाक चौबंद !
बहुत खूब कहते प्रभू, मन में परमानंद..


बीमा तक होता नहीं, क्या करता इंसान.
हेलमेट के पैसे नहीं, मजबूरी श्रीमान..
 
अब तो आदत हो चली, नहीं मौत से मेल. 
सच कहते हैं मित्रवर, खतरों का यह खेल 

बहुत बुरा वह वक्त था, छोड़ा था जब गाँव.
मारा मारा घूमता, यहीं मिली है ठाँव..

सब कुछ समझें आप तो, हम तो हैं नादान. 
कहना जो मैं चाहता, कह डाला श्रीमान..

खतरों से लड़ना भला नहीं मांगना भीख.
लगती जब-जब ठोकरें, हमें मिले कुछ सीख..

यही सत्य है हे प्रभू, कभी न मानी हार.
लड़ते जीवन बीतता, लहरों से ही प्यार..  

हम तो सहते आज तक,पोर-पोर में पीर.
मजबूरी में दौड़ता, दीवाना क्या वीर..

हमने खुद ही है चुनी, कंटक भरी ये राह. 
यही सत्य है मित्रवर, है दुःख दर्द अथाह.. 

जय हो जय हो मित्रवर, यहाँ निराली शान.
ओ बी ओ पर साथ हैं, कला और विज्ञान..
  
जो पहले ही बोलता, वही ज्ञान है गूढ़.
मौसी मेरी गरीब है,  मैं भी तो मतिमूढ़..
 
सही यही तो मंत्र है, नहीं सही उन्माद.
मैं ना भूला मित्रवर, मुझको बिलकुल याद..
   
सदा चाहिए संतुलन, सदा रहे यह ध्यान. 
कहा प्रभू यह भी सही, है अमूल्य ये ज्ञान..

 

लाख टके की बात यह, कहते चतुर सुजान.
नहीं मुसीबत चाहिए, सदा रखेंगें ध्यान.. 

मेरी माँ बीमार है, क्या इच्छा क्या चाह. 
अंतड़ियों में आग जो, कैसी क्या परवाह.. 

मौत सत्य है देखिये, उसका करते मान. 
दुनिया को भ्रम है बड़ा, उसकी निकले जान.. 

 

करतब करते रोज ही, नहीं और कुछ याद.. 
चन्द रुपइए चाहिए, नहीं चाहिए दाद.. 

नहीं राह है और कुछ, करते क्या सरकार.
आज भूख ही सत्य है, बाकी सब बेकार.. 

सभी एक पे एक हैं, दोहों में है प्यार.
बहुत बधाई आपको, योगी जी आभार..

 

सीखे कोई आपसे, सबको देना मान.
सौरभ भाई आप हैं, छंदों के विद्वान् ..

 

गज़ब 'चित्र से काव्य तक', कर लें अब अनुबंध.  
सीखे इस त्यौहार से, मधुर मधुर सब छंद.

 

क्या-क्या सीखे दिल यहाँ, दिल वालों का जोर.
छंदों की ही लूट है, छंद खिले चहुँ ओर..


टूट-टूट टुकड़े हुआ, छंदों में भरमाय.
दिल बेचारा क्या करे, कैसे राहत पाय??

 

//दोहा नम्बर दो हुआ, फिर से यहाँ रिपीट

लगता है वो रह गया, जिसकी ये थी सीट//

 

प्रत्युत्तर में आपके, दोहे हैं अनमोल.
हमको सारे भा गये, मीठे मीठे बोल.. 

 

परिभाषित सब चित्र है दोहे सब निर्दोष.
दोनों लगें महारथी, इनका है जयघोष..

धन्यवाद है आपको, ईश्वर से फ़रियाद.
ओ बी ओ का मंच यह, बना रहे आबाद..

 

बहुत गज़ब यह तब्सिरा, सच कहते हैं मित्र.
गिरधारी जी को नमन,  बोल रहा यह चित्र..  

 

गहरी कुण्डलिया रची, दिया तत्त्व ही सार.
दिव्य दृष्टि है आपकी, भाई जी आभार.


भाई जी आभार, आज कुछ भी ना छोड़ा.
जग में दुःख अपार, रास्ता देखो मोड़ा.


अम्बरीष जो आज, यहाँ पब्लिक है ठहरी.
करे नमन साभार, यही कुण्डलिया गहरी.. 

 

प्रीति-रीति-सम्मान हो, धड़कन खेले खेल. 

गीत सुनाये ज़िन्दग़ी, आपस में हो मेल.. 

