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राजेश शर्मा जी, मैं आपकी बातों से सहमत हूँ , मेरा कहना है कि जब लेखक/रचयिता घोर मेहनत कर के कोई रचना लिखता है और हमारे बीच रखता है तो सिर्फ और सिर्फ एक ही अपेक्षा होती है कि लोग पढ़े और रचना के बारे में वो क्या सोचते है बतावे, टिप्पणी नकरात्मक सकरात्मक कुछ भी हो पर हम सबका दायित्व है कि टिप्पणी दे |
प्रोत्साहित करने वाले कमेंट्स निश्चित ही लेखक को और भी बेहतर लिखने को प्रेरित करते है | OBO के अधिकतर सक्रिय सदस्य साहित्यकार है वो चाहे तो अपने कमेंट्स के माध्यम से लेखक को बेहतर लिखने हेतु प्रेरित कर सकते है |
राजेश जी आपने एक बात बहुत ही बढ़िया कहे कि "टिप्पणियां आलोचनात्मक हों तो और भी अच्छा रहेगा लेखन के लिए" बिलकुल सही बात है, स्वस्थ आलोचनात्मक टिप्पणिया लेखक के लिए टोनिक का काम करते है |
आप सभी सदस्यों से निवेदन है कि ...........
सभी सदस्यों के पोस्ट पर अपना विचार दे |
अपने पोस्ट पर आये टिप्पणियों पर धन्यवाद व्यक्त करे |
agree with you totally. response and feedback is the oxygen that keeps a writer alive. would that eveyrone would appreciate that and put in that little effort required for two lines.
इस मंच से जुड़े महीनों हो गये. अपने अनुसार बरतने का सदा प्रयास रहा है. पठन के क्रम में जो कुछ समझ में आया उसे स्वीकारा, उस पर राय जाहिर की. यदि परस्पर संवाद स्थापित हो पाया तो लाभान्वित हुआ.
मैं समझता हूँ, पाठकों की राय या टिप्पणी संवाद स्थापना के साथ-साथ निम्न बातों की तरफ भी इशारा करती हैं. -
१. रचना की अंतर्धारा क्या है.
२. लेखक/रचयिता की जमीन क्या है.
३. किसी फ्लैश को पाठकों के लिये प्रस्तुत कैसे किया गया है.
४. पाठक का नजरिया क्या है.
५. क्या पाठक रचना की समस्त इकाइयों को देख सकने में सक्षम है.
६. रचना के साथ-साथ रचनाकार/ लेखक के किस आयाम के प्रति पाठक की नरमाई है.
७. क्या रचना की प्रस्तुति को कुछ और दिन टाला जा सकता था ताकि रचना-गठन में और प्रौढ़ता दीखती.
८. रचना की विषयवस्तु तथा रचना के वैविध्य के सापेक्ष पाठक की अपनी तैयारी कैसी है.
९. रचना पाठक से किस स्तर का संवाद स्थापित कर पाती है (यह रचनाकार/ लेखक और पाठक के संवाद से इतर है)
१०. क्या रचनाकार में सुधार की गुंजाइश है.
जहाँ तक टिप्पणी का सवाल है तो रचनाकार की तरह पाठक के लिये भी समयाभाव महती दखल रखता है. इस लिहाज से मैं स्वयं को बहुत अभागा समझता हूँ. किन्तु रचना को पढ़ने के बाद टिप्पणियों को अवश्य पढ़ता हूँ. अपने भावों को व्यक्त करती टिप्पणी दिख जाती है तो फिर ’की-बोर्ड’ पर उंगलियाँ नहीं फिरतीं.
गणेश भाई, सार्थक संचालन हेतु आभार..
सौरभ सर बहुत बहुत आभार, आपकी टिप्पणी हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, आप जैसे बुद्धिजीवियों के बल पर ही मैं OBO का सार्थक संचालन करने में समर्थ हुआ हूँ, मुझे यह कहते हुए कोई झिझक नहीं है की बगैर आप सबके सहयोग से मैं दो कदम भी नहीं चल सकता | आप सब का जितना प्यार दुलार गत एक वर्षों में प्राप्त हुआ उसका कर्ज मैं सदियों में नहीं चूका सकता | मेरा सपना शुरू से OBO को एक परिवार की तरह रचने की थी और मुझे लगता है की इस उद्देश्य में मैं सफल हूँ | OBO के कुशलता पूर्वक संचालन में सदैव आप सबके मार्गदर्शन की मुझे आवश्यकता होगी, और यह मेरा हक भी है |
अंतरजाल ने लेखन को अपार विस्तार दिया है..साहित्य पर प्रिंट मिडिया का अधिनायकत्व बहुत कम हुआ है इसमें कोई दो राय नहीं..परन्तु किसी रचना पर टिपण्णी कम आना को " हकमारी " कहना मुझे उचित नहीं लगता...
मुझे लगता है ध्येय यदि सार्थक सकारात्मक लेखन है, तो ध्यान टिप्पणियों की संख्या पर पर नहीं होनी चाहिए...जैसे सुगंध बंधा नहीं रह सकता,ऐसे ही स्तरीय लेखन पाठक जुटा ही लेता है,समय भले थोडा लग सकता है...
हम पूरा ध्यान यदि गुणवत्ता पर रखें तो परिणाम में पाठक संख्या अपने आप बड़ी हुई मिल जायेगी..
रंजना जी, किसी भी साहित्यिक साईट पर वही लोग जुड़ते है जिन्हें साहित्य पाठन, साहित्य सृजन या दोनों मे शौक हो | अन्य साहित्यिक वेब साईट का उद्देश्य क्या है यह मै नहीं कह सकता , किन्तु ओ बी ओ का उद्देश्य तो स्पष्ट है ..ओ बी ओ सदैव नए साहित्यकार को साहित्य सृजन हेतु उत्साहित करता है, हम सभी चाहते है की ओ बी ओ सीखने सिखाने का एक मंच बन सके|
लेखक / लेखिका स्थापित और नवोदित, कड़ी मेहनत के पश्चात् साहित्य सृजन करते है, और पाठक/अन्य साहित्यकार पढ़कर आगे बढ़ जाते है, लेखक को पता ही नहीं चलता की मेरी रचना यहाँ पढ़ी भी जा रही है अथवा नहीं | कही न कही लेखक/लेखिका हतोत्साहित होते है कि ..आखिर मैं लिखू किसके लिए....कापर करूँ श्रृंगार सखी, पिया मोरा आन्हर ...कुछ इस तरह के हालात हो जाते है और नवोदित साहित्यकार की प्रतिभा दम तोड़ने लगती है |
मुझ सहित बहुत से साथी व्यक्तिगत मेल पर लिंक भेज कर कहते है कि कृपया अपना विचार दीजियेगा, मतलब साफ़ है हम जानना चाहते है कि मैंने जो खाना बनाया है वो टेस्टी है अथवा नहीं , यदि कोई बता दे कि नमक मिर्चा मसाला ठीक है तो आगे इसी तरह का भोजन या इससे बढ़िया भोजन बनाऊंगा, और कोई यह कह दे कि नमक या मिर्चा कम अधिक है तो आगे से सुधारने का प्रयास करूँगा| यह तो बहुत बढ़िया ख्वाहिश है, इससे साहित्य सृजन में बहुत ही सहयोग होगा | किन्तु दुःख तो तब होता है कि वही साहित्यकार दूसरों कि रचनाओं पर कुछ भी नहीं लिखते | भाई उत्साह बढाइये या कुछ बढ़िया करने हेतु टिप्स ही दीजिये, यही मेरा कहना है |
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