 

दूर हुए प्रियजन सभी, यहाँ मिला संसार.

बसा नज़र में फ़र्ज़ है, सबसे करते प्यार.. 

 

सजा चित्र है आपसे, सत्संगति से पार.

सौरभ भाई आपका, दिल से है आभार..

 

छोटी चींटी श्रम करे, नहीं चाहिए भीख.

चढ़ते गिरते फिर चढ़े, हम सब लेते सीख..

 

बदलेगी रुत चाल अब, हमको यह उम्मीद.

बहुत भले दोहे रचे, हम तो हुए मुरीद..

 

बने मौत भी जिन्दगी, गर छा जाये प्यार.

प्यार प्यार ही चाहिए, उसकी ही दरकार.. 

 

साध समय को आप में, तभी समय दे मान

जीवन दर्शन है रचा,       दोहे में श्रीमान..

 

दोहों पर दी प्रतिक्रिया, दे दोहों को मान.

देर हुई तो क्या हुआ, स्वागत है श्रीमान.. 

 

बड़ा गज़ब दोहा रचा, धरमेंदर जी आज.

हरी भरी धरती हुई, पवन सुनाये साज..

 

हुआ हमारा मुग्ध मन, पढ़कर दोहा-छंद

बहुत सही है आपकी, भाई जी ये बंद !

 

महिमा सत्संगी यही, विद्वजनों का साथ.

बड़ी कृपा है आपकी, प्रत्युत्तर सिर माथ.. 

 

यही सत्य है मित्रवर, कुछ तो जिम्मेवार.

पीछे-पीछे मौत है,  करने को अभिसार.. 

 

मजबूरी है क्या करे, चला रहा परिवार.

हड्डी-पसली एक हो, हो चाहे लाचार..   

 

बड़ी गरीबी साथ है, वहाँ गये थे सूख. 

नादानी फिर भी भली, यही मिटाए भूख..

 

मौत कुँए के संग में, फिर भी जाता जीत. 

अडिग इरादे साथ जब , जीवन हो संगीत.. 

 

करतब लगे कमाल का, वरना पूछे कौन. 

मजबूरी अपनी नियति, सदा रहूँ मैं मौन..

 

बड़ा गज़ब दोहा रचा, योगी जी महराज.

साथ मौत है नाचती, पवन बजाये साज.

 

सौरभ जी कुछ कम नहीं, जग में इनका नाम
प्रतिक्रिया इनकी पढ़ें, सरिता है  अविराम ..

 

संजय दोहों से खिले, खिले रंग हैं सात.
इंद्रधनुष है बन गया, यही मिली सौगात..

 

पानी पीकर प्रेम का,  सबको दे दें मान.
सत्संगति की धार में, सभी करें स्नान.

 

भाई बागी जी मिले, तभी हुआ अनुबंध.
तारों जितने हम रचें, ओ बी ओ पर छंद..

 

गीत आपका मीत आपका, बने सितारे सात,
सुन्दर सुन्दर गीत सुनाया, आभारी हूँ तात.

 

गज़ब तांके

तीनों के तीनों ही

सभी हैं मस्त 

लें मुबारकबाद

परिभाषित चित्र !

 

महिमा सत्संगी यही, विद्वजनों का साथ.

बड़ी कृपा है आपकी, प्रत्युत्तर सिर माथ..

 

पहला दोहा है गज़ब, बेशकीमती बोल.

सही कहा है आपने, यह दर्शन अनमोल

 

यह ही सच्छा ज्ञान है, दोहा रखना याद.

खुद की ताकत ही भली, होते हम आबाद ..

 

निश्छल निर्भय ही रहे, रचता प्रतिपल  जोड़.. 

सही कहा है आपने, डर से नाता तोड़..

 

मेहनतकश सच को जिये, नहीं रहे बेहोश.

दोहा बड़ा कमाल का, कायम रक्खे होश..  

 

बँधी आस तो जीत है, पग-पग मिलता प्यार..

तकलीफों से मत डरें, नष्ट सभी हों खार..  

 

भाव जगाये भाग को, ले ईश्वर का नाम

अलंकार की यह छटा, दिखती है अभिराम..

 

बड़ा आत्मविश्वास है, तम को करता नष्ट.

मंजिल पर ही ध्यान है, तब काहे का कष्ट.. 

मुग्ध हमें दोहे करें, परम संतुलित भार.
बहुत बधाई आपको, संजय जी आभार..

 

अधिक उपज जो चाहिए, फसल रहे आबाद
सदा सदा अपनाइए ओ बी ओ की खाद ..

 

ओ बी ओ की खाद,  बड़ी लगती गुणकारी !
दे कवित्व की पौध, खाद की महिमा न्यारी ! 

 

अतुलित दोहे आपके, योगी जी महराज.
भाव प्रवणता को नमन,  अलबेला अंदाज..

 

ताला खुलते ही यहाँ, सबको लगा करंट.
गिरधारी सब हैं कहाँ, उनका है वारंट.. 

 

दिली बधाई

शन्नो रचतीं

मनहर हाइकू

 

आभारी हम

हर्षित मित्रगण

जय ओ बी ओ

 

प्रतिक्रिया सब पर करें, हर लेतीं हैं पीर. 

सच कहते हैं मित्रवर, शन्नो जी गंभीर..

 

जग में जाबांजी भली, उसका हो जयघोष.

कथ्य शिल्प में है ढला, दोहा यह निर्दोष..

 

मजबूरी पेशा बनी, इस से चलता पेट.

पीछे पीछे मौत है, करने को आखेट..  

 

बैठे सीना तान के, राह तकें ये नैन.  

चक्कर घिन्नी जो बने,, मनवा है बेचैन 

 

हिम्मत मेहनत है लगन, सभी बनायें काम.

सत्य कहा है आपने, इनको मेरा सलाम..

 

बहुत बड़ा परिवार है, नहीं हाथ में माल.

चलती मोटरसाइकिल, बैठे बहुत सम्भाल.

 

चन्द रुपल्ली हाथ में बहुत बुरा है हाल..

हर चक्कर में मौत है, पीछे पीछे काल.

 

हेलमेट तक पहने नहीं, सारे करें सवाल.

फटफट चप्पल पाँव में, सब कुछ है बेहाल..

 

सबके रक्षक हैं वही, उनको मेरा प्रणाम. 

ईसा साईं वाहेगुरु, हो.रहीम या राम.,

 

अति सुन्दर दोहे रचे, सारे लगें सशक्त.

बहुत बधाई आपको, सभी भाव हैं व्यक्त.. 

 

भरती सबमें जोश है, डर से डर हो गोल.

संजय भाई क्या कहूं. कुण्डलिया अनमोल.

कुण्डलिया अनमोल. सभी में भाव जगाये.

हिम्मत इसकी देख, बहुत कुछ कह ना पाये.

अम्बरीष है आज, सभी की माता धरती.

उसके चरण पखार, वही है हिम्मत भरती.. 


लगी पेट में आग
चक्कर या घनचक्कर
अपना-अपना भाग!

 

लकड़ी. तेल. नून
जठराग्नि तो बुझे,  
क्या जोशो जूनून

 

कमाने की चाह

फट फट फट, सर्र सर्र
वाह वाह वाह

 

प्रवाहित है नदी
जीवन का मंत्र कहा 
गज़ब की त्रिपदी .

 

नहीं यह अजब
माँ बाप का आशीष
गज़ब गज़ब गज़ब .

 
ख़ाक जहाँ की छानी है
वहीं सीखा है यह
जिन्दगी बचानी है

 

मस्त मस्त है जीवन लय
मौत का कुआँ या जिन्दगी
अय हय हय हय हय

स्वागत है जी

कौन सम्हाले यहाँ

बृज भूषण 

स्नेह की धार
ओ बी ओ सरदार
असरदार

 

अपनापन ही चाहिए , थोड़ा थोड़ा प्यार.  
भले लगे जो हाइकू, संजय जी आभार..

 

जीवन का क्या मोल, यार उसके क्या माने. 
कुण्डलिया अनमोल, चित्र का राज बखाने..

 

हिम्मत-ए-मर्दे खुदा तो भागता यमदूत है.

मौत को दुर्बल न समझें जिन्दगी मज़बूत है.

 

पेट पापी है बड़ा यह भूख को ढोता नहीं. 

पेट भूखा गर रहे तो काम तक होता नहीं.

 

सच यही है मित्रवर जो भूख से अनजान हैं.

पेट भरने के लिए दिन रात वह हैरान हैं.

 

आप को ही साध लें तो जिन्दगी हो हरसिंगार.

मात देती मौत को भी जिन्दगी हर एक बार.

 

क्या ग़ज़ल कहते हैं भाई ऐ हबीब,

रोशनी में मुस्कुराते आये हैं.

 

खूबसूरत ये ग़ज़ल है लें बधाई अश्विनी,

प्यार बढ़ता हम सभी में और होता मेल है 

 

बह्र में कहते हैं ग़ज़लें भाव उम्दा ही दिखें

आपको मिलकर सराहें शेर खेलें खेल है 

 

प्रतिक्रिया में आपकी, दोहा है अनमोल,

बड़े स्नेह से हैं दिये मीठे मीठे बोल..

 

तारीफों का शुक्रिया, सुन्दर है आयाम .  

आभारी हूँ आपका, दिल से करूँ सलाम..

 

तीन तिगाड़ा, ताव हमारा
सौरभ जी का मिला सहारा
लोक और परलोक सुधारा..

 

जिन्दगी है एक जुआं पर खेलते मिलकर  सभी
हैं बहुत कठिनाइयाँ पर झेलते मिलकर सभी 
है गज़ब मुक्तक तुम्हारा चित्र परिभाषित करे
आपका स्वागत तिवारी कर रहे मिलकर सभी..

 

कोई काम नहीं है छोटा
जांबाजी से करना सीखो

 

तप तप करके कुंदन बनकर

दम दम यार दमकना सीखो

 

राहों में गर मोती चाहो,

नीची नजरें चलना सीखो 

 

आंसू जीवन पथ के साथी,

आंसू पीकर हँसना सीखो 

 

कुण्डलिया सुन्दर रची, झलके उसमें प्यार. 

निर्णायक जी को नमन, उनका है आभार..

 

जय हो जय हो मित्रवर, मिला आपका प्यार.

ओ बी ओ है आपका, शत शत है आभार ...

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श्रीमती शन्नो अग्रवाल 

 

हाथों में उपहार लिये और मुँह में भरे मिठाई

जन्म दिन की पाई होगी सबसे आज बधाई  

अब डिस्को में योगराज जी करते होंगे डांस 

इसीलिये तो टेलीफून का मिला न कोई चांस.

 

महारथी हैं आप सब, है सबको ही भान  

तीर चला कर छंद के, मार रहे मैदान.

 

आप किसी से कम नहीं, सेर पे सवा सेर  

खाद टिप्पणी में मिला, लगा दिया है ढेर.

 

शायद ये है प्रतिक्रिया, संगत का परिणाम. 

चमत्कार है खाद का, ओबीओ का नाम ..  

 

दोहे पर दोहे गढ़ें, अम्बर लेकर साज

चकित ह्रदय औ नैन ले, विनयावत मैं आज

 

पढ़ा कमेन्ट आपका, मिला बड़ा संतोष

वरना अपने को सदा, देती रहती दोष.  

 

ओबीओ में महकते, आप सभी के छंद  

प्रेम-भाव की धूप में, है आनंद अमंद l

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श्री योगराज प्रभाकर जी

 

कही बधाई छंद में, दिल से दी आशीष,
धन्यवाद कहूँ आपको, शीश झुका अंबरीष !

 

रचना रचिए काम की, रख फोटू का ध्यान
पोशीदा व जाहिरा  सबका करें बखान 


सबका करें बखान, चित्र की रूह उभारें,
निज लेखन की धार, ज़रा सी और निखारें


छोड़ें ऐसी बात, अगर वो लागे सच ना,
घाव करे गंभीर, भले हो छोटी रचना ! 

 

सही कहा है आपने, लगे मुझे भी तात,
तीनो दिन होगी यहाँ, छंदों की बरसात !  

 

हुकुम नहीं अनुरोध है, शानो जी लें जान,
आयोजन भी हो सफल , बढे मंच की शान !

 

छंद सिखाये आपने, समझाए सब राज़, 
पँख लगाए आपने, तभी भरी परवाज़ !

 

मेरे शब्दों को दिया, सुंदर यूँ विस्तार,
संजय भाई आपका, दिल से है आभार !

 

ऐसा कीन्हा तब्सिरा, गिरिधारी कुलश्रेष्ठ,
जय जय जय तुमरी करें, सभी अनुज व ज्येष्ठ !   

 

ऐसे परिभाषित किया, दिए चित्र को तात,

शिल्प कथ्य में आपने, दे दी सब को मात !


दे दी सब को मात, छंद की शान बढाई
शाहकार की बात, आपको ढेर बधाई   

 

तितली के भी रंग, गिने है कोई जैसे 
रोशन ये भरपूर, रचा कुंडलिया ऐसे !

 

दोनों दोहे का मियाँ, है विशाल कनवास

रंग हकीकत का भरा, सच्चाई की चास

 

बस चलता ही जा रहा, आदमी जिम्मेवार

हर पल जूझे मौत से, कुनबे का सरदार !

 
जान हथेली पर धरे, पाल रहा परिवार

खूब उभारा आपने, इस फोटो का सार !

 

सारी बातें भूल के, ,दाँव लगाए जान

भूख गरीबी से बना, दानां सा नादान !  

 

इसको भी मालूम है, बिछा मौत का जाल,

पर जीवन संगीत पे, देता रहता ताल  !

 

अपने घर परिवार का, जीवन सके सुधार, 

तभी बनाया मौत को, जीवन का आधार 

 

डाले जीवन दीप में, रोज़ लहू का तेल,

हाथ पकड़ के मौत का, खेले ऐसा खेल !

 

दोहों पर दोहा कहा, भले देर के बाद,

पढ़ते ही मन में उठा, खूब घना आह्लाद

 

दोहे केवल सात हैं, इनके रंग हज़ार

मनवा पर लाली चढ़े, देखूँ जितनी बार ! 

 

जिसको भी दरकार हो, निज रचना पर दाद
उसको लेनी ही पड़े, ओबीओ की खाद !!

 

हरेक डर औ खौफ को, पीछे करो धकेल,  

भटके ना ये जिंदगी, कस से पकड़ नकेल !

 

बन जाए विश्वास जो, कभी जुनून अगाध

अपने जीवन के लिए, बन जाता अपराध  !

 

बुद्धि से और विवेक से, ऐसा करो उपाय 

मौत फासले पे रहे, जान जाय ना पाय

 

खुशियों से है भर दिया, सबका ही आगोश 

अलंकार ये देख के, मन माना संतोष !

 

हर इक दुख तकलीफ का,हिम्मत ही उपचार 

जिसको मंजिल चाहिए, माने ना वो हार !

 

खूनी लहरों में कहीं, छुपा तुम्हारा भाग ! 

चल उठ बढ़ इंसान तू ,जीत कालिया नाग

 

//अपने हाथों से करे, दुश्मन सारे नष्ट,

हिम्मत से आगे बढे, बिना हुए पथ भ्रष्ट !//

 

समझी फोटो आपने, जानी पूरी पीर,

दोहे सारे आपके, शानो जी गंभीर !

 

फर्क न रत्ती-माशा
त्रिपदियों से चित्र को  

दी सटीक परिभाषा ! 

 

मंज़रकशी

गति और दीवार

हद है यार !

मस्त अंदाज़

ये बुलंद हौसला

तो ये है राज़ !

 

दाँव पे जान 

बड़ा बेपरवाह

यह नादान

 

हाँ निराला है

चाहे कुछ भी कहो

दिल वाला है !

 

देखो तो यार

हद से भी ज्यादा है

तेज़ तर्रार 

 

बड़ा तेज़ है

धन्य ऐसा हौसला 

हैरतअंगेज़ है  

 

ऐसा सिपह 

नपा हर क़दम  

चाहे फतह !

 

भूख गरीबी

घेरे हर क़दम

बदनसीबी !  

 

कैसा ये मेल 

जिंदगी का चिराग 

लहू का तेल  !!

 

गहराई से डूब कर, ऐसा कहा जनाब,
बड़े बुलंद मयार के, उभरे तीनो बाब !

 

शाहकार सारे बने, कोई नहीं जवाब,

रंग तीन बिखरा दिए, बहुत खूब, आदाब !

 

बाकी तो सब ठीक है भाई,
वक़्त का पालन करना सीखो !

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श्री सौरभ पाण्डेय जी 

 

बहुत सही निर्देश है, बहुत सही है ज्ञान

रचना चाहे छंद जो, मानक इसको मान

 

मानक इसको मान, यही तो आयोजन है

जो कुछ बोले चित्र, लिख, यही तो रंजन है.

 

काव्य धार में डूब, जो भावना निखर रही 

शब्द-चित्र बन जाय,  तो निभाना बहुत सही..

 

मेरे शब्दों को दिया,  योगीजी ने मान

’अम्बर’ से मिलकर सदा, छंद लगाती तान !! 

 

प्रतिक्रिया है आपकी, भाव-अर्थ भरपूर 

अम्बर भाई आप हैं, छंद विधा के शूर

 

//सीखे कोई आपसे, सबको देना मान.
सौरभ भाई आप हैं, छंदों के विद्वान ..//

 

छंदों के विद्वान, मगर ना जाने कहना 

कैसे कहते आप? कि, जब यों नीरस रहना?

 

हुआ न कोई यार, न कोई दिल का दीखे

पल दो पल का साथ, कहो दिल क्या-क्या सीखे ??

 

होश नहीं जब जोश में, फिर कोशिश बेकार

सही कहा है ज़िन्दग़ी, नहीं मिले हरबार

 

एक बार की ज़िन्दग़ी, मिले मौत इकबार

वीर निभाये ज़िन्दग़ी, कायर की बेकार 

 

बड़ी गहन यह बात है, ध्यान धारणा जान

साध सके तो लक्ष्य है, चूके तो शमशान


’यमक’ ’जान’ पर साध कर, की है गहरी बात

योगराज के योग पर, सादर नत है माथ

 

जीवन की है राह ये, यहाँ नहीं रीटेक 

लापरवाही छोड़िये, मन पर रखिये ब्रेक   

 

बात कही जो आपने, मतलब उसका घोर

जीवन तो ठिठका हुआ, लेती मौत हिलोर   

 

मैं भी सोचूँ रात-दिन, पेट भया ना पीठ

पीठ झेलती लादियाँ, पेट निगोड़ी ढीठ

 

दोहा नम्बर दो हुआ, भाई, फिर रीपीट

लगता है वो रह गया, जिसकी ये थी सीट 

 

है गवाह इतिहास भी, धरती भोगें वीर

पत्थर को मिट्टी करें,  धारा को दें चीर

 

दुखती रग को छू दिया,  खेल-खेल में यार !

छुरी धार पर चल रहा,  दिल में घर-परिवार !!

 

इस दोहे में जान है,  इस दोहे में फ़र्ज़

जीवन को हँस जी रहा, उतर रहा है कर्ज़

ज्ञान स्वयं में है कला, कला सिखावे प्यार 

प्रेमसिक्त ना ज्ञान हो, समझो वो बेकार

 

गोद मौत की, खेलता, साधे है रफ़्तार 

नहीं कवच, ना रोक है, बौड़म है तू यार !!

 

ना दुर्घटना, देर हो, सभी सिखायें रीत

मगर जवानी जोश में, भूल रही हर नीत 

 
दुर्गम पथ है यह बड़ा, कहते लोग-सुजान

सँभल-सँभल कर चल रहा, जीवन को सम्मान 

 
तभी कहा हर बार ये, ध्यान रखो श्रीमान 

हल्की सी भी चूक है,  जीवन का अपमान

 

देसी भावों डूबते योगराज सरकार

शब्द-शब्द से खेलते, दोहे हों साकार

 

डर के आगे जीत को, इज़्ज़त मिलती खूब

शहनाई है ज़िन्दग़ी, मधुर राग में डूब

 

सारा चित्र समा गया, दोहा बना निर्दोष

भाई योगी आपके,  दोहे खुद उद्घोष

 

जज़्बा है कुछ वो बना, मौत लगाये टेर 

फिर भी दीखे झूमता, पट्ठा ग़ज़ब दिलेर

 

भाई साहब आपको, दे रहा धन्यवाद 

ओबीओ का मंच यह, सदा रहे आबाद ..

 

जो कुछ सीखा है यहाँ, वही रचूँ, हे नाथ ! 

ओबीओ परिवार यह, थामे रक्खे हाथ !!

 

भाव नहीं ये आग हैं, देख फफोले देख

दर्द बड़े बेदर्द हैं,  घाव, घाव की रेख ..

 

चित्र नमूना है यहाँ, शब्द बढ़ाते चाव  

जैसे दीखा चित्र वो, उमड़ें वैसे भाव

उमड़ें वैसे भाव, झट आपने रच डाले 

धन्य-धन्य ’आलोक’, आपके छंद निराले

नहीं शब्द बेमेल,  चित्र का दम हो दूना 

यही चित्र से काव्य,  सुझावें चित्र नमूना

 

वाह बहुत ही जान है दोहे में श्रीमान 

गीत सुनाये ज़िन्दग़ी, प्रीति-रीति-सम्मान

 

कैसे रूठे प्यार ग़र, बसा नज़र में फ़र्ज़ 

जीवन यहाँ उतारता, रिश्ते-रिश्ते कर्ज़


क्या ही चित्र सजा दिया, इंसानी व्यवहार

जरिया या अवसर नहीं, माता है लाचार

 

अच्छा दिया उदाहरण, चींटी का श्रीमान

नन्हीं चींटी देख कर, जूझ रहे इंसान

 

जीवन-बगिया गुम सही, सूख गयी-सी डाल 

हँसता मौसम आयेगा, बदलेगी रुत चाल.

 

जो जीवन से खेलते करें मौत से प्यार

उनके हिस्से प्यार है, प्यार प्यार ही प्यार

 

मान समय को दीजिये, समय निभाये संग

शिष्ट-तपस्वी से जियो, लूटो जीवन-रंग

 

शन्नोजी क्या बात है,  खूब निभाया छंद 

क्या ही है निर्दोष यह, प्रतिक्रिया का बंद !!

 

कांड’ न कह प्रतिफल कहें, होगा अति उपकार

शन्नोजी अब ’काण्ड’ से, डर लगता हर बार

 

गलत किया डिलीट किया, शन्नोजी वह छंद

मैंने यों ही था कहा, सुन्दर था वह बंद ...

 

प्रतिक्रिया पर टिप्पणी, कहो कहाँ यह होत

अम्बर जी है आपकी, प्रतिभा उज्ज्वल जोत !!

 

चित्र विचित्र

यही प्रतियोगिता

विधा कोई भी

भाव का संप्रेषण

वर्णन की सुविधा !!

 

अति विचित्र क्रीड़ा यहाँ,  ब्रह्मांड कुल कूप

जीवन पाये अर्थ नव, जीना हुआ अनूप 

 

निज बल का फल हो मधुर, मनहर मोहक भाव 

जीवन बने सरल तभी,  फुदके दीखें पाँव 

 

जिसके मन डर जा बसा, उसका जीवन व्यर्थ 

सही कहा, यों ज़िन्दग़ी, बिना मोल बिन अर्थ

 

अच्छी कोशिश कर रहे, संजय भाई डूब  

सही कहा, जो जम गया, खून नहीं वह खूब 

 

शब्द ईश है, शब्द ही निरंकार आकार

निज के योग-वियोग से, रचें भाव संसार 

 

’भाग’ शब्द को भोगते पढ़ते जाते छंद

मनहर हुआ प्रयास है, निखरे बढिया बंद

 

’सदा’ शब्द की आवृति, थोड़ी खटकी यार

प्रस्तुत दोहा मांगता, तनिक समय औ’ प्यार 

 

भाई संजय आपकी  मिहनत लाई रंग

मैं पाठक हूँ, मुग्ध मन, उर में भरी उमंग ..

 

कभी नहीं खुद को कहें, मति के मंद, कि, हीन 

ज्वाजल्य सुनक्षत्र हैं,   पिंगल-ज्ञान  प्रवीण ...  

 

पिंगल-ज्ञान प्रवीण, आप हैं सुगढ़ चितेरे

खिले रहें कवि-फूल, बिखेरें भाव घनेरे 

 

पायँ लगन के लाभ, ओबीओ पाठक सभी 

सुबल आपसे मंच, रहें क्यों फिर दीन कभी ????  ????

 

सादर करूँ प्रणाम मैं, नित-नित ’योगीराज’ !

भाव मनन में आपका, बहुत खूब अंदाज !!! .

 

शन्नोजी बस आपने, कर ही दिया कमाल

दोहों पर है आपकी, अब फिरकी-सी चाल !!! 

 

बेहतर हुआ है छंद,  कुण्डलिया के नाम !

संजय भाई आपकी, लगन पाय इअनाम !!

लगन पाय इअनाम, सभी अचरज हैं करते

संजय करें प्रयास,  सहज पिंगल हैं रचते ..

छंद रखें निर्दोष, मगर न भाव से कमतर

बूँद-बूँद भरपाय,  ज्ञान-गगरिया बेहतर !!!!!  

 

सुना था, तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा

मगर यहाँ.. तीन तिगाड़ा, ताव हमारा.. .!!!!

________________________________________

 

श्री अविनाश एस बागडे 

 

मानक इसको मान, यही तो आयोजन है

जो कुछ बोले चित्र, लिख, यही तो रंजन है.

 

छोड़ें ऐसी बात, अगर वो लागे सच ना,
घाव करे गंभीर, भले हो छोटी रचना !

 

सात दिनों के आपके,दोहें हैं ये सात.

हर दोहा है कर रहा,मन पर यूँ आघात.

 

कुआँ है मौत का , पेट में बना हुआ 
घूमती है भूख जब , तन मन तना हुआ

 

कलमकार सब आ जुटे,लेकर अपना मर्म.

सतत यहाँ करते रहे,बस लेखन का कर्म.

बस लेखन का कर्म,सफल है ये आयोजन.

कविताओं से भीग गया है,ये मन-उपवन.

कहता है अविनाश,यही बस होवे बारम्बार,

किसी बहाने जुटे यहाँ पर यूँ हीं कलमकार.

 

अविनाश बागडे...(.....शो मस्ट गो ऑन.)

____________________________________________

 

सतीश मापतपुरी 

 

चूक गया हूँ,  इस आमोद का, चख न सका मैं स्वाद.

आया हूँ कुछ देर से, देता सबको दाद.

देता सबको दाद, कि महफ़िल खूब सजी है.

एक से बढ़कर एक कहन की, कैसी धूम मची है.

 

एक से बढ़कर एक हैं, किसकी करूँ बखान.

एक पंक्ति में कहता हूँ, तुम ओबीओ की जान.

तुम ओबीओ की जान, इसे भगवान बचाएं.

सौ - दो सौ ही नहीं, हजारों साल जिलाएँ.

 

साधुवाद प्रभु आपको, धन्य विचार - विलोक.

तमपूर्ण इस संसार में, आप ही हैं आलोक.

 

सात ही सुर है - सात वार है, सप्त ऋषि भी सात.
सात ही फेरे लेके बने हैं, पति - पिता ऐ तात.

सात ये दोहे शत समान हैं, शत - शत नमन हमारो.

अनुपम - अतुलनीय हैं सारे, साधुवाद स्वीकारो.

___________________________________________

 

श्री गणेश जी बागी

 

विद्वानों से है भरा, ओ बी ओ परिवार,

चित्र प्रतियोगिता बनी, सीखन का त्यौहार !

 

दिखे जो कुआँ मौत का, देता है जिन्दगी,

रोटी जिससे मिल सके, करे उसकी बंदगी,

 

ओबीओ का मंच यह, सबकुछ दे सिखलाय,

दोहे पर दोहे बनें,  हृदय  विमुग्ध कराय,

 

सात दोहे संग लिये, अम्बर तक है प्यार,

चित्र परिभाषित किया, बहुत बहुत आभार,

 

पहला ताका,

गणित गड़बड़

फिर से साधे

वैसे मैं तो केवल

करता बड़बड़

 

गाँव जाने वाला बहाना,

हो गया है अब पुराना,

महफ़िल में गर डटना है तो,

नया कुछ बहाना सीखो |

_____________________________________

 

श्री धर्मेन्द्र शर्मा जी !

 

सभी दिग्गजों ने किया, दोहों में संवाद

धरती धोरों की मिली, हरी ढेर सी खाद !

_______________________________

 

श्रीमती वंदना गुप्ता

 

जैसा पीयो पानी वैसी बने वाणी

जैसा करो व्यवहार वैसा दीखे संसार

______________________________________

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आदरणीय अम्बरीष भाईजी,  इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इस अन्यतम और अभिनव प्रयास के कारण प्रस्तुतियाँ तो छंदबद्ध होने ही लगीं हैं. इससे सदस्यों को छंदों, मात्रिक और वर्णिक रचनाओं या ग़ज़लों पर अभ्यास का इतना बेजोड़ माहौल मिलता है कि उसका असर साफ़ दीख रहा है.  ऐसे सदस्य जो रचनाकार हैं उनके लिये तो समझिये, एक कक्षा ही चलती है.  देखियेगा, धीरे-धीरे कई और सदस्य इस अभिनव और सदाशय माहौल का लाभ लेने लगेंगे.

 

आपका प्रतिक्रिया-रचनाओं के कुल संकलन हेतु हुआ प्रयास कितना बेहतर हुआ है उसके पीछे की आपकी संलग्नता और मशक्कत ही है.  इस श्रम को अम्बरीषजी हम अवश्य समझ सकते हैं.  इस श्रमसाध्य कार्य के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने पर आपको हृदय से भूरि-भूरि बधाई.

 

सर्वप्रथम इस कार्य को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त कर रहा हूँ ! इस बार तो जितनी मात्र में रचनाएँ स्तरीय रचनाएँ आयीं हैं उससे कहीं अधिक संख्या में छंदों के माध्यम से आशु प्रतिक्रियाएं आई हैं इसका प्रमुख कारण आपसी सहयोग और सद्भाव से इस प्रकार के  छंदमय माहौल का बन जाना है ! आगे भी हम सभी को एक साथ मिलकर इस माहौल को खाद पानी देते रहना है ताकि यह वातावरण ऐसे ही बना रहे और अपने सभी साथी इसका उचित लाभ ले सकें क्योंकि हमारी दृष्टि में ऐसा माहौल अभी तक तो कहीं भी नहीं रहा है ! इस हेतु आपके साथ साथ अपने सभी ओ बी ओ मित्रों का पुनः आभार व्यक्त करता हूँ ! जय ओ बी ओ ! :-)))  

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